वातायन से –

आँख की पुतली

                                                                                                                           – राजुल

अचानक विभा की नींद खुल गई। उसने चादर ओढ़ ली। ठण्ड सी लग रही थीं। उसने  आसपास देखा। वह अपने बिस्तर पर थी। उसके बगल में तानी नहीं बल्कि रवींद्र सो रहे थे। उसके पति रवीन्द्र। तानी तो ससुराल में होगी।

विभा ने दोबारा लेटते हुए सोचा । शायद उसे भी ठण्ड लगी है। पता नहीं चादर ओढ़ी होगी  या नहीं। विभा जानती है उसकी बेटी जब सोती हैं  तो  सुबह ही आँखें खोलती है। अक्सर रात में उठ-उठकर विभा ही उसकी चादर ठीक करती, जिसे वह  नींद में फिर फेंक देती थी। पता नहीं, अब उसे कौन  देखता होगा। कहीं ठण्ड न लगती हो।

विभा बेचैन हो गई। अब लेटना मुश्किल था। उसका जी हुआ दौड़कर तानी को  देख आये। फिर वह जैसे ख़ुद पर ही हंस दी। तानी तो ससुराल में है। वहां इस समय विभा कैसे जा सकती है, सुबह फ़ोन करेगी। ये सोचते हुए विभा ने खुद को तसल्ली देने की कोशिश की और दुबारा आँखे बंद कर सोने की कोशिश करने लगी। पर उसके दिमाग में ये बात जैसे जम गई थी कि तानी ने चादर हमेशा की तरह फेंक दी है और वह ठण्ड खा रही है। वह अपना ध्यान हटाने की कोशिश करने लगी।

कल उसे श्वेता  के यहाँ जाना है। बड़े दिनों से बुला रही है। उसकी अच्छी दोस्त हैं। तो कल सारे दिन वह उसी के साथ रहेगी और जब लौटेगी तब थोड़ा  समान लेते हुए आएगी। तानी के लिए ’पफ़्स’ बनाने हैं। उसे बहुत पसंद हैं। फिर तानी…। विभा ने कसकर आँखे बंद कर ली। वह कितना भी चाहे पर अपने मन से तानी को दूर नहीं कर पाती।

तानी उसकी इकलौती बेटी है। विभा को याद है कि जब तानी होने वाली थी तब वह कितनी नासमझ थी। कभी भारी समान उठा लेती तो कभी तेज़ी से सीढ़ियां उतरने लगती। घर के बड़े उसे समझाते, ’धीरे, चल¨।’

तानी के जन्म के समय विभा बहुत बीमार हो गई। उसकी जान बचाना मुश्किल हो गया था। विभा को याद है कि बेहोश होने से पहले उसके मन में आने वाले मेहमान के लिए कितना आक्रोश था। जब होश में आई तो नन्ही तानी माँ की गोद में थी।

तानी दुनिया में आई तब तक विभा खुद को  माँ के रूप में स्वीकार नहीं कर पाई थी। अस्पताल में जब तानी रात में रोने लगती तो विभा जैसे खीझ जाती। तब माँ समझती, ’विभा, ये नन्हा बच्चा ईश्वर का वरदान है। इसे सहेजने की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है।’ माँ के समझाने से इतना असर तो हुआ कि विभा तानी को गोद उठाने लगी। धीरे-धीरे, वो नन्हे हाथ उसे भले लगने लगे थे। वो चमकती हुई आँखें उसके मन में उजाला करने लगी थीं। वह मासूम किलकारी विभा के होठों की हंसी बनने लगी थी।

विभा तानी और  रवीन्द्र के साथ मगन हो गई थी। उसकी सहेलियां अब उससे शिकायत करती ’तू तो  कभी फ़ोन भी नहीं करती’, तो विभा मुस्कुरा देती और सोचती अब वक़्त ही कहाँ मिलता है।

विभा को  याद है कि कैसे एक बार तानी के नाखून काटते वक़्त थोड़ा सा कच्चा नाखून कट गया था। तानी चीखकर रोई तो विभा का कलेजा काँप गया। उस दिन वह खुद तानी के साथ फूट-फूटकर रोई थी और तब से वह पल-पल ये ध्यान रखने लगी की तानी को कभी चोट न लगे।

तानी बीमार होती तो वह सारी रात जागती। बार-बार उसे उठकर देखती। रवीन्द्र उसकी सेहत की फ़िक्र करते, लेकिन वह सब भूल कर सिर्फ़ नन्ही तानी की सेवा में जुटी रहती। धीरे-धीरे तानी बड़ी हो  रही थी और विभा के अन्दर की माँ भी परिपक्व होती जा रही थी। तानी स्कूल जाने लगी तो विभा की दिनचर्या उसी के इर्द-गिर्द सिमट गई। उसके उठने से पहले ही विभा उठ जाती। जाने से पहले उसे अपने हाथ से नाश्ता खिलाती। दौड़ते हुए उसका सारा काम करती और तानी के स्कूल जाने के बाद उसके लौटकर आने की तैयारियों में जुट जाती। विभा हमेशा इसी फ़िक्र में रहती थी कि तानी को कोई  परेशानी न हो। उसे याद है, माँ की इस आदत से तानी कभी-कभी चिढ़ सी जाती। उसे झटक भी देती लेकिन फिर दौड़कर माँ से लिपटती।

स्कूल से तानी कॉलेज पहुँचती तो विभा को लगा उसे कोई सहेली मिल गई है। घर आते ही तानी पूरे दिन की बातें माँ को सुनाती। विभा काम करते हुए इस कमरे से उस कमरे में जाती, तो तानी भी उसके साथ डोलती रहती।

