प्रेम

सब कहते हैं ये प्रेम नहीं है
जो मुझे उस अज्ञात प्रियतम से है
कैसे बताऊं उन्हें
वो सिर्फ़ प्रेम नहीं है मेरा
भक्ति है, श्रद्धा है, समर्पण है,
कि प्रमाण दूं
सिद्ध करूं
या वो असिद्ध कर देंगे उसे
वो जीने की वजह है मेरी

जिसे जानती तक नहीं हूं मैं
उसे जी रही हूं मैं
हां प्रेम में होना
प्रेम को जीना
एक अनुभूति है
आख़िरी अनुभूति
वो परम दशा है कि मिट कर भी अमिट हो
ऐसा अरण्य
जिसमें खो जाना अंतिम सत्य है
और लौट कर आने का कोई
मार्ग नहीं….और यह खोना ही स्वयं को पाना है….
“रीमा” के लिए यही “मीरा” हो जाना है….

 

 

शिक्षिका  रीमा मिश्रा जानी मानी लेखिका और कवियित्री हैं 

 


 

  • पढ़ने के बाद Post के बारे में Comment अवश्य लिखिए .

विशेष :- यदि आपने website को subscribe नहीं किया है तो, कृपया अभी free subscribe करें; जिससे आप हमेशा हमसे जुड़े रहें. ..धन्यवाद!

 

1 thought on “प्रेम – रीमा मिश्रा

  1. First of all my apologies for posting my thoughts in English…as I’m still not comfortable in typing in Hindi.
    Will definitely try to learn.
    After reading your love soaked, expressive poem I can just remember this couplet from a famous rendition of my favourite singer Abida Parveen…
    ” Seekh zaheen ke dil se jalna,
    Kaahe ko har shamma pe jalna,
    Apni aag mein khud jal jaaye,
    Tu aisa parwana ban ja…”👏👏👌👌

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *