तुम आओ ना

हूं खड़ी बेजान बुत सी,
तुम जान बन के आओ ना।

हूं अनुत्तरित प्रश्नावली मैं,
तुम जवाब बन के आओ ना।

हूं तमस गहरी रात की मैं,
तुम चन्द्र से जगमगाओ ना।

हूं धूप में झुलसी तरू मैं,
तुम घटा घन बन छाओ ना।

प्यासी धारा सी घूमती मैं,
तुम बरसात बन भिंगाओ ना।

हूं आलिंगन उदास सी,
तुम बद्ध होने आओ ना।

हूं नींद खाली आंख की,
तुम ख्वाब से सज जाओ ना।

हूं सूना आंगन मन का मैं,
तुम मित बन के आओ ना।

छूटे विरह की वेदना तब,
तुम प्रीत कुछ छलकाओ ना।

हूं किसी वीरान सी मैं,
तुम गांव से बस जाओ ना।

हूं बेशक मरीचिका मैं,
तुम मृग तृष्णा जगाओ ना।

हूं लता पता घनघोर वन मैं,
तुम मयूर, हिरण बन जाओ ना।

हूं भूल – भुलैया भटकाव मैं,
तुम पथप्रदर्शक बन जाओ ना।

हूं निरर्थक शब्द समूह मैं
तुम अर्थ भाव बन जाओ ना।

हूं हीन अपने अस्तित्व से मैं,
तुम अस्तित्व मेरे बन जाओ ना।

हूं खड़ी बेजान बुत सी,
तुम जान बन के आओ ना।

 

दिव्या त्रिवेदी हिंदी भाषा की जानी-मानी  कवियित्री हैं  


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9 thoughts on “तुम आओ ना – दिव्या त्रिवेदी

    1. विरह की वेदना, मिलन की आस और आह्वान, आशा भरी दृष्टि से देखती एक सुंदर कविता । बधाई हो ।

  1. अति सुंदर अभव्यक्ति।आपको बहुत बहुत बधाई।

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