ओ अरण्य के सुन्दर सपने ! – राजुल
ओ अरण्य के सुन्दर सपने !
ओ अरण्य के सुन्दर सपने!
निधि जीवन की – लक्ष्य प्राण के !
चाहों की मधुरिम रातों से,
दिनकर की उजली बाहों से,
चंचल सांझ के रंग सुनहरे –
कितने पास हो, कितने अपने!
पाने को शीतल आलंबन,
आज व्यथित क्यों प्राण भिक्षु से,
व्याकुल नैन निहारें पल के –
अभी पास थे कितने अपने!
राजुल
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Bahut khubsurat ….super panktiyaa
बहुत सुंदर रचना है। हार्दिक बधाई।
बहुत सुंदर रचना राजुल दीदी
बिल्कुल सुंदर सपने जैसा