मैं बरस-बरस बरसूं रोज़-रोज़ : आशा चंपानेरी
मैं बरस-बरस बरसूं रोज़-रोज़
मैं बरस-बरस बरसूं रोज़-रोज़
नित नवीन रंग-ढंग से तुम पर
हर रोज़ आसमां से … प्यार प्यार प्यार सा
रोज़ कभी सूरज की किरन से
खट्टी-मीठी धूप सा,
कभी-कभी चांद से
शीतल चांदनी सा,
बरसात में बादल से
बूंद-बूंद पानी सा,
बंसत रंगीन फूलों से
धीमी-धीमी मध्यम-मध्यम ख़ुश्बू सा,
अगाध समुद्र की गहराई से
लहर-लहर बुलबुला सा,
ज़मीन की मिट्टी से
सोंधी-सोंधी महक सा,
वो हिमशिला पर्वत से
कण-कण बर्फ़ के ओले सा।
कभी तेज़, कभी धीमी गति पवन से
गर्म ठंडे एहसास सा,
पंछियों की चहचहाट से
किल-बिल, किल-बिल कोलाहल सा,
बस यूं ही बरसती रही
बरसती रही…..बरसती रही
कवियित्री आशा चंपानेरी
खुदा की रहेमत यूहीं
हमेशा बनी रहे,….
यूहीं बस आप हमेशा
बरसती रहे…..
Thank you so much ji.💐
Suprbbb asha you are amazing your all Shari all kavita are suprbb proud to be your friend not friend childhood friends
Happy friendship day in advance 😘🤗
Thank you my dear nitu 😘🤗
Good one keep it up……..
Thank you so much dear digant
Nice Asha apa ashe hi tarki karte raho ye hamari apko sub kamana haye
Thanks a lot my dear Best Friend Arun 💐💗😊
Very nice, keep it up,