प्यार का ये कैसा सिला : राजुल
ब्रेक-अप स्टोरी
प्यार का ये कैसा सिला –
– राजुल
ट्रिंग ऽऽऽ..अलार्म घड़ी मिष्ठी को जगा रही थी। मिष्ठी ने आँखे बंद किये हुए अलार्म बंद किया, लेकिन तभी मोबाईल पर मैसेज अलर्ट सुनकर उसे आँखें खोलनी पड़ी। उसने मोबाइल उठाकर देखा। अतुल का मैसेज था ’गुड मॉर्निंग।’
मिष्ठी मुस्कुरा कर बिस्तर से उठ गई। अतुल कभी अपना नियम नहीं तोड़ता। दो महीने पहले उनकी दोस्ती हुई थी और आज वो और अतुल बेस्ट फ्रेंड्स बन चुके हैं। अतुल रोज़ हर सुबह मिष्ठी को जगाने के लिए गुड मॉर्निंग ज़रूर करता है और इसी से मिष्ठी को याद आता है कि अब उसे उठ जाना चाहिए, वरना ऑफ़िस को देर हो जाएगी। आज भी वो अतुल को याद करती हुई नहाने की तैयारी करने लगी।
वाकई अतुल जैसा दोस्त मिलना मुश्किल है। वो उसका इतना ख़्याल रखता है, उसे हर कदम पर मदद करता है। क्या वो सिर्फ़ दोस्त हैं। ये सवाल मिष्ठी ख़ुद से पूछती है, लेकिन इसका जवाब उसे अतुल से चाहिए और उसे लगता है कि जल्द ही उसे उसका जवाब मिल जाएगा।
आज मिष्ठी का जन्मदिन है। अतुल जानता है कि मिष्ठी को सरप्राईजेस पसंद हैं। शायद उसका 24वां जन्मदिन ज़िन्दगी का सबसे सुन्दर सरप्राईज लेकर आये, सोचते हुए मिष्ठी मुस्कुरा दी और ऑफ़िस के लिए निकल पड़ी।
मिष्ठी और अतुल के ऑफ़िस आसपास हैं। दोनों स्पोर्ट्स क्लब के पीछे बने काल सेंटर्स में काम करते हैं। वहीं, दोनों पहली बार एक रस्टोरेंट में मिले थे। लंच टाइम था। रेस्टोरेंट की सारी टेबल्स भरी हुई थीं। मिष्ठी अपने खाने में व्यस्त थी, तभी उसे अतुल की आवाज़ ने चौंका दिया ’अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो मैं यहाँ बैठ जाऊं?’ खाते-हुए मिष्ठी ने सर हिला दिया। अतुल बैठ गया। उसने ख़ुद अपना परिचय दिया, तो पता लगा दोनों के ऑफ़िस तो बहुत पास हैं। तबसे हर रोज़ लंच टाइम में अतुल मिष्ठी को मिल जाता और ज़्यादातर उसी के साथ बैठता। धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती गहराती गई।
आज इस दोस्ती को शायद नया नाम मिल जाए, यही सोचते हुए मिष्ठी रेस्टोरेंट पहुंची, तो अतुल वहां पहले से बैठा था। दोनों ने खाना आर्डर किया, लेकिन मिष्ठी का मन बैठा जा रहा था। लंच ख़त्म हो रहा था और अतुल ने उसे ’बर्थ डे विश’ करने के अलावा कुछ नहीं कहा था। बेकार ही ऑफिस आई। आज घर में ही रहती तो अच्छा था, लेकिन उसे अतुल के जवाब और उसके सरप्राइज़ का इंतज़ार था।
उसकी उम्मीद टूटने वाली थी पर तभी अतुल ने कहा, ’शाम को पूरा वक़्त मेरे साथ रहना पड़ेगा। कोई फ़ोन काल भी नहीं लेनी है। एक ज़रूरी बात कहनी है।’
मिष्ठी ऑफ़िस लौट आई। वो सोच रही थी ’अभी तो कुछ कहा नही, शाम को कौन सा तीर मार देगा। अतुल के अंदर हिम्मत ही नही है।’ पर उसी शाम वाकई अतुल ने उसे चौंका दिया। उसने मिष्ठी के लिए टेबल रिज़र्व करा रखी थी। उधर मिष्ठी ने केक काटा और इधर अतुल ने घुटनों पर बैठकर उसके सामने अंगूठी पेश कर दी। मिष्ठी के कदम ख़ुशी के मारे ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। उसे लग रहा था वो आसमान में उड़ रही है।
