Month: July 2020

उमचन सी कसी जाती है – प्रज्ञा पांडे

** उमचन सी कसी जाती है .भिगोकर बुनी जाती है जितना हों सके खीचकर तानकर जाती है बनायीं उधेड़ दी...

घर होती हैं औरतें सराय होती हैं – प्रज्ञा पाण्डे

                  सराय होती हैं.                    अन्नपूर्णा...

देवी के अस्त्र शस्त्र और वस्त्र – दिव्या त्रिवेदी

देवी के अस्त्र शस्त्र और वस्त्र देवी की मूर्ति पर, रंग भरते हुए कलाकार की कूची कुछ चिपचिपी कुछ लसलसी...

प्रेमांकुर – दिव्या त्रिवेदी

प्रेमांकुर तुम चाहे लाख कोशिश करो मुझे अन्य अमरबेलियों के सहारे मिटाने की अपने भावनाहीनता के शिलाखंड से दबा कर...

तू सुमन सा खिल सदा – दिव्या त्रिवेदी

"तू सुमन सा खिल सदा" है मार्ग गर दुष्कर तो क्या, है सम्मुख शिखर तो क्या। हो काल गर प्रतिकूल...

विदेही सुख – दिव्या त्रिवेदी

विदेही सुख जो स्वप्न में देखा था कब से आज देखा वही सवेरा ! जो तथाकथित हरदम रहे थे आज...

तुम चाहते हो अकेली मिलूँ मैं तुम्हें – प्रज्ञा पांडे

तुम चाहते हो  अकेली मिलूं मैं तुम्हें पर मैं अकेली नहीं मैं मेरे पास है  मेरी तपन  और मेरी आग ...