वक़्त

 

वक़्त…

कहाँ से चले कहाँ आ गए

वन्देमातरम से जयहिन्द तक के सफ़र में

वक़्त ने विस्तृत किया दामन इतना कि

समझ कर भी अन्जान रहे परत-दर-परत

ख़ामोशी की परत-दर-परत

चीख रही परत-दर-परत अंतहीन … राहें … अपलक

झाँकती है उम्मीद की आस लिए

किरण का  विश्वास लिए

वक़्त ने करवट ली

इल्ज़ाम झेला

हालात ने कुछ कही-  कुछ अनकही

फिर भी…. सब सुना वक़्त ने

सागर में मोती..और.. मोती में सीप

आओ.. मंज़िल तलाशते तराशते हैं पल

चलो…. ढूँढते हैं अपने अपने वक़्त

वक़्त ….

 

स्मृति लाल हिंदीभाषा की जानी-मानी  कवियित्री हैं  


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1 thought on “वक़्त – स्मृति लाल

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