ज़िन्दगी के पन्नों से … प्रीति सोनावणे
ज़िन्दगी के पन्नों से …
ग़म और ख़ुशी
या ख़ुदा! ज़िन्दगी इतने ग़मों से न भर देना
जो हम अपनों से दूर होकर मुस्कराना ही भूल जायें
ज़िन्दगी में ऐसी भी ख़ुशियाँ न देना
जो उन ख़ुशियों में हम अपनों को ही शामिल न कर पायें
तन्हाइयों को तो फिर भी हम हंसकर सह लेंगे
मगर ख़ुशियों के साथ मिला अपनो से बिछड़ने का ग़म
हम कैसे सह पायेंगे
ज़िन्दगी में ख़ुशियाँ तो आती हैं
मगर अपने साथ ग़मों की दस्तक भी लगती है
चंद लम्हों की ख़ुशियाँ तो मिलती हैं
मगर ज़िन्दगी भर के ग़म दे जाती हैं
कहते हैं ग़म बांटने से कम और
ख़ुशियाँ बांटने से दुगनी होती हैं
जब ग़म बांटने के लिये अपना कोई ना हो तो
ख़ुशियों में भी आँखों में नमी ही रहती है
न गिला – न शिकवा
शिकायतें तो तुझसें बहुत हैं ज़िन्दगी !
पर तेरी दी हुई कश्मकश भरी उलझनों को सुलझाते-सुलझाते
ख़ुद ही इतना उलझ गई हूँ मैं
कि तुझसे न कोई गिला
न कोई शिकवा कर पाती हूँ मैं
ये ज़िन्दगी! मैं तुझे कैसे बताऊँ
ये ज़िन्दगी! मैं तुझे कैसे बताऊँ
मैंने अपने ही सपनों को
अपनी आँखों के सामने
टूटते देखा है
ये ज़िन्दगी! मैं तुझे कैसे बताऊँ
मैंने अपनों को ही पल भर में
पराया होते देखा है
ये ज़िन्दगी! मैं तुझे कैसे बताऊँ
मैंने ख़ुद को हर पल हर घड़ी
बेबस लाचार सा देखा है
ये ज़िन्दगी! मैं तुझे कैसे बताऊँ
इस भीड़ से भरी दुनियां में
अपनों की महफ़िल में
ख़ुद को अकेला देखा है
ये ज़िन्दगी! मैं तुझे कैसे बताऊँ
मैंने अपनी आँखों के आंसुओं को
अपने होंठों की मुस्कुराहट के पीछे
छुपाकर देखा है
ये ज़िन्दगी! मैं तुझे कैसे बताऊँ
मैंने तेरी तरह से जीकर
ख़ुद को अपनी ख़्वाहिशों के साथ
पल-पल मरता हुआ देखा है
उम्मीदों से अभी भी ज़िंदा है ज़िन्दगी
कुछ-कुछ बुझी-बुझी सी
कुछ-कुछ उलझी-उलझी सी
कुछ-कुछ दर्द से भरी हैं ज़िन्दगी
फिर भी मुस्कुराहट लिए
उम्मीदों से अभी भी ज़िंदा है ज़िन्दगी
हिंदी और मराठी भाषा की कवियित्री प्रीति सोनावणे
Dear Preeti
What a lovely poetry’s i like so much.
Please continue.
My regards to you
काय मस्त लिहितात हो
छुपा रुस्तम निघाले
ग्रुप वर भेटत जा कधी