मैं स्वयं

 

परिभाषित नहीं करना
अब तुम मुझे क्षण शब्दों में
मैं स्वयं परिभाषा बनूंगी
वर्ण-वर्ण कर नहीं
अब मैं आकस्मिक
वृहद वाक्य बनूंगी
नीरव का वह आख़िरी ‘रव’ को भी
मैं भंग करूंगी
अब आहिस्ता नहीं
मैं आकस्मिक ही कोलाहल भंग करूंगी
तुम फिर वर्णों से अक्षर,
अक्षर से शब्द, शब्द से वाक्यों में
परिभाषित ना करना मुझे
मैं स्वयं ही अपनी ऊर्जा
उज्ज्वलित करूंगी
तुम मेरी स्पाई ना बनना
मेरी दशा देखकर
मैं स्वयं ही स्वयं की स्थिरता भंग करूंगी
मैं स्वयं ही स्वयं से ‘स्वयं’ को भिन्न करूंगी
मैं ही “मैं” की सार्थकता परिभाषित करूंगी!

 

 कवियित्री  शहज़ादी खातून


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