कहानीकार अलका प्रमोद

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पर हित सरिस धरम नहीं भाई
घर में एक अनकही सरगर्मी थी ,बात साधारण थी भी नहीं, मिसेज सुजाता को इसी माह की 12 तारीख ’ सेवा श्री‘ पुरस्कार से 
विभूषित किया जाना था । अब तो घर में दिन भर फोन की घंटी का संगीत गुण गूँजता
‘‘ सुजाता जी बधाई हो’’
‘‘सुजाता जी हमें आप पर गर्व है।’
घर पर भी ,बधाई देने आने वालों का ताँता लगा रहता । 
सुजाता जी को तो साँस लेने की भी फुरसत नही थी
घर में एक अनकही सरगर्मी थी ,बात साधारण थी भी नहीं, मिसेज सुजाता को इसी माह की 12 तारीख ’ सेवा श्री‘ पुरस्कार से 
विभूषित किया जाना था । अब तो घर में दिन भर फोन की घंटी का संगीत गूँजता
‘‘ सुजाता जी बधाई हो’’
‘‘सुजाता जी हमें आप पर गर्व है।’
घर पर भी ,बधाई देने आने वालों का ताँता लगा रहता । 
सुजाता जी को तो साँस लेने की भी फुरसत नही थी बधाइयाँ लेते लेते थक कर चूर हो जाती थीं ।
12 तारीख आ गई । मेहता आडिटोरियम के सभागार में भारी जन समूह के मध्य , मंत्री जी ने सुजाता जी को दो लाख रूपये की पुरस्कार राशि और प्रशस्ति पत्र दिया । मंत्री जी ने कहा ’’हमें गर्व है कि हमारे समाज में सुजाता जी जैसी त्याग की मूर्ति आदर्श 
स्त्रियाँ है जो घर की परिधि से निकल कर सम्पूर्ण समाज के लिये सोचती हैं।उनके जैसे दया और प्रेम भाव रखने वाले लोंगों के बल पर 
ही समाज में दीन दुखियों की भला हो रहा है । ………‘‘।
पुष्पहारों और प्रशंसाओं के भार से लदी सुजाता जी विनम्रता से दोहरी हुई जा रही थीं । संचालक के आग्रह पर जब सुजाता 
जी मंच पर आईं तो उनका चेहरा प्रसन्नता से उदीप्त था । उन्होने बोलना प्रारम्भ किया ’’सम्मानीय मंच एवं सभागार में उपस्थित श्रोताओं 
मुझे बोलना नहीं आता, मैं तो एक सामान्य सी महिला हूँ ,जिसे आप सब ने इतने ऊँचे स्थान पर बैठा दिया है। सच तो यह है कि मैं 
जो भी करती हूँ वह बस मेरे हदय की पुकार है । क्या करूँ मेरा मन ही ऐसा है कि यदि मेरे आस पास कोई दुखी हो तो मुझसे रहा 
नहीं जाता ,जब तक मैं उनका दुख दूर न कर लूँ मुझे न नींद आती है न भूख लगती है । कहते हैं कि दीन दुखियों में तो ईश्वर  
बसता है ।मेरे लिये तो पर हित सरिस धरम नहीं भाई ………‘‘कहते कहते भावावेश में सुजाता जी का गला भर आया और वह 
रूमाल से आँखें पोछती हुई आ बैठीं हाल ताली की गड़गड़ाहटों से गूँ उठा । श्रोता उनकी महानता के आगे नतमस्तक थे ।
यद्यपि किसी ने कुछ दबी आवाज में कहा‘‘ ये सब दिखावा और ढोग है’’ पर जलने वाले कहाँ नहीं होते।  
कार्यक्रम की समाप्ति पर मीडिया और अनेक सामाजिक संस्थाओं ने मधुमक्खी के समान उन्हे घेर लिया । एक ओर वो इण्टरव्यू दे 
रही थीं, दूसरी ओर कैमरे पर कैमरे क्लिक हो रहे थे ,।
अब तो यह हाल था कि किसी दिन उन्हें किसी संस्था के सांस्कृतिक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में जाना होता ,तो किसी दिन नारी 
समस्याओं के समाधान करने ।

