कहानी:मन जीता तो जग जीता

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  लेखिका सुधा आदेश

 ‘‘क्या बात है, रमा…?’’ हमेशा खुशमिजाज और जिंदादिल रमा को अंदर आकर चुपचाप बैठते देखकर चित्रा से रहा नहीं गया, वह पूछ बैठी ।
“अनामिका की वजह से परेशान हूँ ।’’-रमा
‘‘क्या हुआ अनामिका को?’’-चित्रा
‘‘वह डिप्रेशन की शिकार होती जा रही है ।’’ -रमा
‘‘पर क्यों और कैसे?’’-चित्रा
‘‘उसे किसी ने बता दिया है कि अगले 2 वर्ष उसके लिए अच्छे नहीं रहेंगे ।’’ -रमा
‘‘भला कोई भी पंडित या ज्योतिषी यह इतने विश्वास से कैसे कह सकता है ? सब बेकार की बातें हैं, मन का भ्रम है ।’’-चित्रा
‘‘यही मैंने अनामिका से  कहा तो उसने कहा…ममा, यह सच नहीं होता तो आर्थिक मंदी अभी ही क्यों आती ? वह दूसरी कंपनी ज्वाइन करना चाह रही थी। उसे आशा थी कि अनुभव के आधार पर अच्छी पोस्ट और पैकेज मिल जाएगा।

पर अब इसी कंपनी में उसके सिर पर तलवार लटकी हुई है!! तुम तो जानती हो वह बचपन से ही बहुत एम्बिसियस है ।’’-रमा 
‘‘सफलता-असफलता, सुख-दुःख  तो  जीवन की अस्थायी अवस्थाएं हैं रमा, जिनसे कभी न कभी सबको गुजरना पड़ता है, फिर इसमें इतनी हताशा और निराशा क्यों? जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए सोच भी सकारात्मक होनी चाहिए। कहा भी गया है कि मन जीता तो जग जीता । ’’-चित्रा ने कहा
‘‘यही मैं भी अनामिका से कहती हूँ पर वह  सुनती ही नहीं है ।  मैं और अभिजीत तो उसे समझा-समझाकर हार गए …। तेरे पास एक आस लेकर आई हूँ। तुम उसकी आइडियल हो…शायद तुम्हारी बात सुनकर, समझकर उसके मन में पलती ग्रंथि दूर हो जाये …।’’ -रमा बोली
 ‘‘ आजकल के बच्चे जरा-जरा सी बात को दिल से लगाकर अवसादग्रस्त हो उठते हैं इसमें दोष बच्चों का भी नहीं है । दरअसल आजकल मीडिया या पत्र-पत्रिकाएं भी इन अंधविश्वासों को बढ़ाने में पीछे नहीं हैं ।” -चित्रा बोली
” तुम सच कह रही हो चित्रा, मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि अनामिका के मन में पलती ग्रंथि को कैसे दूर करूँ ? उसे अवसाद से कैसे बचाऊँ ?” निराश स्वर में रमा ने कहा ।

‘हर समस्या का कोई न कोई हल होता है, तुम चिंता मत करो। मैं सोचती हूँ कि कैसे क्या कर सकती हूँ !!’’ चित्रा ने कहा ।
रमा अपनी बात कहकर चली गई पर चित्रा के मनमस्तिष्क में उसकी कही बातें घूम रही थीं । वह सोच नहीं पा रही थी कि अपनी वर्षों पुरानी अभिन्न सखी की समस्या का समाधान कैसे करे? किसी के  मनमस्तिष्क में कोई बात घुस जाती है तो उसे निकालना आसान नहीं होता!! चित्रा को 28 वर्ष पूर्व का वह दिन याद आया जब वह इस कालोनी में अपने नए घर में आई थी…
” दीदी, मैं रमा, आपकी पड़ोसिन…आपका हमारी इस कॉलोनी में स्वागत है। आज का आपका नाश्ता,खाना हमारे घर है ।” -रमा
“धन्यवाद रमा…आप परेशान मत होइए, सब इंतजाम हो जाएगा । “-चित्रा
” दीदी प्लीज, मना मत कीजिये । हमें सदा साथ-साथ रहना है। मैं तो बस नए रिश्ते को एक आकार देने की कोशिश कर रही हूँ ।” -रमा
रमा के व्यवहार के कारण कुछ ही दिनों में चित्रा की रमा से गहरी आत्मीयता कायम हो गई। उसके बच्चे शिवम और सुहासिनी रमा के आगे पीछे घूमते रहते और वह भी उनकी हर इच्छा पूरी किया करती । यहां तक कि उसके स्कूल से 

