चले जा रहे होगे तुम – कवयित्री सुमित्रा कुमारी सिन्हा
चले जा रहे होगे तुम चले जा रहे होगे तुम, ओ दूर देश के वासी। चली रात भी, चले मेघ भी, चलने के अभ्यासी। भरा असाढ़,घटाएँ काली नभ में लटकी होंगी; चले जा रहे होगे तुम कुछ स्मृतियाँ अटकी होंगी। छोड़ उसाँस बैठ गाड़ी में दूर निहारा होगा, जबकि किसी अनजान दिशा ने तुम्हें पुकारा होगा, हहराती गाड़ी के डिब्बे में बिजली के नीचे, खोल पृष्ठ पोथी के तुमने होंगे निज दृग मींचे। सर सर सर पुरवैया लहकी होगी सुधि मंडराई, तभी बादलों ने छींटे...