कहानी : एक बीज आशा का – अलका प्रमोद
एक बीज आशा का
वह बाजार जा रही थी तभी एक छोटी बच्ची सड़क पार कर रही थी एतभी एक तीव्र गति से आती गाड़ी ने उसे टक्कर मार दी स्वस्ति के देखते देखते ही बच्ची गिर गयी और गाड़ी उसके पैरों को कुचलती हुयी तेजी से निकल गयी। लोगों की भीड़ जमा हो गयी पर तमाशबीनों की भीड़ में कोई भी बच्ची को उठा नही रहा था। तब स्वस्ति से न रहा गया उसने बच्ची को अपनी गाड़ी में डाला और अस्पताल ले गयी। डाक्टर ने तुरंत उसका प्राथमिक इलाज किया ।स्वस्ति ने पूछा ष्ष् डाक्टर बच्ची बच जाएगी ।
डाक्टर ने बताया ष्ष्बच्ची की जान तो बच जाएगी एपर उसका पैर बुरी तरह कुचल चुका हैए उसे तो काटना ही पड़ेगा।
स्वस्ति का मन उस मासूम के लिये कराह उठा।उसके स्कूल बैग में लिखे घर के फोन नम्बर पर उसने फोन किया। कुछ ही देर में बच्ची के माता.पिता बदहवास से आये। उन्हेे देख कर स्वस्ति हतप्रभ हो गईए कुछ देर को वह संज्ञा शून्य सी हो गई। अचानक अतीत की खिड़की का दरवाजा जिसे उसने दृढ़ता से बन्द किया हुआ था सामने आई आंधी के थपेड़े से खुल गया। कितने स्वर्णिम दिन थे मन मानों हवा के पंखों पर सवार हो और तन कली सा कोमल चांदनी सा उज्जवलए स्फूर्ति से लबालब। पहला दिन था जब वह अपनी मित्र आरूणि के साथ कालेज गई। श्वेत सूट में उसका गुलाबी चेहरा और भी खिल रहा था । किसी ने पीछे से कहा ष्ष्चांदनी।ष्ष्
स्वस्ति के चेहरे पर अनायास ही इस नये नामकरण से मुस्कराहट आ गई ।उसने पलट कर कहने वाले के पास जा कर कहा ष्ष् मेरा नाम चांदनी नही स्वस्ति है ष्ष्।
कहने वाला लड़का सकपका गया उसे ऐसी आशा नही थी उसने कहा ष्ष् सॉरी मेरा नाम सरल है ष्ष्।
स्वस्ति और आरूणि दोनों हंसते हुए आगे बढ़ गई।
आरूणि ने कहा ष्ष्यार तुम्हारे साथ चलने में मेरा बहुत नुकसान हैए मेरी तरफ तो कोई देखता ही नही ष्ष्।
स्वस्ति ने कहा ष्ष्अगर तू कहे तो मैं कल से चेहरा ढक कर चलूंष्ष्।
ष्ष् अरे मैं क्यों उन सबकी बद्दुआए लूं एजिनका सवेरा ही तुझे देख कर होता है।ष्ष्
आरूणि के कथन में अतिशयोक्ति नही थी एक बार भी जिसकी दृष्टि स्वस्ति पर पड़ती वह उसके सौंदर्य से प्रभाव से मुक्त न हो पाता और पलट कर देखता अवश्य था।धीरे धीरे उन दोनो का कालेज के सभी छा़त्र छात्राओं से परिचय हो गया और सरलए चिन्मयए वन्दिकाए शौर्यए अन्विताए के साथ उनकी एक अपनी टीम बन गई।
स्वस्ति की झोली मात्र रूप नहीए गुणों से भी भरपूर थी। कालेज का कोई भी समारोह हो एस्वस्ति के बिना अधूरा था। चाहे वह संगीत होए नाटक हो या वाद विवाद प्रतियोगिता। वार्षिक समारोह में ऐतिहासिक नाटक में वह रानी पद्मिनी बनी थी और शलभ अलाउदद्दीन जो दर्पण में उसके सौंदर्य को देख कर अभिभूत हो जाता है।नाटक तो समाप्त हो गया पर शलभ के मन दर्पण में स्वस्ति का रानी वाला जो रूप बसाए तो उसके लाख चाहने पर भी नही मिटा।
उसने स्वस्ति की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया। धीरे धीरे वह चाहे अनचाहे उससे सामीप्य बढ़ाने लगा। क्लास होती तो उसके बगल की सीट पर ही बैठता । यदि किसी दिन कोई दूसरा बैठ जाए तो वह उसे हटा कर ही मानता । प्रायः लड़के उसके दबंग व्यक्तित्व से किनारा करने में ही खैर समझते । फिर तो स्थिति यह हो गयी कि लोग उससे पंगा लेने से बचने के लिये स्वस्ति के बगल की सीट उसके लिये छोड़ ही देते।प्रारम्भ में तो स्वस्ति ने इसे अधिक महत्व न दिया। पर स्वस्ति के कान तब खड़े हुए जब एक दिन शलभ ने उससे कहा ष्ष् स्वस्ति मुझे बिल्कुल नही पसंद है कि तुम लड़कों से इतनी दोस्ती करोष्ष्।
स्वस्ति ने आश्चर्य से कहा ष्ष् तुम्हे पसंद नही मतलब एक्या मुझे तुम्हारी पसंद से चलना होगाघ्ष्ष्
ष्ष् बिल्कुल अगर तुम हमारी हो तो कोई और लड़का तुम्हारे आसपास भी नही फटकना चाहियेष्ष् शलभ ने स्पष्ट किया।
स्वस्ति ने कहा ष्ष्मिस्टर शलभ अपनी लिमिट में रहो मैं तुम्हारी प्रापर्टी नही हूं एतुम मेरे लिये क्लास के सभी दोस्तों में से एक हो बसष्ष्।
स्वस्ति का सबके सामने उसे नकारना शलभ को बर्दाश्त न हुआ उसने पहले बातों से फिर धमकी से स्वस्ति पर अपना अधिकार जमाने का प्रयास किया ।पर प्रभाव विपरीत हुआ ।जो स्वस्ति उससे सामान्य व्यवहार करती थी एअब उसकी ओर देखना भी पसंद नही करती।
जब शलभ की स्वस्ति को पाने की आशा क्षीण होने लगी तो कुंठित शलभ ने उसे मोबाइल पर व्हाट्स ऐप पर अश्लील संदेश व चित्र भेजने प्रारम्भ कर दिये। परिणाम जो अपेक्षित था वही हुआए स्वस्ति ने एक दिन कालेज में उसे रोक कर कहा ष्ष् शलभ मैने कभी तुम्हे दोस्त बनाया था। फिर मैं तुम्हारे व्यवहार की वजह से नाराज थी एपर अब तुम जो हरकत कर रहे हो उसके बाद मैं तुमसे नफरत करती हूं ष्ष्।
शलभ के लिये यह खुले आम अपमान उसकी हेठी थी।उसने कहा ष्ष् स्वस्ति तुम्हे मेरा यह अपमान बहुत मंहगा पड़ेगाष्ष्।
स्वस्ति ने बात को हवा में उड़ा दिया।शलभ का प्रकरण सब भूल गये।कालेज का सत्र समाप्त होते होते स्वस्ति का विवाह तय हो गया ।नितिन अमेरिका में साफ्टवेअर इंजीनियर था। उसकी पूरी मित्र मंडली उसको बधाई दे रही थी । आरूणि ने कहा ष्ष् अरे मेरी ब्यूटी क्वीन को तो ऐसा राजकुमार मिलना ही थाष्।
वन्दिका बोलीष्ष् मैं तो उस दिन के इंतजार में मरी जा रही हूं जब यह दुल्हन बनेगी एइतनी सुंदर दुल्हन देख कर कहीं हमारे भावी जीजा जी बेहोश न हो जाएंष्ष्।
ष्ष् अरे ठीक है न मौके का फायदा उठा कर मैं इसे उड़ा ले जाऊंगा ष्ष् सरल ने कहाए सब हो हो कर हंसने लगे । स्वस्ति ने कहा ष्ष् अपना मुंह देखा है ष्ष्घ्
सरल भी कहां पीछे था बोला ष्ष्तुम्हारे विदेशी दूल्हे से अच्छा हूं मेड इन इंंिडयाष्ष्।
उस दिन ऐसे ही हंसी मजाक चलता रहा ।सबने स्वस्ति से ट्रीट लेने का वादा ले कर ही उसे जाने दिया।
घर पर भी सभी बहुत प्रसन्न थे। पापा मम्मी तो इतना अच्छा वर मिलने की सोच भी नही सकते थे ।वह तो किसी पार्टी में नितिन ने स्वस्ति को देखा तो उसके रूप और व्यवहार पर ऐसा मोहित हुआ कि चट मंगनी चट ब्याह करके ही अमेरिका लौटने का निर्णय ले लिया।
घर का मंगलमय वातावरण और उत्साह छूत की बीमारी के समान स्वस्ति और उसके परिवार से उसके मित्रों और खास रिश्तेदारों में फैलता जा रहा था।सभी अपनी अपनी तैयारी में लगे थे।विवाह से दो दिनो पूर्व स्वस्ति फेशियल कराने यूनिवर्सल पार्लर गयी। प्रसन्नता और फेशियल ने उसके रूप को द्विगुणि कर दिया था। स्वयं अपना चेहरा ही दर्पण में देख कर स्वस्ति निहाल हो गई।
साथ में उसकी भाभी आयी थीं ।पार्लर से बाहर निकल कर दोनो ने आटो ली।अभी कुछ दूर ही आगे गयी होगी कि अचानक मुंह पर कपड़ा लपेटे दो लड़कों ने कुछ द्र्रव स्वस्ति के चेहरे पर फेंका और बाइक से आगे बढ़ गये। स्वस्ति जलन से तड़पने लगी।भाभी भी घबड़ा गयीं उन्होने आटो रोकी और सहायता के लिये चिल्लाने लगीं।लोग जमा हो गये एकुछ ने सहायता की और अस्पताल ले गये । कुछ ही क्षणों में सब कुछ बदल गया था।स्वप्नों के आकाश में उड़ने वाली स्वस्ति कठोर निष्ठुर धरातल पर आ गिरी थी। उसके बाद जिस तेजी से उसके जीवन में एक के बाद एक काले साये छाते चले गये एउन्होने उसके जीवन में आशा की किरणों का मार्ग अवरुद्ध कर दिया।स्वस्ति का चेहरा झुलस चुका था साथ ही उसके प्रति नितिन का आकर्षण भी झुलस गया एवह स्वस्ति से मिले बिना ही अमेरिका वापस चला गया। आघात की श्रृंखला यहीं नही रुकी। स्वस्ति के विवाह ने पापा को जितना आह्लादित किया थाए उसके टूटने ने उतना ही आघात दियाए जो उनके लिये काल बन गया। हृदय आघात ने उनसे उसकी सांसें छीन लीं। मम्मी तो मानो जीवित हो कर भी विचित्र सी हो गयीं पता नही कहां खोयी बैठी रहती ।उन्हे तो यह भी होश नही था कि स्वस्ति क्या क्या हाल है।
सब जानते थे कि यह करतूत शलभ की है। पर था ही कौन जो उसके विरुद्ध आवाज उठाता।मम्मी को होश ही नही थाए स्वस्ति अस्पताल में पड़ी थी।
ऐसे में रिश्तेदारों द्वारा पुलिस में लिखाई रिपोर्ट भी शलभ के प्रभावशाली सम्बन्धों के दबाव में ठंडे बस्ते में चली गयी। किसी तरह अपने रूप के साथ अपने जले सपनों का बोझ ले कर जब स्वस्ति घर आयी तो निराशा की कालकोठरी में उसे घुटन होने लगी वह गुमसुम हो गई।