उस दिन से मिष्ठी और अतुल पहले से ज़्यादा करीब आ गये। अतुल को मिष्ठी अपने घर भी ले गई। उसके माता पिता को भी अतुल अच्छा लगा। दोनों ने तय किया था वक़्त आने पर शादी की बात घरवालों के सामने रखेंगे। इंतज़ार का ये वक़्त उन्हें और करीब ला रहा था। दोनों मन से ही नहीं, तन से भी एक दूसरे के हो चुके थे।
दोनों एक दूसरे का चेहरा देखकर मन की बात जान लेते थे और इसीलिए पिछले दो दिनों से मिष्ठी बेचैन थी। ना जाने क्यों अचानक अतुल बेहद खामोश हो गया था। मिष्ठी के बार-बार पूछने पर भी जब अतुल की ख़ामोशी नहीं टूटी, तो मिष्ठी उसे शाम को समुद्र किनारे ले गई। वहां बाहों में बाहें डाल मिष्ठी ने जब अतुल को अपनी कसम दे दी, तो उसे बताना पड़ा कि उससे काफ़ी जूनियर एक लड़की को प्रमोशन देकर उसका बॉस बना दिया गया है। अतुल का कहना था कि वो लड़की बड़े अफ़सर के साथ चिपकी रहती है। वीकेंड्स पर उसके साथ बाहर रात भी बिताती है। इसी का फ़ायदा उसे मिला है।
उस शाम मिष्ठी देर तक अतुल को समझाती रही, पर शायद अतुल पर कोई फ़र्क नहीं पड़ा। दिन-ब-दिन उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। अब तो वो मिष्ठी पर भी झुंझला जाता, ’तुम लड़कियां, त्रिया चरित्र करके सब कुछ पाना चाहती हो।’ मिष्ठी हैरान रह जाती, लेकिन अरुण के दुखते मन को चोट ना पहुंचे, इसलिए उसकी बात को हंसकर टाल देती। वैसे अन्दर से वो काफी परेशान थी। उसे समझ में नहीं आता कि क्या कहकर अतुल का मनोबल बढ़ाये।
अतुल के अंदर इतनी कडुवाहट भरी होगी, उसने कल्पना भी नहीं की थी। अब वो लंच के समय चुपचाप रहते। उनकी शामें भी ख़ामोश गुज़रतीं। अतुल ऑफिस में हो रही बेइंसाफ़ियों पर कुढ़ता रहता। वो अपनी बॉस को भला-बुरा कहता और उसके चरित्र पर किसी न किसी बहाने लांछन लगाता रहता। मिष्ठी उसकी बातें सुनती रहती और उसका ध्यान कहीं और लगाने की कोशिश करती।
इसी बीच एक दिन मिष्ठी को अपने प्रमोशन का लेटर मिला। जब उसने अतुल को बताया तो वो ख़ुश नहीं हुआ, बल्कि उसका चेहरा उतर गया। उसने मिष्ठी को अजीब नज़रों से देखा, उसे बधाई तक नही दी। मिष्ठी को उसका व्यवहार बेहद अनजाना सा लगा। उस शाम जब तक वो दोनों साथ रहे, अतुल ने उससे ठीक से बात भी नही की। बस, पूरे समय सिरदर्द की शिकायत करता रहा।
इसके बाद तो अतुल जैसे बदल ही गया। वैसे ही वो अपनी बॉस को लेकर उखड़ा-उखड़ा रहता था, अब तो उसने जब-तब मिष्ठी को भी ताने देना शुरू कर दिया। एक दिन उसने यहाँ तक कह दिया ’जैसे मुझसे मुस्कुरा कर बात करती हो, वैसे ही अपने बॉस के सामने भी इठलाया करो, तुम्हें साल भर के अन्दर ही दूसरा प्रमोशन मिल जाएगा।’
