कहीं कोयल ने कूक लगाई- अशोक हमराही
बसंत गीत
कहीं कोयल ने कूक लगाई
कहीं कोयल ने कूक लगाई
फूली सरसों बसंत रितु आई
मौसम की नाव रुक गई, यौवन के द्वार पर
महक उठे हैं गीत मधुर, वीणा के तार पर
मदमाती मधुरितु है आई
कोमल कलियां मुसकाई
कहीं कोयल ने कूक लगाई
फूली सरसों बसंत रितु आई
पुलकित है आज ये गगन, मधुरितु के देख रंग
झूम – झूम उठी ये धरा, मन में भरके उमंग
छेड़ रही है पुरवाई
महक उठी है अमराई
कहीं कोयल ने कूक लगाई
फूली सरसों बसंत रितु आई