देवी के अस्त्र शस्त्र और वस्त्र – दिव्या त्रिवेदी
देवी के अस्त्र शस्त्र और वस्त्र
देवी की मूर्ति पर, रंग भरते हुए
कलाकार की कूची कुछ
चिपचिपी कुछ लसलसी सी हो उठी थी ।
उस चिपचिपेपन से एक बार देवी के हाथ का त्रिशूल ,
सरक कर गिर पड़ा था रंगरेज की आंखों पर
और उसके रक्त के छींटों से रंग गई थीं देवी की आंखें
रक्ताभ लाल रंग में ।
इसके बाद से ही देवी को ,
केवल उन नौ दिनों के लिए ही,
जिस अवधि में की जाती है, उनकी पूजा, पूरे निष्ठा और पवित्रता के साथ,
सौंपे जाते हैं धातु के बने उनके वास्तविक त्रिशूल ।
दसवें दिन विसर्जन को ले जाती हुई मूर्ति से वापस उतार लिए जाते हैं देवी के हाथों से
धातु के असली अस्त्र और शस्त्र
और सौंप दिए जाते हैं
कागज के सुसज्जित अस्त्र शस्त्र
जिनमें नहीं होती है शक्ति वार करने की, दंड देने की या प्राण हर लेने की ।
उतार लिए जाते हैं देवी के वास्तविक अस्त्र शस्त्र
ताकि विसर्जन के वक्त पूजा के नाम पर
आस्था विश्वास और श्रद्धा के अवगुंठन में यदि कोई हाथ
सहारे के नाम पर चला जाए
देवी के कटि भाग अथवा उस से नीचे,
या पकड़ ले बाहों को
अथवा इसी प्रक्रम में सुरक्षा घेरा प्रदान करने के नाम पर
चिपक जाये उसकी ममतामयी छाती से
और फिर से देवी का त्रिशूल
उसके चिपचिपेपन का सहारा ले कर सरक ना जाए
और इस बार कहीं काट ना डाले उन हाथों को
बेध ना दे उन छातियों को जिन्होंने सहारा देने के नाम पर
अपने गंदे स्पर्श से
दाग लगा दिए थे देवी के दामन में ।
जिन्होंने श्रद्धा और भक्ति के अवगुंठन में,
अपनी छाती में छिपा रखा था वासना का मूल मंत्र ।
अपने कर्मों के साक्षी मनुष्य,
भय से आतुर हो कर यूँ
छीन लेते हैं देवियों के वास्तविक
अस्त्र शस्त्र और वस्त्र । -2
किन्तु भूल गए हैं वे उसके प्रचंड काली कालरात्रि के स्वरूप को ।
जो धारण करती है उनके मुंड रुंड के वस्त्र और पैदा करती है अपनी श्वांस के वेग में प्रचंड अग्नि की लपटें ।
ले आती हैं प्रलय समस्त सृष्टि में उसके कदमों की थर्राहट ।
अंततः उसे शांत करने के लिए
बिछ जाना पड़ता है
उसके चरणों में स्वयं शिव को ।
दिव्या त्रिवेदी
वाहहहह वाहहहहह झक झोरती अंतस को सम्वाद करची रचना