तुम जहां महफ़ूज़ हो रहो वहीं – अशोक हमराही

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अब तुम्हारा हमको इंतिज़ार नहीं
तुम जहां महफ़ूज़ हो रहो वहीं

राह देखते रहे हैं आज तक
पर कहेंगे तुमको बेवफ़ा नहीं

पहले हर आहट पे नज़र थी मगर
अब किसी आहट की इल्तिज़ा नहीं

थम गई है ज़िन्दगी तो क्या हुआ
सांस की तो है अभी रफ़्तार वही

आज सारा विश्व एक साथ हैं
हम अकेले होके भी तन्हा नहीं

फिर मिलेंगे हम वफ़ा की राह पे
दूरियां हैं पर ये फ़ासला नहीं

  • अशोक हमराही

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