तुम जहां महफ़ूज़ हो रहो वहीं – अशोक हमराही
अब तुम्हारा हमको इंतिज़ार नहीं
तुम जहां महफ़ूज़ हो रहो वहीं
राह देखते रहे हैं आज तक
पर कहेंगे तुमको बेवफ़ा नहीं
पहले हर आहट पे नज़र थी मगर
अब किसी आहट की इल्तिज़ा नहीं
थम गई है ज़िन्दगी तो क्या हुआ
सांस की तो है अभी रफ़्तार वही
आज सारा विश्व एक साथ हैं
हम अकेले होके भी तन्हा नहीं
फिर मिलेंगे हम वफ़ा की राह पे
दूरियां हैं पर ये फ़ासला नहीं
- अशोक हमराही
- पढ़ने के बाद Post के बारे में Comment अवश्य लिखिए .
विशेष :- यदि आपने website को subscribe नहीं किया है तो, कृपया अभी free subscribe करें; जिससे आप हमेशा हमसे जुड़े रहें. ..धन्यवाद!
वाह !!👌
Great sir ji
उम्दा बेहतरीन सोंच की पहल
Very touchy written