दिन कटा तो रात भी कट जाएगी : कवि पं. जगत नारायण शर्मा
दिन कटा तो रात भी कट जाएगी
देखकर बदले हुए नभ को कहीं,
हारकर हिम्मत अरे रुकना नहीं,
छा गई जो दूर तक काली घटा,
धूम्र काया है अभी छँट जाएगी,
दिन कटा तो रात भी कट जाएगी …
राह अपनी पार करने के लिए ,
बढ़ चलो कुछ और बढ़ने के लिए ,
कह रहा है क़ाफ़िले का क़ाफ़िला ,
राह लम्बी एक दिन छँट जाएगी,
दिन कटा तो रात भी कट जाएगी …
जो लहर बन उठ रही नभ चूमने ,
सिंधु की गम्भीरता में झूमने ,
हारकर जल के बिछे विस्तार से ,
खोजने अपना किनारा जाएगी,
दिन कटा तो रात भी कट जाएगी …
राह के आश्रित तुम्हारी आस है ,
और चलने पर तुम्हें विश्वास है ,
इन थके पीड़ित पगों को एक दिन ,
चूमने मंज़िल स्वयं ही आएगी,
दिन कटा तो रात भी कट जाएगी…
आ गई आँधी भयानक क्या हुआ ,
नीड़ के तिनके उड़ाये क्या हुआ ,
डाल से उड़कर बिहग ने यूँ कहा ,
आज की दुनिया न कल रह जाएगी,
दिन कटा तो रात भी कट जाएगी …
स्वर्गीय कवि पं. जगत नारायण शर्मा , हिन्दी साहित्य में रचनाकारों की उस परम्परा के प्रतिष्ठित
कवि रहे हैं जिसमें महाकवि निराला , गोपालसिंह नेपाली , गोपालदास नीरज जैसे साहित्य
साधकों के नाम आते हैं ।
उस दौर में स्त्री शिक्षा के प्रबल समर्थक पंडित जगतनारायण शर्मा जी ने इटावा ज़िला विद्यालय
प्रतिनिरीक्षक तथा सचिव शिक्षा बोर्ड इलाहाबाद के रूप में इस क्षेत्र में अनेक प्रभावशाली कार्य
किये … निरंतर शिक्षा और साहित्य साधना करते हुए वे इलाहाबाद के हिन्दी संस्थान के
डायरेक्टर के रूप में रिटायर हुए ।
सेवानिवृत्ति के बाद भी शिक्षा के प्रसार और साहित्य सृजन में आजीवन संलग्न रहे ।