बुद्ध का बुद्धत्व – दिव्या त्रिवेदी

2

बुद्ध का बुद्धत्व

 

वास्तव में बुद्ध से पहले यशोधरा बुद्ध हो गई थीं, जिस दिन बुद्ध लौट कर आए थे उस दिन यशोधरा की नहीं वास्तविक परीक्षा तो बुद्घ की थी,
बुद्धत्व की थी..।
यशोधरा ना मिटती तो बुद्ध शायद बुद्ध ना हो पाते…।

बुद्ध क्या अपनी पत्नी से मिलने आए थे, क्या एक सन्यासी अपनी पत्नी से मिलने जाता है,, नहीं..। बुद्ध तो यशोधरा से इसी त्याग की कामना लेे कर आए थे, क्यूंकि बुद्ध को ये बोध था कि जब तक यशोधरा भी हृदय से उनका परित्याग नहीं करेंगी तब तक वो पूर्ण रूप से बुद्ध नहीं हो पाएंगे..। संसार गौतम को पूर्ण रूप से बुद्ध के रूप में स्वीकार करे इसके लिए यशोधरा द्वारा उनका परित्याग आवश्यक था..। बुद्ध तो भिक्षा मांगने आए थे अपनी पत्नी से अपने पूर्ण बुद्धत्व की…।

यशोधरा ने बुद्ध को अपने पति के रूप में देखा भी था क्या, उन्हें ये एहसास था कि बुद्ध उनका पत्नि के रूप में उसी दिन परित्याग कर चुके थे जिस दिन उन्होंने घर छोड़ने का निर्णय मन में लिया था।
यशोधरा ने सदैव इस बात का गर्व किया था, “सिद्धि हेतू स्वामी गए यह गौरव की बात”।
पर यशोधरा ने उन्हें ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद भी पत्नी बन कर प्रश्न किया,, और बुद्ध को इतना कुछ सुना दिया।
यशोधरा की जली कटी बातें और यशोधरा के प्रश्न बुद्ध के बुद्धत्व की परीक्षा थे, वर्षों बाद एक साधारण मनुष्य जब अपनी पत्नी और अपनी संतान से मिलने आता है तो सब भूल जाता है,, किन्तु बुद्ध के साथ ऐसा नहीं हुआ वो तटस्थ भाव में रहे,, स्थिर अपने ज्ञान के साथ…।

जब यशोधरा ने जान लिया की उनके सामने खड़ा है वो कपिलवस्तु का राजा सिद्धार्थ नहीं वो पूर्ण रूप से बुद्ध हो चुका है, तब उसी क्षण उन्होंने खुद को मिटा देने का निर्णय कर लिया..। क्यूंकि, जब स्त्री प्रेम करती है तो अपना अस्तित्व भुला कर प्रेम करती है,, जब प्रेम के बदले प्रेम पाती है तब भी अपने अस्तित्व को मिटा कर अपने प्रेम से मय हो जाती है,, और जब उसके प्रेम को अस्वीकृति मिलती है तब भी वो अपने ही अस्तित्व को मिटा डालती है,, क्यूंकि स्त्री स्वयं को मिटाना जानती है इसीलिए मिटा पाती है..।
यशोधरा ने भी यही किया, उसने अपने आप को मिटा दिया, क्यूंकि जब एक स्त्री एक पुरुष को अपना सर्वस्व समर्पण करती है तब वो उसी के अस्तित्व से जीती भी और मरती भी है,, उसी के अस्तित्व से अपना अस्तित्व समझती है,, यशोधरा ने सिद्धार्थ को अपना सर्वस्व समर्पण किया था और उस सिद्धार्थ का अस्तित्व कब का मिट चुका था,, जो उसके सामने खड़ा था वो वो इंसान था ही नहीं जो यशोधरा का पति था,, बल्कि एक योगी, एक साधक, एक बुद्ध था..।
यशोधरा चाहती तो कुछ ना कहती चुप रहती,, लेकिन ऐसा नहीं किया उन्होंने..। यशोधरा ने बुद्ध को कायर कहा ताकि संसार कभी उन्हें कायर ना कह सके, और ये परीक्षा थी बुद्ध के क्रोध की, एक साधारण पुरुष एक स्त्री द्वारा खुद को कायर कहा जाना कभी सहन नहीं कर सकता है,,। बुद्ध को पुत्र का चेहरा दिखाया ये परीक्षा थी बुद्ध की कमजोरियों की, एक साधारण पुरुष संसार में किसी से पिघले ना पिघले अपनी संतान के लिए पिघल जाता है,,।
खुद भी सन्यासिनी हो गई ताकि संसार ये ना कहे कि देखो सिद्धार्थ तो संसार के दुखों से दुखी होकर बुद्ध तो हो गया पर जिसने अपनी पत्नी और दुधमुंहे बालक का दुख नहीं समझा उनके कष्ट नहीं हर सका वो संसार का कष्ठ क्या हरेगा,, संसार का दुख क्या समझेगा..। यशोधरा ने खुद को मिटाया और अपने पुत्र को भी ताकि बुद्ध के बुद्धत्व का मान रह सके..। संसार कभी भी उन्हें किसी भी दृष्टिकोण से नीचे ना देखे..।
यशोधरा का मिटना ही बुद्ध को बनाता है..।
जब तक यशोधरा ना मिटती, बुद्ध बुद्ध नहीं होते..।

हिंदी भाषा की जानी-मानी  लेखिका  दिव्या त्रिवेदी


  • पढ़ने के बाद Post के बारे में Comment अवश्य लिखिए .

विशेष :- यदि आपने website को subscribe नहीं किया है तो, कृपया अभी free subscribe करें; जिससे आप हमेशा हमसे जुड़े रहें. ..धन्यवाद!

2 thoughts on “बुद्ध का बुद्धत्व – दिव्या त्रिवेदी

Leave a Reply to Chandra Mohan Sharma Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *