ममता की देहरी पर जाने क्यों पहरे – प्रमिला भारती
ममता की देहरी पर जाने क्यों पहरे ममता की देहरी पर जाने क्यों पहरे, सहमे सिसके हम बस...
ममता की देहरी पर जाने क्यों पहरे ममता की देहरी पर जाने क्यों पहरे, सहमे सिसके हम बस...
माँ डर मुझे बहुत लगता है अब डर मुझे बहुत लगता है । माँ डर मुझे बहुत लगता है ।...
मैं बरस-बरस बरसूं रोज़-रोज़ मैं बरस-बरस बरसूं रोज़-रोज़ नित नवीन रंग-ढंग से तुम पर हर रोज़ आसमां से ......
सत्य या भ्रम अर्ध सुप्त सी लिए अवस्था, कब तक जागृति भान करोगे? चन्द घरों को बना व्यवस्थित, कब तक...
બાળપણ હિંચકાને ઠેસ મારી, ઉપર નીચે.. આવર્તન, કૂદકો મારી "કોઈ" સાથે બેઠું. આગળ પાછળ આંદોલન, અમે..તો પુરજોશમાં ઝૂલતાં'તા... કલાત્મક કડાં...
दिन बचपन के दिन लौटा दे मेरे बचपन के कोई याद आते हैं दिन बचपन के दिन बचपन के...
नदियों का जल प्रतिक्षण प्रतिपल, करता कल कल, हो चिर चंचल बहता निश्छल, नदियों का जल। हिम अंचल से, निकल...
ज़िन्दगी के पन्नों से ... ग़म और ख़ुशी या ख़ुदा! ज़िन्दगी इतने ग़मों से न भर देना जो हम अपनों...
ये जो तबस्सुम है तबस्सुम भी एक शादाबी का निशाँ होती है, कभी मौजूं-ए-गुफ़्तगू, कभी दिल का सामां होती...
मृगजळ मन वेडे गुणगुणते हे आयुष्याचे गाणे। त्या समजावू मी कैसे , मृगजळ आहे, नव्हे तराणे ।।धृ।। तू येता...