मुक्तक

अंबर से छत की मुंडेर पर आते हो

जन-जन को सावन के गीत सुनते हो

सच कहती हूँ बहुत भले लगते बादल

प्यासी धरती की जब प्यास बुझाते हो

 

सावन गीत

छनक कर बरसो मेघराज

झमक कर बरसो मेघ राज

मन की माटी दरक रही है

धूप न सर से सरक रही है

हर लो आकर तपन धरा की

वर्षा मंगल साज

झमक कर बरसो मेघ राज

सुधियों के वातायन खोलो

मौन हुए क्यों कुछ तो बोलो

अंकुर पर हैं घात लगाये

गरम हवा के बाज

झमक कर बरसो मेघ राज

बरसो सरसो अब तो हरसो

जन-जन की पीड़ा को परसो

धरती के माथे पर धर दो

इन्द्रधनुष का ताज

झमक कर बरसो मेघ राज

पर्वत से सागर को जोड़ो

ऊंचे-नीचे नाते तोड़ो

पार उतर जायें दोनों ही

नौका और जहाज़

झमक कर बरसो मेघ राज

 

अंतर्राष्ट्रीय मंच की ख्यातिप्राप्त

कवियित्री प्रमिला भारती

कवियित्री प्रमिला भारती की इस रचना को सुनने के लिए youtube के इस link पर जाइए – संपादक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *