ख़ाली हो तो जर्जर मन पैबन्दों को सिया करो – डॉ अनिल त्रिपाठी
ख़ाली हो तो जर्जर मन के पैबन्दों को सिया करो
ख़ाली हो तो जर्जर मन के पैबन्दों को सिया करो
क्यों जाया करते अश्कों को ख़ुशफ़हमी में जिया करो
मय पीने से उसकी इबादत में कुछ फ़र्क नहीं पड़ता
शर्त यही मस्जिद के बाहर वजू से पहले पिया करो
यूँ घुट घुट कर जीने से तो बेहतर ही है मर जाना
ख़ुशियों के बदले दुनियां से ग़म के लम्हे लिया करो
अच्छाई में उम्र काट दी तो पीछे पछताओगे
अच्छा है ग़र झूंठे सच्चे कुछ गुनाह भी किया करो
जिन पर अनिल भरोसा न हो धोखे कई उठाये हों
वक़्त बड़ा ये कारसाज है उन्हें मशविरे दिया करो
डॉ0 अनिल त्रिपाठी हिंदी भाषा के
जाने माने पत्रकार एवं कवि होने के साथ – साथ
गायक और संगीतकार भी हैं
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