उसकी इस बात से मिष्ठी के दिल को गहरी चोट लगी। उस रात मिष्ठी सो नहीं सकी। बिस्तर पर करवटें बदलते हुए वो सोच रही थी ’अतुल उसके बारे में इतनी गिरी हुई बात कैसे कह सकता है? क्या उसे अपनी मिष्ठी पर भरोसा नही है? वो तो उसे प्यार करता है।’ फिर मिष्ठी ने अपने मन को समझाया कि हो सकता है, ऑफ़िस के तनाव के कारण ही अतुल ने ऐसा कह दिया होगा। अब अतुल को इसका पछतावा भी हो रहा होगा।
अगले दिन जब वो अतुल से मिली, तो उसने फिर उसके प्रमोशन को लेकर ताना मारा। उसकी आंखें भर आईं। पर अतुल ने तो जैसे इस ओर ध्यान ही नही दिया, बस अपने तानों से उसके दिल को छलनी करता रहा। मिष्ठी ने अपने मन को मजबूत किया। उसने अतुल समझाने की कोशिश की। अपने प्यार का वास्ता दिया। लेकिन अतुल अपनी बात को ग़लत मानने को तैयार ही नहीं था। वो उसे झिंझोड़ रहा था, खींच रहा था और बार-बार यही कह रहा था, ’मुझे सफ़ाई दे रही हो या जवाब मांग रही हो, अपने दिल में झाँक कर देखो, तुम्हें प्रमोशन क्यों मिला है।’
मिष्ठी किसी तरह आंसू रोकती घर आ गई। अगली सुबह उसे जगाने अतुल का मैसेज नहीं आया। मिष्ठी ने पहले उसे फ़ोन करने के लिए नंबर मिलाया और फिर काट दिया।
उसके बाद दोनों अजनबी की तरह लंच पर मिलते, ख़ामोशी से अपना लंच ख़त्म करते और वापस अपने-अपने ऑफ़िस लौट जाते। मिष्ठी अपने प्रति अतुल के रूखे व्यवहार से विचलित होती, फिर सोचती ’शायद उसे अपनी ग़लती का एहसास हो जाए और उनके बीच फिर से पहले की तरह ख़ुशियां लौट आएं।’ लेकिन ऐसा नही हुआ। दिन प्रतिदिन दोनों के बीच का तनाव बढ़ता रहा।
उस शुक्रवार मिष्ठी ने एक हफ़्ते की छुट्टी ले ली। रविवार को वो ई-मेल चेक कर रही थी कि अतुल के मेल पर निगाह गई। लिखा था, ’बॉस के साथ वीकेंड पर हो, बधाई हो। अगला प्रमोशन पक्का।’ मिष्ठी दुखी हो गई। अतुल उसके बारे में इतना घटिया सोच रहा है? उसका दिल छलनी-छलनी हो गया। उस दिन से उसने अतुल से दूर रहना शुरू कर दिया।
अब वो लंच के लिए रेस्टोरेंट नहीं जाती, बल्कि ऑफ़िस में ही मंगा लेती। शाम को भी वो देर से बाहर निकलती, लेकिन एक शाम अतुल से उसका सामना हो ही गया। अतुल पर जैसे भूत सवार था। वो उसे गालियाँ दे रहा था। जलील कर रहा था। मिष्ठी किसी तरह उसका हाथ छुड़ाकर भागी, लेकिन अतुल घर तक आ पहुंचा। इतनी बेईज्ज़ती और बदनामी से मिष्ठी का मन अतुल की ओर से विरक्त हो चुका था।
उसने अतुल के ऑफ़िस, उसके दोस्तों यहाँ तक कि पुलिस में भी अतुल की शिकायत दर्ज़ करवा दी।
अतुल को नौकरी छोड़नी पड़ी। दोस्तों ने उसे छोड़ दिया और वो ख़ुद अपने प्यार को छोड़ चुका था। इसके बाद वो कहाँ गया, कोई नहीं जानता।
मिष्ठी की शादी मुंबई में ही हुई है। अक्सर पति के साथ बीच पर टहलते हुए उसे अतुल जैसा कोई शख़्स दिखता है, तो वो काँप जाती है। उसे समझ में नहीं आता की प्यार का इतना भयंकर परिणाम क्यों हुआ। क्या उनका रिश्ता टूटने के पीछे अतुल का चोट खाया अहम् था, या उसे वाकई मिष्ठी के चरित्र पर शक था?
राजुल
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Very beautiful story