Untitled-02 copy

पहचान

जैसे तुम्हारा तुम

वैसे मेरा मैं नहीं हूं

हमेशा कहते हो दिल की बात कहने को

जब कुछ कहूं

तब जज़्बात को शब्दों के तराज़ू में

तोल देते हो,

और हर एक एहसास दबा देते हो

खोद – खोद कर खोखला कर देते हो

और फिर, बेरूख़ी का इल्ज़ाम लगा देते हो

मैं तुम्हारा दरपन नहीं हूं

न हूं तुम्हारा मोक्ष

न तुम्हारी कसक हूं

न तुम्हारी करुणा हूं

मैं सिर्फ मैं हूं

जो, तुम्हारे जैसा नहीं हूं

में तुमसे अलग हूं

फिर भी तुम्हरे संग हूं

ख़ुद से निकलोगे तो जानोगे

कि हमारी पहचान अलग है

हालांकि रंग हमारे आज भी

काफ़ी मिलते-जुलते हैं

  • सुदाक्षिणा

1 thought on “पहचान

Leave a Reply to Dipa Desai Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *