Break up Story : वो बेवफ़ा समझता रहा – राजुल
रिश्ते नाते
वो बेवफ़ा समझता रहा
– राजुल अशोक
जेवियर्स कॉलेज में वर्ष 1995 का सेशन शुरू हो चुका था। मेधा ने देर से ज्वाइन किया था। वो दूसरे शहर से आई थी। उसके विभाग के प्रमुख कुछ नाराज़ हुए, पर उन्होंने मेधा को क्लास में जाने की इजाज़त दे दी।
मेधा क्लास में आकर बैठ गई। उसे सब सपना सा लग रहा था। वो एक छोटे शहर की लड़की थी, जो अपना भविष्य बनाने के लिए मुंबई तक आ गई थी। पहले घर वालों ने उसी शहर में रहकर पढ़ने पर ज़ोर दिया, पर मेधा की ज़िद के सामने उन्हें हार मानने पड़ी।
अब मेधा को खुद को साबित करना था कि वो अकेले रहकर भी भटकेगी नहीं। पढ़ाई पर अपना ध्यान केन्द्रित रखेगी और कुछ बनकर दिखाएगी।
अगला क्लास ख़ाली था, इसलिये समय बिताने के लिए वो बाहर आकर बैठ गई। बाहर सीनियर्स किसी नाटक की तैयारी कर रहे थे। मेधा उत्सुकतावश देखने लगी। नाटक दिलचस्प था, पर सबसे ज़्यादा आकर्षक था वो लम्बा लड़का जो सबको निर्देश दे रहा था। उसके हाथ में मोटी सी फ़ाइल थी और उसका ध्यान नाटक के हर पात्र पर था।
मेधा सब तरफ से बेख़बर होकर बस सामने देख रही थी, तभी उस लड़के के हाथ से फ़ाइल गिरी, उसमें से कुछ पन्ने हवा में उड़ते हुए मेधा की ओर आए। मेधा ने देखा वो लड़का कुछ कह रहा था, पर वो सुन नहीं पा रही थी। मेधा भौचक्की सी देख रही थी। अब वो लड़का उसे इशारे से कुछ कह रहा था। मेधा ने ध्यान से देखा तो उसे समझ में आया कि वो उससे पन्ने उठाने को कह रहा था। मेधा ने फुर्ती से दौड़कर पन्ने उठाये और झिझकते हुए उसकी ओर बढ़ी।
लड़के ने उसके हाथ से पन्ने लेते हुए कहा ’हाय! मेरा नाम देव है’, और अपना हाथ बढ़ा दिया। मेधा को समझ में नहीं आया क्या करे। देव ने तब तक उसका हाथ पकड़कर कहा ’तुम फ्रेशर हो ना?’।
मेधा ने डरते हुए सर हिलाया। ’तो अपना नाम बताओ।’ ’मेधा’ उसने कहा। देव ने उसका हाथ छोड़ते हुए कहा, ’अब से किसी सीनियर को अपना नाम बताने में इतनी देर मत लगाना’ और वापिस मुड़ गया।
नाटक का रिहर्सल होने लगा। मेधा देव को देखती रही। ये लड़का उसे अन्य लड़कों से अलग लगा था। उसने अपनी डायरी में लिखा ’देव ने उसका मज़ाक नहीं उड़ाया था, सीनियर होने का रौब भी नहीं जमाया था।’ मेधा को देव अच्छा लगा।
अब वो रोज़ खाली पीरियड में नाटक का रिहर्सल देखने बाहर आ जाती। इस बीच कई बार देव से उसकी बात भी हुई। फिर नाटक के मंचन वाले दिन वो देव को बधाई देने गई। उस दिन देव ने उससे मुस्कुराकर बात की और बस स्टॉप तक उसके साथ आया। उस दिन दोनों ने काफी बातें की। मेधा ने वो दिन भी अपनी डायरी में नोट कर लिया।
धीरे-धीरे मेधा देव को नज़दीक से जानने की कोशिश करने लगी। उसे ये तो पता था कि देव के पिता नहीं हैं। उसके ऊपर अपनी माँ और छोटे भाई की ज़िम्मेदारी है, जिसके लिए वो पार्ट टाइम नौकरी करता है, पर हमेशा अच्छे नम्बरों से पास होता है और कॉलेज की हर सांस्कृतिक गतिविधि में भाग लेता है। टीचर्स ही नहीं बल्कि पूरे कॉलेज की शान है। मेधा ने ये भी अपनी डायरी में नोट कर लिया।
जैसे-जैसे मेधा की डायरी के पन्ने भरते गये वो देव के करीब आती गई। अब देव के साथ लायब्रेरी में उसका वक़्त गुज़रता। वो कैंटीन में साथ बैठते और होस्टल के लिए निकलते वक़्त वो उसके साथ ही बस स्टॉप तक जाती।
मेधा और देव की नज़दीकी के बारे में अब कॉलेज के साथी भी जान गये थे, पर सिर्फ़ मेधा ही जानती थी कि इतनी नज़दीकी के बावजूद कभी देव ने उसका फ़ायदा उठाने की कोशिश नहीं की थी। इस बात से उसके मन में देव के लिए और प्यार उमड़ आता था। उसे इंतज़ार सिर्फ़ उस दिन का था, जब देव उससे दिल की बात कहेगा।
एक दिन मेधा को उदास देखकर देव ने वजह पूछी तो मेधा की आँखे भर्र आईं। उसने बताया कि उसकी माँ बहुत बीमार है। उन्हें कैंसर हो गया है और उन्हें इलाज के लिए मुंबई लाया जा रहा है।
परीक्षाएं हुई और रिज़ल्ट निकलने की तारीख़ पास आने लगी साथ ही अस्पताल में माँ की तबियत बिगड़ने लगी। मेधा की माँ को सिर्फ़ एक ही चिंता थी कि काश आँखे बंद होने से पहले वो मेधा की डोली उठते देख पाती। मेधा के पापा ने मेधा के लिए रिश्ते देखने शुरू कर दिए। मेधा अपने मन की बात संकोचवश माता पिता से कह नहीं पाती। दूसरी ओर देव की ओर से देर होती देख उसका मन बैठने लगता।
जिस दिन रिज़ल्ट निकला, उसी दिन मेधा के माता पिता ने उसके लिए एक लड़का पसंद कर लिया। मेधा को लगा अब देव से अपनी बात उसे ख़ुद ही करनी पड़ेगी। यही सोचकर वो देव से मिलने उसके घर गई, पर अपनी शादी की बाद खुलकर देव से न कह सकी।
इधर, बातों-बातों में देव ने कहा, ’मैं तो अभी शादी के बारे में सोच भी नहीं सकता। मेरे लिए घर की ज़िम्मेदारियां पहले हैं।’ जाते हुए उसने मेधा को बताया कि वो एक नौकरी के लिए इंटरव्यू देने नागपुर जा रहा था। उसने कहा ’लौटकर आने के बाद वो मेधा से ढेर सारी बातें करेगा।’
मेधा लौट आई। उसी दिन माँ की हालत बिगड़ी। आनन-फानन में मेधा की सगाई हुई और दो हफ़्ते बाद शादी का मुहूर्त निकाला गया।
देव जब लौटकर आया तो मेधा सगाई की अंगूठी पहने चुपचाप बैठी थी। देव हैरान था। उधर मेधा ने अपने होठ सी लिए थे। शादी में जब उसकी सहेलियों ने देव के आने की सूचना दी, तो मेधा ने उससे मिलने को कहा। देव आया तो मेधा ने उसे अपनी डायरी देते हुए कहा। बस ये तुम्हे सौंपनी थी।
मेधा की शादी हो गई। उसकी विदाई के बाद देव ने डायरी संभाल कर अलमारी में रख दी। एक दिन सफ़ाई करते वक़्त वो पुरानी डायरी उसके हाथ में आई तो देव ने डायरी के पन्ने पलटने शुरू किये। ये जान कर वो चौंक गया कि मेधा भी उसके लिए वही सोचती थी, जो उसके मन में था, लेकिन मन की बात देव कभी कह नहीं पाया। मेधा उसे पुकारती रही और उसने अनसुना कर दिया। वो उसे बेवफ़ा समझता रहा, जबकि वो खुद मेधा की वफ़ा का सिला उसे नहीं दे पाया।
हिंदी-अंग्रेज़ी साहित्य की रचनाकार और RJ राजुल
“वो बेवफ़ा समझता रहा ” ,एक अत्यंत भावप्रवण कहानी।राजुल अशोक जी को बधाई। मेधा और देव अपने आसपास के पात्र लगे।कालेज लाइफ़ में अक्सर ऐसे स्नेह संबंधों को जन्म मिलता है लेकिन उनमें कम ही होते हैं जिनमें गंभीरता और एक दूसरे के लिए समर्पण का भाव हो !इसीलिए वे टिक नहीं पाते।यह जो सब कुछ ठीक रहकर भी झिझक या संकोच का भाव है वह मध्यवर्गीय शालीन मानसिकता का परिचायक होता है।लेकिन यह भी बताना चाहूंगा कि अब ऐसे युगल वैचारिक स्तर पर इतने मेच्योर हो चले हैं कि वह जो झीनी सी लगभग अदृश्य शील संकोच की रेखा है वह सम्बंध बनाने और निभाने में आड़े नहीं आ रही है।फिर भी अपवाद तो हर समय रहा करता है।
कथा लेखिका को बधाई।