एक दिन उनके पति विनय ने कहा ‘‘आज सुबह सुबह कम्प्यूटर ले कर क्यों बैठ गयी चाय तो पी लो’’
‘‘ अरे अभी ‘‘ हमारे पूज्य’’ संस्था के रमेश जी आने वाले हैें ,कम से कम उस संस्था के बारे में नेट पर कुछ पता कर लूँ कि 
किस स्टैंडर्ड की है।’’
संस्था को शहर के अनेक गणमान्य लोंगों का संरक्षण प्राप्त था।‘‘ संस्था तो महत्वपूर्ण है।’’ सुजाता जी ने सोचा।
रमेश जी आये तो सुजाता जी ने अपना मंतव्य रखा ’’ रमेश जी कितने दुख की बात है कि जिन माता पिता ने जन्म दिया कितने कष्ट 
सह कर बड़ा किया उन्हे ही इस अवस्था में इस प्रकार जीवन बिताना पड़ रहा है । ‘‘ 
‘‘ आप बहुत नेक काम कर रहे हैं मैं इस संस्था को बीस हजार रुपये देना चाहती हूँ ।’’
रमेश जी उनका निर्णय सुन कर नत मस्तक हो गये। उन्होंने बताया ’’सुजाता जी हम चाहेंगे कि आप स्वयं आकर अपने हाथों से 
सभी वृद्ध जनों को वस्तुएं भेंट करें ।‘‘
’’मैं अपने दान का प्रचार नहीं चाहती पर अपने बुजुर्गों का आशीर्वाद और सान्निध्य अवश्य चाहती हूं ।‘‘सुजाता जी ने कहा ।
अंत में तय हो गया कि सुजाता जी द्वारा दिये धन से रमेश जी आश्रम के सदस्यों की आवश्यकता का सामान ले आएंगे और 30 तारीख 
को प्रातः दस बजे सुजाता जी स्वयं आ कर उन्हे भेंट करेंगी ।
नियत तिथि और समय पर सुजाता जी वृद्धाश्रम ’’हमारे पूज्य‘‘ पहुँच गईं ।लाल किनारे की सफेद कलफ लगी साड़ी में वो सौम्यता की 
प्रतिमूर्ति लग रही थीं ।आश्रम में कीर्तन चल रहा था । आश्रम के पदाधिकारी उनके स्वागत के लिये दौड़े ,पर उन्होने इशारे से उन्हें रोक दिया और स्वयं कीर्तन कर रहे लोगों के समूह में सबसे पीछे बैठ गईं ।कीर्तन समाप्त होने पर रमेश जी ने वहाँ उपस्थित लोगों को 
सम्बोधित करते हुये कहा ’’ हमारे आश्रम के सम्मानित सदस्यों, आपको यह जान कर हर्ष होगा कि हमारे नगर की जानी मानी, ‘सेवा 
श्री’ सम्मान से सम्मानित, समाज सेविका श्रीमती सुजाता जी आज हमारे मध्य पधारी हैं ,वो आपके साथ मिल कर आपके दुख बाँटना 
चाहती हैं । अतः कृपया आप सभी लोग बरगद के पेड़ वाले चबूतरे पर आ जाइये।’’
अधिकांश बुजुर्ग निर्बल लग रहे थे ,कोई अपने साथी का हाथ थाम कर चल रहा था तो किसी वृद्ध को ठीक से दिखाई न पड़ने के कारण 
वहाँ के कार्मिक सहारा दे कर ला रहे थे ।उनके कपड़े अधमैले और पुराने लग रहे थें। रमेश जी एक एक की गाथा और समस्याएं संक्षेप 
में बताते जा रहे थे और सुजाता जी उनके पाँव छू कर ससम्मान उन्हे कपड़े फल दवा आदि दे रही थीं ।
उन के आशीर्वाद से सिंचित सुजाता जी को असीम आत्मसंतुष्टि की अनुभूति हो रही थी । 
एक एक कर के सभी सदस्यों को भेंट वितरित कर दी गयी अन्त में रमेश जी ने चौंक कर कहा ’’अरे कृष्णा जी और उनकी पत्नी 
कहाँ गयीं?‘‘
’’ कीर्तन में तो बैठे थे ‘‘किसी ने कहा।
’’मैंने उन दोनो को अपने कमरे की ओर जाते देखा है ‘‘
’’जब मैंने सबसे यहाँ आने को कहा था तो उन्हें कमरे में जाने की क्या जरूरत थी अब सुजाता जी के पास इतना समय नहीं है कि 
इंतजार करें‘‘ रमेष जी ने खीज कर कहा,फिर सृजाता जी से बोले ‘‘उनका हिस्सा आप मुझे दे दीजिये मैं दे दूंगा ‘‘।
सुजाता जी ने कहा ’’नहीं नहीं मैं एक भी बुजुर्ग का आशीर्वाद मिस करना नहीं चाहूंगी।शायद उनकी तबियत ठीक नहीं हो।चलिये मैं उनके कमरे में दे देती हूँ।”

