ओ अरण्य के सुन्दर सपने !

ओ अरण्य के सुन्दर सपने! 

निधि जीवन की – लक्ष्य प्राण के !

चाहों की मधुरिम रातों से, 

दिनकर की उजली बाहों से,

चंचल सांझ के रंग सुनहरे –

कितने पास हो, कितने अपने!

पाने को शीतल आलंबन,

आज व्यथित क्यों प्राण भिक्षु से,

व्याकुल नैन निहारें पल के –

अभी पास थे कितने अपने!

 

राजुल 


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3 thoughts on “ओ अरण्य के सुन्दर सपने ! – राजुल

  1. बहुत सुंदर रचना राजुल दीदी
    बिल्कुल सुंदर सपने जैसा

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