तुमने मुझे दिल से उतारा नहीं है – दिव्या त्रिवेदी

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तुमने मुझे दिल से उतारा नहीं है

 

जानता है दिल, तुमने मुझे
दिल से अभी तक उतारा नहीं है।
टूटना मेरा और बिखर जाना
सच है, ये तुम्हें गवारा नहीं है।

तुम खुदा के जैसे, रूठे हो
कहो तुम्हें, मैं कैसे मनाऊं!
इबादत कर लूं, इश्क़ मैं अपना
या चाहत को, पूजा मैं बनाऊं।

रब को भी, कोई भूल सका है
बोलो तुम्हीं, तुम्हें कैसे भुलाऊं।
पाने खोने की कोई चाह नहीं
चाहूं बस तुम्हें, पाऊं ना पाऊं।

तेरे ही दिल का, दर्द-ए-समंदर
मेरी आंखों में, खारा पानी उतरा।
डूबते तरते, सब ख़्वाब इसी में
पिघले देखो, कतरा – कतरा।

बिन आहट के, चुपके – चुपके
तेरा दिल में मेरे, आना – जाना।
सुनी है दिल ने, तेरी हर ख़ामोशी
बिन आवाज़, तेरा मुझे बुलाना।

तू खुश है अगर, तो भुला दे मुझे
मोम से, पत्थर बना दे मुझे।
ना फिर से कभी, पिघलूंगी मैं,
हर चोट से और भी निखरूंगी मैं।

 

दिव्या त्रिवेदी हिंदी भाषा की जानी-मानी  कवियित्री हैं  


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