नदियों का जल

प्रतिक्षण प्रतिपल,
करता कल कल,
हो चिर चंचल
बहता निश्छल,
नदियों का जल।

हिम अंचल से,
निकल निकल,
पूरित करता
वसुधा स्थल,
नदियों का जल।

शिलाखंड को,
अवरूद्ध देख भी ,
होता न बह
पथ से अविचल,
नदियों का जल।

विषमता को भी,
कर समतल,
देता समता का
ज्ञान विमल,
नदियों का जल ।

कुछ लहर लहर
कुछ मचल मचल,
गुंजित करता
आनन्द स्वर ।
नदियों का जल

जग हिताय ही
मृदुता भर,
बुझाता सबकी
प्यास विकल।
नदियों का जल।

इसका प्रियतम,
नभ का बादल,
दोनों में पर
बहुत है अन्तर,
नदियों का जल।

बह शून्य है
इसका है तल,
पर दोनों पूरक
भाव अटल
नदियों का जल ।

मानव प्रभु से,
ऐसा अन्तर,
रहस्य सृष्टि का
करता सरल
नदियों का जल ।

 

हिंदी साहित्य की जानी-मानी लेखिका-कवियित्री रत्ना बापूली

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