कवयित्री : दिव्या त्रिवेदी

0

🌼उम्मीद की दस्तक🌼

सुनो जिंदगी!
ये मंदिर की घंटियाँ जो हैं ना,
मेरे लिए महज पूजा का
एक उपक्रम मात्र नहीं हैं ये।
ये तो वो दस्तक हैं
जिसके बजते ही,
मन्नत के दरवाजे खुलते हैं।

इसकी टन्न की आवाज,
हृदयगति को एक उम्मीद देती है
तुम्हें पा लेने की।

इनको छू कर महसूस होता है,
मानों मेरी आत्मा ने
दुआओं में तुम्हारा स्पर्श किया है।

सुनो जिंदगी, मिल जाओ जिस दिन
उस दिन, फिर से स्पर्श करूँगी
मंदिर की इन घंटियों को
जैसे आज तुम्हें मांगते हुए किया है।

ये घंटियाँ भी झूम जाती हैं,
चोट खा कर मेरी ही तरह।
जैसे चोट खाना पहली शर्त है
खुशियों को पा लेने की।
जैसे ठेस लगना, पहला पायदान है
मंजिल तक पहुंच जाने की।

सौगुनी प्रीत

तेरे इर्द-गिर्द मन डोल रहा
तुझसे मौन शब्द कुछ बोल रहा।

सुखद स्वप्न की तुम अनुभूति
नयनों का अंजन तेरी प्रीती।

धड़कन की लय बन प्रीत – गीत
नित-नित नाम तेरा गाए मनमीत।

मन -दर्पण के हो गए सौ टुकड़े
हर टुकड़े में है छवि तुम्हारी।

मन दर्पण के सौ टुकड़ों में चन्दा
निरखे तुझको तेरी चंद्रप्रभा री।

एक से सौ तुझे निरख-निरख
पिया प्रीत सौगुनी हुई हमारी।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *