मधु ऋतु की हँसती घड़ियाँ ये – कवयित्री सुमित्रा कुमारी सिन्हा
मधु ऋतु की हँसती घड़ियाँ ये मधु ऋतु की हँसती घड़ियाँ ये, जीवन-पतझर में क्यों लाए ? ये मस्ती की फुलझड़ियाँ ले, मेरे खंडहर में क्यों आए ? छेड़ी क्यों तुमने सूने में वंशी-ध्वनि मीठी, क्यों आए ? जिसको सुन पागल-विकल हुआ यह मन मेरा, तुम क्यों आए ? रोदन के एकाकी जग में, पल एक हँसाने क्यों आए ? नाता इस पीड़ामय उर से, तुम हाय ! जोड़ने क्यों आए ? उस गीली स्मिति की छवि नयनों में तुम उलझाने क्यों आए ? मधु का प्याला आँखों में भर पल-पल छलकाने क्यों आए ? तुम पूर्ण अपरिचित मग चलते, चिर परिचित बन कर क्यों आए ? हे पथी, कहो, जाना ही था...