लौटकर आने तक  शिवम और सुहासिनी को वह अपने पास ही रखने लगी थी जिसके कारण वह बच्चों की तरफ से निश्चिंत हो गई थी ।
विवाह के 12 वर्ष पश्चात जब रमा गर्भवती हुई तो उसने अपनी खुशी उसके साथ शेयर करते हुए कहा था …
” दीदी, जीवन में आये इस खुशनुमा पल के लिए मैं और अभिजीत कहाँ-कहाँ नहीं भटके। डाक्टर भी कुछ समझ नहीं पा रहे थे क्योंकि हर जांच सामान्य ही निकलती…। मेरी सासूमाँ अभिजीत पर दूसरे विवाह के लिए दबाव बनाने लगी थीं पर इन्होंने कहा कि अगर बच्चे का सुख जीवन में लिखा है तो हो जाएगा, नहीं तो हम दोनों ऐसे ही खुश हैं। इनकी बात सुनकर वह  नाराज होकर चलीं गईं तथा दोबारा लौटकर नहीं आईं।” आंसू पोंछकर उसने पुनः कहा…
“दीदी,कहने को तो यह शिक्षित लोगों की कालोनी है पर मैं इन सबके लिए अशुभ हूँ । किसी के घर कोई शुभ कार्य होता है तो मुझे बुलाते ही नहीं हैं। आपने ही सुहासिनी और शिवम के साथ मुझे समय गुजारने दिया। शायद उन्हीं के कारण ही मुझे यह तोहफा मिलने जा रहा है ।”  
धीरे धीरे डिलीवरी का समय आ गया । जब रमा को लेबर पेन शुरू हुआ तो अभिजीत ने उसका ही दरवाजा खटखटाया था । नर्स ने भी बधाई देते हुए अनामिका को  उसकी ही गोदी में डाला था । 

रमा को पुत्री हुई है, सुनकर उसकी सास आईं । उन्होंने उसे देखते ही कहा,”इतने दिनों बाद जनी भी तो बेटी…परिवार का वारिस बेटी नहीं, बेटा होता है…।”
 ‘माँ, हम तो बस यही चाहते थे कि जो भी हो स्वस्थ हो । हम तो बेहद खुश हैं कि हमारे घर सरस्वती आ गई है…।’ रमा कहना चाहकर भी उनसे नहीं कह पाई । 
नन्हीं अनामिका जब भी रमा को परेशान करती, वह उसको यह कहते हुए उसकी गोद में डाल जाती, “दीदी, मुझ से तो यह संभाली ही नहीं जाती, जब देखो तब रोती ही रहती है। कहीं इसके पेट में तो दर्द नहीं हो रहा है या यह बहुत शैतान हो गई है, अब आप ही इसे संभालिए…या यह तो दूध ही नहीं पीती है, थोड़ा बहुत पीती है तो उसे भी उलट देती है, अब मैं क्या करूं?”
हर समस्या का समाधान उससे पाकर रमा संतुष्ट हो जाती थी । शिवम और सुहासिनी को तो मानो कोई खिलौना मिल गया था। स्कूल से आकर जब तक वे उससे खेल नहीं लेते तब तक उनका खाना हजम ही नहीं होता था। अनामिका भी उन्हें देखते ही ऐसे उछलती मानो उनका ही इंतजार कर रही हो । कभी वे अपने हाथों से उसे दूध पिलाते तो कभी प्राम में बिठाकर पार्क में घुमाने ले जाते । रमा भी शिवम और सुहासिनी के हाथों उसे सौंपकर निश्चिंत हो जाती थी ।
धीरे-धीरे अनामिका चित्रा से इतनी हिलमिल गई थी कि अगर रमा उसे किसी बात पर डांटती तो मौसी-मौसी कहते हुए वह 

उसके पास आकर मां की ढेरों शिकायतें कर डालती और वह भी उसकी मासूमियत पर निहाल हो जाती । उसका यह प्यार और विश्वास अभी तक कायम है शायद यही कारण है कि अपनी हर छोटी बड़ी खुशी वह उसके साथ शेयर करती रहती है किन्तु पिछले कुछ महीनों से वह अनामिका में आए परिवर्तन को नोटिस तो कर रही थी पर यह सोच कर ध्यान नहीं दिया कि शायद काम की वजह से वह उससे मिलने नहीं आ पाती होगी । वैसे भी एक निश्चित उम्र के पश्चात बच्चे अपनी ही दुनिया में रम जाते हैं तथा अपनी समस्याओं के हल स्वयं ही खोजने लगते हैं। इसमें कुछ गलत भी नहीं है पर आज रमा की बातें सुनकर, यह सोचकर वह आश्चर्यचकित रह गई कि  इतनी जहीन और मेरीटोरियस स्टूडेंट के मनमस्तिष्क में यह फितूर कहां से समा गया है ?
 चित्रा एक दिन अनामिका से बातें करने के इरादे से  रमा के घर गई पर जो अनामिका उसे देखते ही बातों का पिटारा खोलकर बैठ जाती थी,उसे देखकर नमस्ते करके अंदर चली गई। औरों से बात न करे तो ठीक पर उससे, जिसे वह मौसी कहकर न सिर्फ बुलाती ही नहीं वरन मान भी देती है, से उसका मुंह चुराना, उसके चेहरे पर छाई हताशा निराशा, मन में चलती उथल-पुथल उसकी अनुभवी आंखों से छिप पाई । चित्रा समझ नहीं पा रही थी कि वह कैसे क्या करे ? रमा को दिलासा देकर वह दुखी मन से घर लौट आई ।
उस दिन के पश्चात चित्रा के कुछ दिन बेहद व्यस्तता में बीते । उसके स्कूल में बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए समय-समय पर किसी नामी हस्ती को बुलाकर विविध विषयों पर व्याख्यान आयोजित होते रहते थे। 

व्यक्तित्व को आकर्षक और खूबसूरत कैसे बनाएं…’ विषय पर विचार व्यक्त करने के लिए इस बार एक जानीमानी हस्ती नीरा कौशल आ रही थीं ।
आयोजन को सफल बनाने की जिम्मेदारी मुख्याध्यापिका ने चित्रा को सौंपी थी। जिस काम को उसे करना होता था, उसे पूरा करने के लिए वह पूरे मनोयोग से जुट जाती थी और पूरा करके ही दम लेती थी पर इस बार वह स्वयं में वैसी एकाग्रता नहीं ला पा रही थी। रमा और अनामिका उसके मनमस्तिष्क में ऐसे छा गए थे कि  वह चाहकर भी न उनकी समस्या का समाधान ढूंढ पा रही थी और न ही उस समस्या को मनमस्तिष्क से निकाल पा रही थी ।
आखिर वह दिन आ ही गया… नीरा कौशल ने अपना व्याख्यान प्रारंभ किया….”व्यक्ति का सर्वांगीड़ विकास न केवल उसकी सुंदरता,चालढाल, वेशभूषा, वाकशैली वरन उसके मानसिक विकास तथा उसकी अवस्था पर भी निर्भर होता है । चालढाल, वेशभूषा के द्वारा व्यक्ति अपने बाहरी आवरण को खूबसूरत और आकर्षक बना सकता है किन्तु व्यक्ति के व्यक्तित्व का सौंदर्य उसका मस्तिष्क है…अगर मस्तिष्क स्वस्थ नहीं है,सोच सकारात्मक नहीं है तो उसका विकास सतही ही होगा। 
अगर किसी व्यक्ति के मन में यह विचार आ गया कि उसका समय ठीक नहीं चल रहा है तो या तो वह निष्क्रिय होकर बैठ जाएगा या वह अपनी सफलता की कामना के लिए कभी मंदिर, मसजिद दौड़ेगा या  ज्योतिषी से उपाय पूछेगा । 

ऐसे समय अगर कोई उसे उसके दोषपूर्ण ग्रह नक्षत्रों का हवाला देते हुए हीरा, पन्ना, पुखराज आदि रत्नों की अंगूठी या लॉकेट पहनने के लिए कहे और उसे सफलता मिलने लगे तो उसे लगेगा कि यह सफलता उसे अंगूठी या लॉकेट पहनने के कारण मिली है। 
दरअसल उसकी जो मानसिक ऊर्जा अन्य कार्यों  में लगती थी अब उसके काम में लगने लगी है। उसका एक्शन, उसकी परफारमेंस में गुणात्मक परिवर्तन ला देता है । उसकी अच्छी परफारमेंस से उसे सफलता मिलने लगती है । सफलता से बढ़ा उसका आत्मविश्वास उसके पूरे व्यक्तित्व को ही बदल देता है ।”
नीरा कौशल ने आगे क्या कहा चित्रा को सुनाई नहीं दिया । एकाएक उसके मन में एक योजना आकार लेने लगी ।  उसे ऐसा लगने लगा कि उसे एक ऐसा सूत्र मिल गया है जिसके सहारे वह अपने मन में चलते द्वंद्व से मुक्ति पा सकती है।
दूसरे दिन वह रमा के पास गई तथा बिना किसी लाग लपेट के उसने अपने मन की बात कह दी । उसकी बात सुनकर रमा ने कहा… 
‘‘ तुम जानती हो कि अभिजीत इन बातों को नहीं मानते । वह  कहते  हैं न जाने क्या फितूर समा गया है इस लड़की के दिमाग में… काम की हर जगह पूछ है, अच्छा काम करेगी तो सफलता तो स्वयं मिलती जाएगी ।’’

‘‘मैं भी कहां मानती हूँ इन सब बातों को…पर अनामिका के मनमस्तिष्क का फितूर तो निकालना ही होगा। बस, इसी के लिए एक छोटा सा प्रयास या कहो एक प्रयोग करना चाहती हूँ ।’’
‘‘ठीक है पर मुझे  क्या करना होगा?’’-रमा
‘‘मेरी जानपहचान की एक ज्योतिषी हैं, कल मैं उनको बुला लेती हूँ। तुम अनामिका और उसकी कुंडली लेकर आ जाना ।’’
नियत समय पर रमा अनामिका के साथ आ गई। ज्योतिषी ने उसकी कुंडली देख कर कहा, ‘‘इस कुंडली का जातक बहुत यशस्वी तथा उच्चप्रतिष्ठित है। गुरु ग्रह अवश्य कुछ रुकावट डाल रहा है पर परेशान होने की बात नहीं है। गुरु ग्रह के व्यवधान को टालने के लिए पूजा करनी पड़ेगी । पूजा के खर्च के रूप में 5100 रुपए लगेंगे । आप ऐसा करें, इस बच्ची के हाथ से मुझे 5100 का दान करा दें तथा वृहस्पतिवार के दिन इसकी इंडेक्स फिंगर में पुखराज की अंगूठी पहना दें ।’’
प्रयोग चल निकला । एक दिन रमा बोली, ‘‘चित्रा, तुम्हारी योजना कामयाब रही। अनामिका में आश्चर्यजनक परिवर्तन आ गया है। जहां कुछ समय पूर्व वह हमेशा निराशा में डूबी, बुझी-बुझी बातें करती  थी, अब  संतुष्ट रहने लगी है । अभी कल ही कह रही थी कि ममा, विपिन सर कह रहे थे कि तुम्हें डिवीजन का हैड बना रहा हूँ ।’’

रमा के चेहरे पर छाई संतुष्टि जहां चित्रा को सुकून पहुंचा रही थी वहीं उसे इस बात का एहसास भी करा रही थी कि किसी व्यक्ति की खुशी और दुख ग्रह नक्षत्रों पर नहीं वरन उस व्यक्ति की मानसिक अवस्था पर निर्भर होते हैं। अब वह रमा से कुछ छिपाना नहीं चाहती थी…आखिर मन का बोझ वह कब तक मन में छिपाए रहती।
‘‘रमा, मैंने तुझसे एक बात छिपाई पर क्या करती, इसके अलावा मेरे पास कोई अन्य उपाय नहीं था ।’’ मन कड़ा कर  चित्रा ने कहा ।
‘‘क्या कह रही है तू…कौन सी बात छिपाई, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है ।’’
‘‘दरअसल उस दिन तथाकथित ज्योतिषी ने जो  अनामिका से कहा, वह मेरे निर्देश पर कहा था । वह कुंडली बांचने वाली ज्योतिषी नहीं वरन मेरे स्कूल की ही एक अध्यापिका है, जिसे मैंने सारी बातें बताकर, मदद मांगी थी तथा वह भी सारी घटना का पता लगने पर मेरा साथ देने को तैयार हो गईं थी।’’ चित्रा ने रमा को सब सच बताकर झूठ के लिए क्षमा मांग ली और अंदर से लाकर उसके दिए 5100 रुपए उसे लौटा दिए ।
‘‘मैं नहीं जानती झूठ सच क्या है । बस, मैं इतना जानती हूँ कि तुमने जो किया अनामिका की भलाई के लिए किया । वही किसी की बातों में आकर भटक गई थी । तुमने तो उसे राह दिखाई है फिर यह ग्लानि और दुख कैसा? जो कार्य एक भूले भटके इनसान को सही राह दिखा दे वह रास्ता कभी गलत हो ही नहीं सकता । मैं तुझे विश्वास दिलाती हूँ कि एक न एक 

दिन मैं अनामिका को भी यह बात बता दूंगी, जिससे भविष्य में वह ऐसे किसी चक्कर में न पड़े।’’ रमा ने उसकी बातें सुनकर उसे गले से लगाते हुए कहा ।
रमा की बात सुनकर चित्रा के दिल से एक भारी बोझ उठ गया। भले ही सही रास्ता दिखाने के लिए उसे झूठ का सहारा लेना पड़ा पर उसे इस बात की संतुष्टि थी कि वह अपने मकसद में कामयाब रही है। एक बार उसे फिर लगा…सच मन जीता तो जग जीता, अनामिका इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है 

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