देखते ही देखते तानी इतनी बड़ी हो गई कि एक प्रतिष्ठित संस्थान में ऊंचे पद पर नौकरी करने लगी। विभा को याद है, एक दिन जब उसकी बहन ने तानी के लिए लड़का बताया था तो विभा जैसे आसमान से गिरी थी। उस दिन उसने तानी को गौर से देखा था और तब उसे धुन सवार हो गई थी कि अब तानी का विवाह करना है। हालांकि तानी अभी विवाह नहीं करना चाहती थी, लेकिन विभा अपने निर्णय पर दृढ़ थी।

उसके विवाह के लिए विभा इतनी सतर्क थी कि जब तानी के लिए रिश्ता आता तब विभा छानबीन शुरू कर देती। जिस लड़के को घर में सबने पसंद किया उसे भी विभा की कड़ी परीक्षा से गुज़रना पड़ा था। विभा ने लड़के को परखने के लिए उससे इतनी बातें की थी कि बाद में सब विभा को चिढ़ाते थे ’तुम तो  वकील  की तरह उससे जिरह कर रहीं थीं। वो तो कहो भला लड़का है वरना भाग जाता।’ विभा कहती, ’उसके भागने के डर से क्या मैं चुप बैठ जाती? अपनी बेटी दे रही हूँ। आँख की पुतली है मेरी तानी। उसे ऐसे ही किसी को नहीं सौंपने वाली।’

सच ही था उसे लगता कहीं कोई ऐसी बात उसकी नज़र से छिपकर निकल न जाए, जिससे तानी का भविष्य ख़राब हो। उसने अच्छी तरह जांच परख कर ही बेटी का विवाह किया था, लेकिन जब वो विदा हुई तो विभा एकदम ख़ाली हो गई।

सूनी आँखों से घर को देखती। खाना खाने बैठाती, तो रो पड़ती। पता नहीं मेरी तानी ने खाया होगा या नहीं। वो  मांगती नहीं, उसे तो ज़बरदस्ती खिलाना पड़ता है।’ रवीन्द्र उसे दिलासा देते, समझाते। तानी से फ़ोन पर बात करवाते, तब जाकर विभा खाना खाती।

आज तानी के विवाह को  दस दिन बीत गये हैं लेकिन आज भी वह रात में जगी बैठी है और तानी के बारे में सोच रही है।

अचानक रवीन्द्र की आँखे खुल गईं ’तुम अभी तक जग रही हो?’ ’हाँ नींद  खुल गई’ ’तानी को याद कर रही हो?’ जवाब में विभा ने उन्हें डबडबाई आँखों से देखा। रवीन्द्र बोले, ’सो जाओ विभा, वर्ना तबियत ख़राब हो जाएगी।’ विभा ने कहा, ’सुनो जी, तानी को कहीं ठण्ड तो नहीं लग रही होगी?’

रवीन्द्र ने विभा को असहाय दृष्टि से देखा और बोले, ’ठण्ड लगेगी तो वो ख़ुद चादर ओढ़ लेगी। अब तानी अपने घर की हो गई है। हमने उसका कन्यादान कर दिया है। मैं ये नहीं कहता कि तुम उसे याद मत करो, लेकिन इस तरह परेशान होगी तो बहुत सारी समस्याएं पैदा हो जाएंगी।’ विभाके आंसू थम ही नहीं रहे थे। रवीन्द्र ने उसे पानी पिलाया और आश्वासन दिया कि कल वो लोग तानी से मिलने जाएंगे। तब जाकर विभा की आँख लगी।

इसी तरह मन को बहलाते हुए एक महीना गुज़र गया। आज तानी आने वाली है। विभा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं है। उसने भाग दौड़कर सारा इंतिजाम किया है। तानी के पसंद की चादर से लेकर तानी के मनपसन्द खाने तक की तैयारी है।

तभी ’डोर बेल’ बजी। ’आ गई, विभा ने सोचा और लगभग दौड़ते हुए गेट खोलने पहुंच गई। सामने उसकी तानी खड़ी थी। अपने पति के साथ। उसका चेहरा और खिल गया था, और मुस्कुराते होठों पर अब एक शर्मीली सी हंसी थी। विभा का दिल भर आया। उसने खींचकर तानी को गले लगा लिया। कभी उसे चूमती। कभी सहलाती।

विभा को आज सब कुछ मिल गया था। उसकी आँख की पुतली ख़ुश थी। ये देख उसे अन्दर से संतोष मिला था। अब उसकी बेचैनी जाने कहाँ चली गई थी।

तानी जब वापिस जाने लगी तो विभा का मन उदास हुआ। उसकी आँखे छलक आई, लेकिन उसने बड़े प्यार से बेटी को विदा किया। उस दिन विभा को बड़े चैन की नींद आई। ये देखकर रवीन्द्र बहुत ख़ुश  लग रहे थे।

राजुल


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20 thoughts on “आँख की पुतली : राजुल

  1. Aakh ki putli .
    Ye ak bahut achchi kahani thi…is kahaani me ak Maa ka jo mamtaa hotaa hai use pradarshit kiyaa gayaa hai…aur jo Ravindra ne kahaa ki is tarah tum pareshaan rahogi to problem paidaa hogi…..Bilkul 100% Sahi kahaa …ye mamtaa itnaa bhi n badh jaaye ki kal ke liye pareshaani paidaa kar de….mai ye nahi kahti ki ye itnaa mamtaa thik nahi…But yehi mamtaa barabar khush rahe isliye jaruri hai ki beti se ab thoda jyaada space liyaa jaaye taaki beti jahaa hai vaha ke rang dhang me dhale…vahaa ke log ko bhi apni maa baap ke tarah samjhe …..sabko apnaa banaa le apne prem se……..

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