कहां हूं मैं ?

कहां हूं मैं ?

सुनो, जानते हो तुम…
मैं रोज आती हूं।
खुद को ढूंढती हुई,
तुम्हारी यादों की महफ़िल में।
घूमती हूं तुम्हारे
एहसास की गली-गली।
छानती हूं तुम्हारे
भावों का कोना-कोना।
सुनती हूं तुम्हारी
धड़कनों की सरगम।
टटोलती हूं तुम्हारी
सांसों के मनके-मनके।
पर खाली हाथ ही
लौट आती हूं मैं।
नहीं पाती हूं मैं खुद को
तुम में कहीं जरा सी भी।
और तुम कहते हो कि
मैं तुम्हारे कण-कण में हूं।

 

दिव्या त्रिवेदी हिंदी भाषा की जानी-मानी  कवियित्री हैं  


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2 thoughts on “कहां हूं मैं ? – दिव्या त्रिवेदी

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