ममता की देहरी पर जाने क्यों पहरे – प्रमिला भारती

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ममता की देहरी पर जाने क्यों पहरे

 

 

ममता की देहरी पर जाने क्यों पहरे,

सहमे सिसके हम बस द्वार पर ही ठहरे …

 

 

याद बहुत आती है अम्मा की लोरी,

खेल और खिलौनों पर अपनी बरजोरी,

अब तो सब बातों पर बातें ही बातें,

भोला भाला बचपन घातें ही घातें,

बीत गए जाने क्यों दिन सभी सुनहरे?

सहमे सिसके हम बस द्वार पर ही ठहरे।

ममता की देहरी पर जाने क्यों पहरे …

 

 

चंदन का पलना और रेशम की डोरी,

चंदा मामा वाली खीर की कटोरी,

नानी से क़िस्से सुनकर ही बस सोना,

दादी से ज़िद करना, दुलराना – रोना,

भूले – बिसरे सारे नेह के ककहरे।

सहमे सिसके हम बस द्वार पर ही ठहरे।

ममता की देहरी पर जाने क्यों पहरे …

 

 

बगिया में इमली और अंबिया का गिरना,

नैनों में काग़ज़ की नैया का तिरना,

कहती माँ इन सबसे नाता क्या अपना,

आँसू बन बह जाता सुंदर सा सपना,

गालों को पोंछा पर दाग़ रहे उभरे।

सहमे सिसके हम बस द्वार पर ही ठहरे।

ममता की देहरी पर जाने क्यों पहरे …

 

 

गोदी में बैठाकर पढ़ना सिखाया,

बस आगे आगे ही बढ़ना सिखलाया,

उड़ने को पंखों ने हिम्मत जो बांधी,

धरती से अम्बर तक आँधी ही आँधी,

पंखों ने पाए हैं घाव बड़े गहरे।

सहमे सिसके हम बस द्वार पर ही ठहरे।

ममता की देहरी पर जाने क्यों पहरे …

 

 

भैया को दूध और जलेबी मिठाई,

तुतलाते होंठों को धैर्य की दवाई,

रोना चुपना उठना गिर गिर कर रहना,

अपना तो गहना है सहना ही सहना,

चलने को पाये हैं पथ सारे संकरे।

सहमे सिसके हम बस द्वार पर ही ठहरे।

ममता की देहरी पर जाने क्यों पहरे

ममता की देहरी पर जाने क्यों पहरे

 

अंतर्राष्ट्रीय मंच की ख्यातिप्राप्त

कवियित्री प्रमिला भारती

 

कवियित्री प्रमिला भारती की इस रचना को सुनने के लिए youtube के इस link पर जाइए – संपादक

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