घर होती हैं औरतें सराय होती हैं – प्रज्ञा पाण्डे
सराय होती हैं.
अन्नपूर्णा होती हैं
पुआल होती है .
ओढना बिछौना सपना
मचान होती हैं .
दुआर दहलीज तो होती हैं
सन्नाटा सिवान होती हैं.
खलिहान और अन्न तो होती हैं
अक्सर आसमान होती हैं .
कच्ची मिट्टी घर की भीत
थूनी थवार होती हैं .
बारिशी दिनों में ओरी से चूती हैं
पोखर होती हैं सेवार होती हैं .
अक्सर बंसवार होती हैं .
औरते बंदनवार होती हैं .
छूने पर छुई मुई तो होती है
तूफानों में मगर
खेवयिया होती हैं
पतवार होती हैं.