लघुकथा : लड़की पैदा हुई है – रीमा मिश्रा

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लघुकथा

लड़की पैदा हुई है

 

‘लड़की हुई है?’ देव ने पूछा

वीणा को इसी प्रश्न की उम्मीद थी, उसने उम्मीद नहीं की थी कि देव सबसे पहले उसका हाल चाल जानेगा ।

वीणा ने सिर्फ़ पलकें झुका दी, देव इसे हाँ समझे या हाँ से ज्यादा कुछ और, लेकिन वीणा के पलकें झुका देने भर में इतनी दृढ़ता थी कि वह कह देना चाहती है कि हाँ लड़की हुई है… और वह इसे पालेगी, पढ़ाएगी।

‘अब क्या करेगी तू?’ देव ने पूछा

‘पालूंगी, और क्या करुँगी’

‘शादी कैसे करेगी ?’

‘अभी तो पैदा हुई है जी , शादी के नाम पर अभी क्यों सूखने पड़ गये आप।’

‘तू जैसे जानती नहीं, तीन तीन बेटियां हो गयी हैं, हाथ पहले से टाइट है, शादी कोई ऐसे ही तो हो नहीं जाती ! कहा था टेस्ट करा लेते है, लेकिन सरकार भी जीने नहीं देती साली।’

‘मन क्यों छोटा करते हैं जी आप ,भगवान ने  भेजी है, अपने आप करेगा इंतजाम।’ वीणा ने देव को दिलासा दिया।

‘भगवान् की ही ऐसी तैसी हुई है … उसे ही कुछ करना होता तो लड़का न दे देता ! कुछ जीने का मकसद तो रहता,  काम धंधे में भी ऐसी पनोती डाली है कि रोटी तक पूरी नहीं होती। ऊपर से तीन – तीन बेटिया और ये नंगा समाज…।’

वीणा प्रसव पीड़ा भूल गयी थी, देव की पीड़ा उसे बड़ी लगने लगी एकाएक । वीणा ने देव की झोली में बेटी डाल दी। कंधे पर हाथ रख कर रुंधे गले से बोली, ‘गला घोंट देते हैं । अभी किसी को नहीं पता कि ज़िंदा हुई है या मरी हुई, दाई से मैं निबट लूंगी ।’

देव का बदन एक दम से सन्न पड़ गया, वह कभी वीणा के कठोर पड़ चुके चेहरे की ओर देखता तो कभी नवजात बेटी के चेहरे को । उसने एकाएक बेटी को सीने से लगा लिया। भीतर प्रकाश का बड़ा सूरज चमकने लगा। बेटी ने पिता के कान में कह दिया था ‘पापा आप चिंता न करें, मैं आपके टाइट हाथ खोलने के लिए ही आई हूँ।’

पिता के सीने से लगी बेटी को देखकर वीणा की आँखें आंसुओं से टिमटिमाने लगीं।

देव ने आगे बढ़कर वीणा के आंसू पोंछे और भीतर लम्बी सांस भर कर बोला, ‘हम इसे पालेंगे वीणा ….’ और इतना कहकर देव ने वीणा और बेटी को आलिंगन में भर लिया…।

 

 

शिक्षिका  रीमा मिश्रा जानी मानी लेखिका और कवियित्री हैं 

 


 

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