आत्मकथा : मेरे घर आना ज़िन्दगी (52)
भोपाल में चार लाख कायस्थ हैं और ढेरों कायस्थ सभाएं। जाति संबंधी उत्सवों, सभाओं से दूर ही रहती हूं। किसी को अपनी जाति या गोत्र या रिश्तेदारों के बारे में जानकारी देना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं। लेकिन इस बार विजय कांत वर्मा जीजाजी के दूर के रिश्तेदार खरे जी का आग्रह था कि मैं उनके द्वारा स्थापित चित्रांश वरिष्ठ नागरिक कायस्थ सभा के आयोजन में कविता पाठ करूं। इस बार मंच पर कवि केवल मैं और श्रोता कविता रसिक। अद्भुत अनुभव था। विशिष्ट अतिथि के रूप में भाजपा सांसद आलोक संजर भी मौजूद थे ।वह एक बेहतरीन शाम थी जब मुझे ढेर सारे श्रोता मिले।
धीरे-धीरे भोपाल का भूगोल समझ आ रहा है। भोपाल से निकलने वाली त्रैमासिक पत्रिका समरलोक में अंगना नाम से जो मेरा कॉलम 10 साल तक चला था उसकी संपादक मेरी मित्र मेहरून्निसा परवेज से जब मेरी फोन पर बातचीत हुई तो बेहद खुश होकर बोली “अरे कितना बढ़िया डिसीशन है तुम्हारा भोपाल शिफ्टिंग का ।”
और यह जानकर कि मेरा बसेरा बावड़िया कला में है और भी खुश हुई” लो तुम तो एकदम घर के पास आ गई हो। शाहपुरा जहां मैं रहती हूं तुम्हारे घर से 15, 20 मिनट के वाकिंग डिस्टेंस पर है। कल ही आ जाओ। अब मेहरुन्निसा जी पद्मश्री मेहरून्निसा परवेज हैं। मिलने की उतावली मुझ में भी थी।
दूसरे दिन शाम को मैं उनसे उनके घर पर मिली। उनकी बेटी सिमाला के बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे कमरे में। वैसे तो वह पुलिस विभाग में है लेकिन वह फिल्मों में जाना चाहती थी। मेहरुन्निसा जी उसे लेकर मेरे मुंबई प्रवास के दौरान आई हुई थी लेकिन बात बनी नहीं ।
मेरे कॉलम अंगना को वे तीन-चार सालों के अंतराल के बाद पुनः आरंभ करना चाहती थी ।
“लेकिन अंगना को स्त्री विमर्श पर ही केंद्रित मत रखिए ।”
मेरा आग्रह था।
” तो आप विविधता लाइए न।”
बहरहाल तय हुआ कि अंगना में अब विविधता रहेगी ।साहित्य ,संस्कृति, पर्यटन और समसामयिक विषयों को लेकर आरंभ होगा अंगना। मुझे मंजूर था।
वे आग्रह कर करके मेवों भरी गुझिया, मूंग की दाल की कचोरी खिलाती रहीं। नौकर चाय ले आया बेहद स्वादिष्ट अदरक वाली चाय ।उनका डुप्लेक्स बंगला, खूबसूरत बगीचा उनकी अभिरुचि की गवाही दे रहा था।
सेरोगेसी से जन्म लिए उनका बेटा भी मुझसे मिला।
समाज को चुनौती देता है मेहरून्निसा जी का व्यक्तित्व ।अच्छा लगा उनसे मिलकर।
क्रमशः