तपन और शीना की मुलाकात एक ’प्ले’ में हुई थी। तपन स्टेज का एक समर्पित कलाकार था और शीना एक जुझारू टीचर थी, जिसे हर बार क्लास रूम एक नयी चुनौती लगता था। शीना को ड्रामा की दुनिया का ’का-खा-गा’ भी नहीं मालूम था। उसने आज तक कभी कोई नाटक नहीं देखा था, पर जब उसकी रूम मेट्स ने बहुत जोर दिया, तब शीना को जाना पड़ा। उसने ये भी सोचा कि वो अकेली कमरे में पड़ी-पड़ी क्या करेगी। बस उस बदमाश पियूष को गालियां देगी और अपनी किस्मत को कोसकर रोएगी।
उसकी ’रूम मेट’ भारती ये बात जानती थी, इसीलिए उसने पहले भी कई बार शीना के सामने प्रस्ताव रखा था कि वो उनके साथ बहार चले, थोड़ा घूमे-फिरे, बाहर की दुनिया देखे, लोगों से मिले, तो उसका ग़म हल्का होगा।
पर शीना आज से पहले कभी राज़ी नहीं हुई थी। वो बाहर की दुनिया से कोई संपर्क नहीं रखना चाहती थी। बड़े लोगों से उसे नफ़रत हो गई थी, इसीलिए उसने बच्चों के स्कूल की ये मामूली नौकरी पकड़ ली थी। वो भी अपने शहर से हज़ारों मील दूर मुंबई में, ताकि पिछले जीवन की एक भी याद उसके ज़ख्म कुरेदने न आए। वो भूल जाना चाहती थी कि इसी अक्टूबर उसकी शादी होने वाली थी। वो ये भी याद नहीं करना चाहती थी कि किस तरह धूमधाम से उसकी सगाई हुई थी और फिर किस तरह बदनामी के साथ वो सगाई टूट गई थी।
उसे दहशत होती थी, जब वो किसी प्यार करने वाले जोड़े को देखती थी। उसकी सारी इन्द्रियाँ उस वक़्त दो महीने पहले के उस ’सीन’ पर केन्द्रित हो जातीं थीं, जब उसने आखि़री बार पियूष से बात करने के लिए उसे होटल में लंच के लिए बुलाया था।
शीना के घरवाले उसे मना कर रहे थे, पर शीना को लग रहा था कि पियूष मान जाएगा। आखि़रकार घरवालों की आशंका सच साबित हुई। पियूष बड़ी बेरहमी से शीना के सारे सपने ठुकरा कर चला गया था।
इसी के बाद शीना मुम्बई आ गई थी। उसने घर में यही कहा था कि वो मुंबई में अपनी बड़ी दीदी के साथ रहेगी, पर दीदी के घर में हर वक़्त कुछ सवालिया निगाहें उसका पीछा करतीं, इसलिये वो वर्किंग हॉस्टल में आ गई थी। यहाँ भारती उसे अच्छी लगी थी, जिसने उसके बारे में कभी कुछ नहीं पूछा था, पर कई बार टुकड़ों में सुन-सुन कर वो ये जान गई थी कि अपनी टूटी सगाई को लेकर शीना बहुत बेचैन है, इसीलिए वो शीना का ख्याल रखती।
शायद ये भी एक वजह थी उस दिन ’प्ले’ देखने की। शीना, भारती को बार-बार मना करके उसका दिल नहीं दुखाना चाहती थी, लिहाजा वो भारती और उसके ऑफिस की दो लड़कियों के साथ तपन का ’प्ले’ देखने चली गई। नाटक का विषय था ’नारी मुक्ति’। एक बेबस सताई हुई लड़की किस तरह लोगों का खिलौना बनकर भी अपने जीवन में बलिदान करती जाती है। नाटक समाप्त होने के बाद वो जब बाहर निकले, तब शीना का मन बहुत आंदोलित था। तभी तपन उधर आया। तपन उस नाटक का डायरेक्टर था। भारती उसे पहले से जानती थी। उसने शीना का परिचय तपन से करवाया। शीना ने छूटते ही पूछा, ’नाटक में औरत को इतना बेचारी बनाना क्या ज़रूरी था। ये तो सरासर पुरुष मानसिकता से प्रेरित नाटक था।’
तपन उससे काफी देर तक बातें करता रहा। उसे शीना के विद्रोही विचार अच्छे लग रहे थे। उस दिन के बाद तपन और शीना कई बार मिले। तपन का जब भी कोई नया नाटक होता वो ’पास’ देने के लिए हॉस्टल आता। अगर भारती नहीं होती तो शीना को ही उससे बातचीत करनी पड़ती। शुरू में तो शीना को बहुत अखरा, पर जल्द ही वो समझ गई कि तपन दूसरे लडकों से अलग था।
तपन सुलझी हुई बातें करता और हमेशा उसका यही प्रयास रहता कि उसकी किसी बात से शीना को बुरा न लगे। वो ज़िन्दगी की बड़ी से बड़ी मुश्किल को भी इस तरह देखता जैसे कोई चुटकियों में हल होने वाली पहेली सुलझा रहा हो और सबसे ज़्यादा आकर्षण तो उसकी बातों में था। दुनिया भर की खबरें सुनाता और इतना हंसाता कि शीना के पेट में दर्द होने लगता।
धीरे-धीरे शीना और तपन की मुलाकातें बढती गई। अब, जब वो मिलते तब उन्हें यही लगता कि कोई तीसरा उनके बीच न हो, बस वो दोनों बातें करते रहें।
इसी बीच एक दिन तपन ने शीना के हाथ में फूल की बनी अंगूठी पहनाते हुए कहा था, ’आज से तुम मेरी वाग्दत्ता हो।’ शीना पहले वाग्दत्ता का मतलब नहीं समझ पाई थी, पर जब तपन ने उसे बताया कि सगाई के बाद एक लड़की को उसके मंगेतर की ’वाग्दत्ता’ कहा जाता है, तब शीना ने तपन को बताया था कि किस तरह उसकी सगाई टूट गई थी।
शीना ये बताते हुए रो पड़ी थी कि उसे पियूष पर कितना विश्वास था, पर पियूष के घरवालों ने उससे बड़ा रिश्ता आने पर सगाई तोड़ दी थी। तब उसे लगता था कि पियूष ऐसा नही होने देगा, पर उसका ये विश्वास टूट गया था, जब खुद पियूष ने कहा था कि वो अपने घरवालों की मर्ज़ी के खिलाफ कुछ नहीं करना चाहता। बस तभी से सारी बात ख़़त्म हो गई। ये सुनकर तपन ने उसे समझाया था, ’जो होता है, अच्छे के लिए होता है। मैं तो यही मानूंगा कि अच्छा हुआ, जो पियूष की अक़्ल पर पत्थर पड़ गए, वरना तुम मुझे कैसे मिलती?’ शीना खिलखिलाकर उससे लिपट गई थी, ’बदमाश’! और फिर वो दोनों एक दूसरे में खो गए थे।
तपन के साथ शीना की ज़िन्दगी पूरी तरह से बदल गई थी। अब उसे नाटक दिलचस्प लगते। कई बार तपन का रिहर्सल होता तो शीना सीधे स्कूल से वहां पहुंच जाती और अपने साथ लाए टिफिन से तपन ही नहीं बल्कि उसकी पूरी मंडली को खिलाती।
नाटक के रिहर्सल के बाद सभी कलाकार अपने घरों को लौट जाते, पर तपन और शीना सीधे समुद्र का रुख करते। वहां रेत के घरौंदे बनाती शीना कई बार भावुक हो जाती। उसकी आँखों से आंसू बहने लगते, तब तपन उसे दिलासा देता, सीने से लगाता और समझाता कि जल्द ही उसका खुद का घरौंदा होगा।
दोनों ने फैसला किया था कि वो तभी शादी करेंगे जब तपन का कैरियर बन जाएगा। शीना को बेसब्री से इंतज़ार रहता कि कब उसके तपन को कोई बड़ा प्रोजेक्ट मिलेगा। तपन उसे बताता रहता कि किस तरह वो संघर्ष कर रहा है, पर उसने उम्मीद नहीं छोड़ी है। उसने शीना से कहा था कि फिल्में जब मिलेगी, तब मिलेगी, फिलहाल तो वो कोई टीवी सीरियल साइन करने की फ़िराक में है। अगर एक टीवी सीरियल भी मिल जाए, तो उन्हें दुनिया बसाने से कोई नहीं रोक सकता। शीना भी ये बात जानती थी, इसलिए उसने बाकायदा गुरूवार का व्रत रखना शुरू कर दिया था। वो और तपन दो बार शिर्डी भी हो आए थे।
शायद ये शीना की प्रार्थनाओं का ही असर था कि तपन को एक रियल्टी शो मिल गया। शीना की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, पर ये जानकार वो कुछ उदास हो गई कि शूटिंग के सिलसिले में तपन को दो महीने उसी टापू पर रहना पड़ेगा, जहाँ सभी प्रतिभागियों को प्राकृतिक वातावरण में नित्य नयी चुनौतियों का सामना करके दिखाना था।
