मेरे मन-मिरगा नहीं मचल – कवि भारत भूषण अग्रवाल

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मेरे मनमिरगा नहीं मचल

मेरे मन-मिरगा नहीं मचल

हर दिशि केवल मृगजल-मृगजल!

प्रतिमाओं का इतिहास यही

उनको कोई भी प्यास नहीं

तू जीवन भर मंदिर-मंदिर

बिखराता फिर अपना दृगजल!

खौलते हुए उन्मादों को

अनुप्रास बने अपराधों को

निश्चित है बाँध न पाएगा

झीने-से रेशम का आँचल!

भीगी पलकें भीगा तकिया

भावुकता ने उपहार दिया

सिर माथे चढा इसे भी तू

ये तेरी पूजा का प्रतिफल!

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