स्वस्ति की मीमंासा बुआ जो प्रोफेसर थीं किसी सेमिनार में विदेश गयी थीं ।अब लौट कर आयीं तो मिलने दौड़ी आयीं।उन्हे घर में निराशा का भयानक अंधेरा दिखा जो निश्चय ही निराशा के गर्त की ओर अग्रसर था।वह समझ गयीं कि इस समय स्वस्ति की जिजीविषा को जगाना जरूरी है।उन्होने कुछ दिनों तक उसके साथ रुकने का निर्णय लिया।स्वस्ति न किसी से बोलती एन कुछ करतीए बस अपने कमरे की लाइट बुझा कर पड़ी रहती।जबरदस्ती खाना खिला दो तो थोड़ा बहुत खा लेती। एक दिन उन्होने उसके कमरे की खिड़की के पर्दे हटा दिये तो स्वस्ति ने तुरंत उन्हे फिर से फैला दिया ।तब बुआ ने कहा ष्ष्ये क्या बात हैए कब तक अंधेरे में बैठी रहोगीष्ष्घ्
ष्ष् बुआ अब तो मेरे जीवन में ही अंधेरा हो गया एयह रोशनी मुझे चुभती है ष्ष्स्वस्ति ने कहा।
अपनी लाडली भतीजी का कथन उन्हे अन्दर तक द्रवित कर गया नेत्र भर आये । पर यह समय भावुकता का नही था उन्होने अपने मनोभावों को छिपाते हुए कहा ष्ष् यानि कि तू भी उस पापी शलभ का साथ दे रही है ष्ष्।
ष्ष्मैं उस दुष्ट का नाम भी नही सुनना चाहतीए आप साथ की बात कर रही हैं बुआए आपने ऐसा सोचा भी कैसेष्ष्घ् स्वस्ति ने चैंक कर कहा ।
ष्ष् और क्या सोचूं एवह तुझे बरबाद करना चाहता था और तू स्वयं भी वही कर रही है ष्ष्।
ष्ष्मैं कर भी क्या सकती हूं ष्ष्स्वस्ति ने निराशा से कहा ।
ष्ष् उसने तो तेरा बाहरी रूप बिगाड़ा है पर अपने आन्तरिक सौंदर्य को तो तू स्वयं ही नष्ट करने पर तुली है नष्ष् बुआ ने कहा।
ब्ुाआ की इस बात ने स्वस्ति को सोच का नया दृष्टिकोण दिया।बुआ समझ गयीं कि उनकी बात यही निशाने पर लगी है। उन्होने कहा ष्ष् रूप तो वैसे ही कुछ दिनों में ढल जाता है पर तेरे गुण क्षमताएं योग्यताएं तो तभी नष्ट होगी जब तू चाहेगी।ष्ष्
उस दिन बुआ ने स्वस्ति में जो आत्मविश्वास और आशा का बीज रोपाए उसने स्वस्ति के अंधेरे जीवन में प्रकाश की किरण को राह दी। उस अंधेरे में दीप जलाना सरल न था। पर स्वस्ति को बुआ ने जो आशा की डोर थमायी उसे उसने दृढ़ता से थाम लिया और कभी छूटने न दिया।पहले पहले वह बाहर निकली उसे लोगों की विचित्र दृष्टि का समाना करना पड़ा। लोग उसे ऐसे देखते मानो वह किसी और ग्रह से आयी हो।उसकी पुराने मित्र मंडली भी अब उससे किनारा करने लगी थी।
एक दिन वह जा रही थी तो पड़ोस की गोमती आंटी उसे सुना कर कटाक्ष कर रही थीं ष्ष् मेरी बदसूरत बेटियां ही अच्छी एकम से कम यह दिन तो नही देखना पड़ेष्ष्। यह वही आंटी थी जो उसके रूपवान और अपनी बेटियों के साधारण रूप रंग से दुखी रहती थीं।
बात यहीं तक होती तो ठीक था ।पर क्रूरता की हद तो उसने उस दिन देखी जब पता चला कि वही वंदना आंटी जो उसे बेटी बेटी कहते नही थकती थीं एकालोनी में कह रही थीं ष्ष् असल में लड़की को इतनी तो छूट दे दी ।पहले तो उसने रूप के जाल में लड़के को फंसा लिया फिर जब विदेशी अमीर लड़का मिल गया तो उससे मुंह मोड़ लिया। अब लड़के भला यह धोखा कहां सह सकते हैंए ले लिया बदला। ष्ष्
यह घाव तेजाब के घावों से भी अधिक जलन दे रहे थे एपर स्वस्ति के मन में एक बार जो आत्मविश्वास और आशा का पौधा रोपित हुआ वह अपने स्थान से हिला तो अवश्य पर स्वस्ति ने उसे सूखने न देने का प्रण ले लिया था अतः वह धीरे धीरे ही सही पुष्पित पल्ल्वित होता रहा । राह कठिन थीए असंभव नही।उसके आत्मविश्वास ने मम्मी की छूट रही सांसों को भी आक्सीजन दी।स्वस्ति ने घर पर ही ऑनलाइन पढ़ाने का काम प्रारम्भ किया । ऑनलाइन ही उसके कई लड़के और लड़कियां मित्र बन गये।उन्ही में से एक दिन उसका रंजन से भी परिचय हुआ और फिर मित्रता हो गयी।दोनो आनलाइन ही लम्बी लम्बी चर्चाएं करते विचारों का आदान प्रदान करतेए दोनो के विचार और मानसिक स्तर में अद्भुत साम्यता थी। जब मित्रता प्रगाढ़ हो गयी एतो रंजन मिलने का हठ करने लगा। पर स्वस्ति यह छोटा सा सुख अपना चेहरा दिखा कर खोना नही चाहती थी।
एक दिन द्वार की घंटी बजी एवह बाहर गयी तो आगंतुक ने कहा ष्ष् मैं रंजन वर्मा हूं एस्वस्ति कुमार से मिलने आया हूं ष्ष्।
स्वस्ति समझ गयी आज उसकी इस मित्रता से मिल रहे क्षणिक सुख का भी अंत होने वाला है।उसने मन ही मन निर्णय किया कि अब उसे वास्तविकता के ठोस धरातल पर जीना होगा और इस मृग मरीचिका को यहीं समाप्त करना होगा।उसने सपाट वाणी में कहा ष्ष् मुझे दुख है कि आपको बहुत निराशा होगीए मैं ही हंू स्वस्तिष्ष्।
रंजन ने कहा ष्ष् तो स्वस्ति क्या अपने मित्र को अन्दर आने को भी नही कहोगी ष्ष्घ्
स्वस्ति ने चैंक कर कहा ष्ष् क्या मेरा चेहरा देखने के बाद अब भी तुम मुझे दोस्त कहना पसंद करोगेघ्ष्ष्
रंजन ने कहा ष्ष् मेैंने तुमसे दोस्ती तुम्हे बिना देखे तुम्हारे विचारों से प्रभावित हो कर की थी तो फिर आज ये चेहरा हमारी दोस्ती के बीच में कहां से आ गयाष्ष्घ्
स्वस्ति को अपने कानों पर विश्वास नही हो रहा था क्या कोई ऐसा भी है जो चेहरे से परे उसके आन्तरिक सौन्दर्य से प्रभावित है।ण्ण्ण्ण्ण्ण्
वह चैंक कर वर्तमान में आ गई एजब बच्ची के पिता ने हाथ जोड़ कर स्वस्ति से कहाष्ष् मैडम मेरी बेटी कभी चल नही पाएगी पर आपका बहुत बहुत आभार। आपकी वजह से कम से कम मेरी बच्ची की जान तो बच गयी ष्ष् ।
स्वस्ति समझ गई कि शलभ उसके झुलसे चेहरे कोे पहचान नही पाया है ।जिस अपराधी को वह दंड नही दे पायी उसे अपने आप ही दंड मिल चुका था ।पर जिसे वह दिन.रात कोसती थी आज उसे दंड मिलने परए वह चाह कर भी खुश नही हो पाई क्योंकि शलभ के दंड में उसकी मासूम बच्ची भी भागीदार होगीए उसे बिना किसी दोष के ये दंड भुगतना पड़ेगा ।स्वस्ति को तो बुआ मिल गई थींए पता नही उस बच्ची में कोई आशा का एक बीज रोप पाएगा या नही घ्
- अलका प्रमोद
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