तपन ने उसे प्यार से थपथपाकर कहा, ’अब ये लटका हुआ मुंह सुधार लो और ये सुस्ती छोड़ दो। मेरे पीछे दो महीने तुम्हें कई काम काम करने हैं।’
शीना ने सवालिया निगाहों से उसकी और देखा तो तपन बोला, ’क्यों भई, दो महीने बाद शादी है। उसकी सारी तैयारियां करनी हैं। हॉल बुक कराना है, कपड़े बनवाने हैं, घर ठीक करना है, और सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी तो ये है कि मेरी होने वाली दुल्हन का ख़ास ख़्याल रखना है। मैं लौटकर तुमसे ही मांगूगा।’ शीना ने तपन को ख़ुशी-ख़ुशी विदा किया।
रोज़ रात को कुछ समय निकालकर तपन उसे फोन ज़रूर करता और पहला सवाल यही करता, ’मेरी होने वाली दुल्हन कहीं दुबली तो नहीं हो रही है? उसने खाया कि नहीं।’ शीना कोशिश करती कि उसकी बातों से तपन को ऐसा न लगे कि उसके बिना वो कितना अकेलापन महसूस कर रही है, इसलिए वो तपन की हर बात का हंसकर जवाब देती।
दो महीने बाद तपन का काम पूरा हो गया। पूरी यूनिट मुंबई एयर पोर्ट पहुंची, तो शीना ने दूर से ही हाथ हिलाकर तपन का स्वागत किया। वो कुछ कमज़ोर लग रहा था। तपन ने आते ही शीना को गले लगाया और जब वो दोनों बाहर निकलने लगे, तभी तपन अचानक लड़खड़ा गया। शीना घबरा गई, पर तपन ने उसे थकान कहकर टाल दिया। घर पहंुचकर तपन चुपचाप लेट गया और शीना उसे शादी की सभी तैयारियों के बारे में बताती रही। उसे गर्म खाना खिलाया और उस रात वहीं रुक गई।
सुबह शीना उठ गई, पर तपन को उसने सोने दिया। दो महीने की थकान थी, उसे आराम की ज़रूरत थी, पर जब दस बजे तक तपन नहीं उठा, तब शीना उसे जगाने के लिए पहुंची। उसने देखा, तपन को बहुत तेज़ बुखार था। शीना ने डॉक्टर को फोन किया, तपन को दवाई दी गई। उस दिन शीना ने स्कूल से छुट्टी ले ली, पर तपन का बुखार अगले दिन भी नहीं उतरा।
डॉक्टर दवा बदलते रहे, पर तपन की हालत दिन ब दिन बिगड़ने लगी। उसे अस्पताल ले जाना पड़ा। सारे टेस्ट किये गए और तब जो रिपोर्ट मिली उसने शीना की दुनिया ही उजाड़ दी।
तपन का लीवर खराब हो चुका था। इलाज शुरू हुआ, पर हर बार डॉक्टर के चेहरे पर निराशा ही नज़र आती। शीना को चिंतित देखकर तपन कहता ’मुझे घर ले चलो, चार दिन तुम्हारे हाथ का खाना खाऊंगा, तुमसे बातें करूंगा तो अच्छा हो जाऊंगा।’ शीना मुस्कुरा देती, वो भगवान् से प्रार्थना करती कि उसका तपन ठीक हो जाए, पर शायद इस बार उसकी प्रार्थना अनसुनी रह गई थी।
तपन की हालत बिगडती गई। शीना दिन रात अस्पताल में ही रहती। उस रोज़ भी शीना तपन के सिरहाने ही खड़ी थी, जब तपन ने आखि़री सांस ली। तपन से बातें करती शीना को जब कोई जवाब नहीं मिला, तब उसने तपन को हिलाया और फिर घबराकर डॉक्टर को आवाज़ दी। तपन उसे छोड़कर दुनिया से जा चुका था।
शीना आज अकेली है, पर अब वो हर हफ़्ते व़क्त निकालकर नाटक देखने जाती है और वहां आए सारे कलाकारों को खाना ज़रूर खिलाती है। उसकी आस्था है कि कलाकारों की आत्मा की तरह उनके आशीर्वाद भी सच्चे होते हैं, वो चाहती है कि अगले जन्म में जब उसकी मुलाक़ात तपन से हो तब वो फ़ौरन उसे पहचान ले और फिर शीना सिर्फ वाग्दत्ता नही, बल्कि तपन की विवाहिता बनेंगी।