रमेश जी बताते जा रहे थे ’’ ये कृष्णा जी और उनकी पत्नी एक अच्छे परिवार से हैं उनका एकमात्र बेटा उच्च पद पर है ।पर बेटे बहू 
के स्वार्थ की हद देखिये कि उन्हें कोठी खरीदने के लिये पेैसे कम पड़ रहे थे तो इन भोले भाले माता पिता ने अपना घर बेच कर पैसे 
दे दिये कि सब उसी का तो है। पर जब वो उनके साथ रहने आये तो उनको विशाल कोठी में पीछे नौकर का कमरा दे दिया और नौकर 
से भी बदतर व्यवहार किया ।‘‘ 
‘‘ वेरी बैड ’’सुजाता जी ने कहा।
रमेश जी ने बताया ’’ अरे यही नहीं उन्हें न तो किसी के सामने आने की अनुमति थी न ही उनके बीमार पड़ने पर ठीक से इलाज 
कराया जाता था ।’’ 
‘‘ अच्छा ’’ रमेश जी बोल रहे थे पर सुजाता जी का ध्यान तो फोटो क्लिक कर रहे पत्रकारों पर था।
रमेश जी बोले‘‘ एक दिन जब दुर्व्यवहार और अपमान बर्दाश्त से बाहर हो गये तो उन्होंने बिना बताये घर छोड़ दिया और कहीं 
किराये के कमरे में रहने लगे ।बेटे बहू ने उन्हे खोजने का विशेष प्रयास भी नहीं किया ।’’
अचानक सुजाता जी को लगा कि उन्हें कुछ कहना चाहिये तो वह बोली ‘‘ वह यहाँ कैसे आ गये?’’
‘‘एक दिन कृष्णा जी की पत्नी को तेज बुखार था तो वो दवा लेने निकले और कम दिखाई पड़ने के कारण गढ्ढे में गिर गये और हड्डी टूट 
गई ।तब किसी भले मानस ने उन दोनो को यहाँ पहुँचाया।’’
कमरे पर पहुँच कर रमेश जी दरवाजा खोल कर अंदर गये और बोले ’’ कृष्णा जी आप यहाँ क्यों आ गये ये देखिये सुजाता जी स्वयं 
आपसे मिलने आ गईं ।‘ ‘उन्होने मुड़ कर देखा तो सुजाता जी का चेहरा सफेद पड़ गया था ।इससे पूर्व कि रमेश जी कुछ कहते 
सुजाता जी बोलीं ‘‘मुझे चक्कर आ रहा है ’’और बिना एक क्षण गँवाए पलट कर बाहर चली गई।
रमेश जी अंदाजा लगा रहे थे कि कोमल मन की सुजाता जी कृष्णा जी की कहानी से विगलित हो गयी हैं और उधर सुजाता जी अपनी 
अदूरदर्शिता को कोस रही थीं कि वह क्यों नही नहीं सोच पाई कि कृष्णा जी उनके श्वसुर गोपाल कृष्णा वैद्य भी हो सकते हैं जो वर्षों 
पहले उनकी सास के साथ घर छोड़ कर चले गये थे। संभवतः उन लोगों ने उन्हें देख लिया था इसीलिये उनके सामने पड़ने से बचने के 
लिये ही वो कमरे में चले आये थे।
आज वो पहली बार अपने सास श्वसुर की आभारी थीं कि उन्होंने किसी कोे सुजाताजी से अपना रिश्ता नहीं बताया। 

3 thoughts on “कहानीकार अलका प्रमोद

  1. बहुत ही उत्तम सृजन आदरणीया 🙏 हृदय स्पर्शी कहानी आज हर घर की और संस्कृति की

  2. एकल परिवार और उच्च शिक्षा के नाम पर भारतीय संस्कृति और नैतिकता का पतन ही हो रहा है ।माता पिता अब बोझ बन गये। छोटे बड़े सभी शहरों में वृद्धाश्रम इसका प्रमाण है।

  3. अलका जी , आपकी ये कहानी पहले भी कहीँ
    पढ़ी थी । पुनर्पाठ भी मन को छू गया। समाज में व्याप्त स्वार्थऔर मिथ्या आडम्बर का सच्चा चित्रण किया है। साधुवाद !!

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