हाँ मैं हूँ 

करो प्रताड़ित
सहूं अगर तो कहना
नारी महान हो तुम
तोड़ दूँ चुप्पी तो कहना
हाय ….!
लज्जाहीन हो तुम
लूँ सिसकियाँ तो कहना
संस्कारों की मूर्ति हो तुम
ना सहमूं तो कहना
हाय …!
किस बंजर आँगन की कली हो तुम
करूँ वार पर प्रहार तो कहना
चरित्रहीन हो तुम
किन -किन रूपों पर करोगे वार
हज़ारों रूपों का एक स्वरूप हूँ मैं
ना नर्म , ना कठोर , ना बलिदान मुद्रित
चिन्हों का प्रतीक हूँ मैं
प्रहारों से बनी तीक्ष्ण रूप हूँ मैं
म्यान में छिपी तेज़धार तलवार हूँ मैं
तप से तपी बिम्ब हूँ मैं
आधुनिकता में जन्मी चण्डी का स्वरूप हूँ मैं

 

 कवियित्री  शहज़ादी खातून


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1 thought on “हाँ मैं हूँ – शहज़ादी खातून 

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