सर्दियों की कोहरे में डूबी सुबह। आजकल सब सूरज के इंतज़ार में घर में रहते हैं और अक्सर दस बजे के बाद ही चहल-पहल दिखाई देती है। ऐसी सर्दी में रमण बाहर निकलने की कल्पना भी नहीं कर सकता था, पर इस वक़्त वो अपने दोस्त अनिल के साथ बाहर था।
दरअसल, छह सालों तक रमण बाहर ही रह रहा था। उसने सीए का चौथा पेपर ही क्लियर किया था कि उसे नौकरी मिल गई, लेकिन अपने पिता की बीमारी के कारण उसे वापिस शहर लौटना पड़ा था। उसे लखनऊ में उस तरह की नौकरी मिलने की उम्मीद नहीं थी, जो वो छोड़ कर आया था, लेकिन हालात को देखते हुए रमण ने तय किया कि वो छोटे-मोटे काम करते हुए सीए का आखिरी पेपर देगा और फिर यहीं लखनऊ में प्रक्टिस करेगा।
बूढ़े माता-पिता को अकेले छोड़ना उसे मंज़ूर नहीं था, हालांकि वो लखनऊ की सर्दियाँ लगभग भूल चुका था, लेकिन अनिल के इसरार ने भूली हुई यादों को फिर ताज़ा कर दिया। कल रात को अनिल उसे लेने स्टेशन पंहुचा था, तब उसे ठण्ड से कांपते देखकर कहा था ’इस शहर में लौट तो आये, पर सर्दियों से लड़ने के लिए अभी तुम्हें अन्दर से मजबूती लानी होगी। कल सुबह सात बजे तैयार रहना। मैं तुम्हें अब से रोज़ वाक् पर ले जाऊंगा।’
अनिल के कहने पर वो सुबह सात बजे उसके साथ रेसीडेंसी तक टहलने गया था। वहां से लौटकर दोनों तैय्या हलवाई का गाढ़ा दूध और जलेबियों का नाश्ता कर रहे थे, तभी रमण ने खाली सडक पर एक रिक्शा जाते देखा। सड़क पर दो चार रिक्शे और भी थे, लेकिन उस रिक्शे ने अचानक रमण का ध्यान अपनी और खींच लिया।
रिक्शे पर बैठी खूबसूरत सी लड़की बार-बार अपने बाल संभाल रही थी। उस कड़कड़ाती ठण्ड में उसने एक भी गर्म कपड़ा नहीं पहना था। रमण ने खुद को देखा, एक हाफ स्वेटर और पुलोवर पहनने के बावजूद उसे ठण्ड लग रही थी, लेकिन लड़की को देखकर लगता था कि उसे मौसम के तेवरों से कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा है।
रमण ने इसी शहर में आँखें खोली थी। यहीं वो पला-बड़ा था, इसलिए उसे पता था कि उसके इलाके में किस तरह के लोग रहते हैं। उन सबसे अलग उस सुन्दर लड़की ने एक बार सरसरी निगाहों से रमण की और देखा और फिर सामने देखने लगी। अनजाने में ही रमण के मुंह से निकल गया ’क्या खाती है, जो इसे ठण्ड नहीं लगती।’
अनिल ने चौंककर उसकी और देखा और आगे जाती लड़की को देखकर कहा ’दौलत की गर्मी है भाई, इसका बाप बहुत बड़ा बिज़नेसमैन है। पांच साल पहले मंदिर के सामने वाली ज़मीन खरीद ली। चल तुझे दिखाता हूँ क्या आलीशान घर बनवाया है।’ रमण ने कहा ’हाँ वो तो इस लड़की को देखकर ही लगता है कि इसे किसी महल जैसे घर में रहना चाहिए।’
अनिल ने उसकी पीठ पर धौल जमाते हुए कहा ’सूरत पर मत जैय्यो यार, दिमाग से बिलकुल पैदल है। अभी पिछले साल तीन बार कोशिशें करने के बाद बारहवीं पास की है। बाप के पैसे से कालेज में एडमीशन तो हो गया, लेकिन फर्स्ट ईयर में ही दूसरे साल भी पढ़ रही है। देखो फर्स्ट ईयर कब पास कर पाती है बेचारी।’ फिर रमण कुछ नहीं बोला, लेकिन उस अनजान लड़की के लिए उसके दिल में एक हमदर्दी ज़रूर आ गई। काश वो उसकी कोई मदद कर पाता। उसकी ये इच्छा जल्द ही पूरी हो गई।
रमण एक कंपनी में एकाउंट्स चेक करने जाता था। उसके मालिक ने एक दिन उससे कहा कि वो बहुत दिनों से रमण जैसा काबिल और भरोसे का आदमी ढूंढ रहे थे जो बीकॉम कर रही उनके दोस्त की बेटी को पढ़ा सके। ट्यूशन के लिए मुंहमांगी रकम देने को तैयार हैं।
रमण ने सोचा, हफ्ते में तीन दिन की बात है, मालिक पर एहसान रहेगा और साथ ही कुछ कमाई भी हो जाएगी। वो तैयार हो गया। बताये गए पते पर पहंुचा, तो सामने मंदिर देखकर भी उसे उस सुबह की याद नहीं आई, पर घर में पहुंचकर लड़की के पिता से मिलने के बाद जब उसका सामना अपनी स्टूडेंट से हुआ, तब एक पल के लिए वो चौंक गया। जाने किस घड़ी में उसने वो बात सोची थी। लड़की का नाम अनीता था।
वो वाकई बहुत सुन्दर थी, लेकिन जैसा कि अनिल ने कहा था, पढ़ाई के मामले में बिलकुल कोरी थी। रमण उसे जान लगाकर सवाल समझाता। अगले दिन के लिए कुछ सवाल करने को देता, पर जब वो आता तब अनीता की कापी खाली ही मिलती। वो बड़ी अदा से कहती ’सर, हमें ये आया ही नहीं।’ रमण चाहकर भी कुछ बोल नहीं पाता और फिर उसे पूरे दिल से समझाने लगता।
धीरे-धीरे अनीता और रमण की पढ़ाई आगे बढ़ने लगी। उसके साथ उनके बीच की दूरियां भी कम होने लगीं। एक दिन समझाते हुए अनीता ने कह दिया ’देखिये सर जी, आप सामने होते हैं तो हम सवाल कर लेते हैं, पर जब आप नहीं होते, हमसे नहीं हो पाता। आप ही बताइये हम क्या करें।’ अनीता की इस बात पर रमण हंसकर बोला ’सबसे पहले तो मुझे सर नहीं रमण कहना शुरू करो। ये जी भी अच्छा नहीं लगता।’
उस दिन के बाद से अनीता रमण को नाम से बुलाने लगी। फर्स्ट ईयर के इम्तिहान हुए और रिज़ल्ट आया, तो अनीता पास हो गई। उसके पिता की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। उन्होंने रमण के पैसे बढ़ा दिए। सेकण्ड ईयर में रमण और मेहनत से अनीता को पढ़ाने लगा। अनीता भी अब रमण से बेतकल्लुफ होती जा रही थी। कई बार उसके हाथ से किताब छीन कर कहती ’अब बस, अब हम बातें करेंगे।’
सितम्बर में जब रमण की सालगिरह आई, तब अनीता ने अपने घर में ही उससे केक कटवाया और बोली ’आज हम अपनी और से आपको एक गिफ्ट देना चाहते हैं, लेकिन पहले आप आँखे बंद करिए।’
रमण ने आँखे बंद की तो अनीता की गर्म साँसे उसके गालो से टकराईं, फिर कुछ देर बाद ही उसे उस तपते स्थान पर दो नर्म पंखुड़ियों का एहसास हुआ। रमण ने अचकचाकर आँखे खोलीं, लेकिन अनीता का सम्मोहन इतना गहरा था कि वो खुद ही उसमें डूबता चला गया।
समय तेज़ी से बीत रहा था। सेकण्ड ईयर के इम्तिहान होने वाले थे कि एक दिन जब रमण पढ़ाने पहुंचा, तब अनीता ने रोते हुए बताया कि पिताजी शादी के लिए किसी से बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि अगले साल ही उसका रिश्ता पक्का कर देंगे और थर्ड ईयर करते ही शादी कर दंेगे।’ वो रमण के सीने से चिपककर बोली ’हम तुम्हारे बिना मर जाएंगे।’
रमण भी बौखला गया। ये तो उसने सोचा ही नहीं था। फिर भी अब जो कुछ सामने था, उससे निपटना ही था। ये तो तय था कि अनीता के पिता किसी हालत में उसकी शादी रमण से नहीं करेंगे। न तो वो उनकी जाति का था और न ही उनकी बराबरी का, इसलिए जो करना था उन दोनों को ही करना था। और वो भी जल्द से जल्द।
उसने अनीता से पूछा ’क्या वो उसके साथ ज़िन्दगी बिता सकेगी।’ अनीता ने रोते हुए उसके पाँव पकड़ लिए। रमण काफी देर तक सोचता रहा, फिर उसने अनीता से कहा कि इम्तिहान हो जाने दो, फिर कुछ करते हैं। उस दिन पढ़ाई तो नहीं हुई, बस अनीता के आंसुओं की बरसात में रमण डूबता उतराता रहा। उसने अनीता को आश्वासन दिया कि ’अब वो हफ़्ते में तीन दिन की बजाय रोज़ उसके पास आएगा, वो घबराए नहीं।’
अनीता को तो उसने समझा लिया, लेकिन उसके खुद के हालात कुछ अच्छे नहीं थे। एक ओर बीमार और बूढ़े पिता और माँ का ख्याल था, दूसरी ओर उसका अनिश्चित भविष्य था। फिर भी वो अनीता को खोना नहीं चाहता था और फिर उसे यकीन था कि वो अपनी मेहनत और प्रतिभा से जल्द ही अपना सीए का काम जमा लेगा।
सेकण्ड ईयर के इम्तिहान हुए और जिस दिन आखि़री पेपर था, उसी दिन अनीता इम्तिहान हाल से जल्दी निकल आई। बाहर रमण खड़ा था। वो दोनों शादी के लिए मंदिर की ओर बढ़े। उधर अनीता को इम्तिहान से वापिस घर लाने के लिए भेजी गई कार जब खाली लौट आई, तब घर में कोहराम मच गया। सारे शहर में ढुढाई शुरू हो गई।
रमण और अनीता शादी के बंधन में बंधने वाले ही थे कि अनीता के घरवाले वहां पहंुच गए। बेटी को लाल जोड़े में देख अनीता के पिता ने आसमान सर पर उठा लिया और तभी उन्हें दिल का दौरा पड़ा। शादी तो नहीं हो सकी, बल्कि सब उन्हें लेकर बदहवास से अस्पताल भागे। रमण को दुत्कारा जा रहा था। फिर भी वो उनके साथ ही रहा।
अगले दिन फिर वो उन्हें देखने अस्पताल गया, जहाँ उसकी काफी बेइज्ज़ती हुई। हैरानी की बात ये थी कि उस बुरे दौर में, जबकि सभी अपने पराये अस्पताल में इकट्ठा थे, अनीता का कहीं पता नहीं था। रमण को बेचैनी हुई, पर उसने शांति से काम लिया। दो दिन बाद फिर अनीता की झलक पाने वो अस्पताल गया, लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगी। यहाँ तक कि अनीता के पिता अस्पताल से ठीक होकर घर भी लौट आये। ये खबर सुनकर जब रमण उसके घर की तरफ गया, तब भी अनीता की कोई खबर नहीं मिली। उसकी सहेलियां भी नहीं जानती थीं कि अनीता किस हाल में है और कहां है।
एक दिन रमण को पता लगा कि अनीता की शादी होने वाली है। हारकर रमण ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई कि अनीता के पिता ने अपनी बालिग़ लड़की को ज़बरदस्ती घर में रोक रखा है। पुलिस में शिकायत दर्ज करवाने के दो दिन बाद ही उसे थाणे बुलवाया गया। जब रमण वहां पंहुचा, तब अनीता भी थी। पुलिस इन्स्पेक्टर ने कहा कि अनीता ने उसके खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है कि वो उसे रास्ते में रोकता है। ऐसे में पुलिस किस शिकायत को सही माने?
रमण ने कहा कि उसकी अनीता ऐसा कर ही नहीं सकती, पर अनीता के तेवर कुछ और ही कह रहे थे। उसने सबके सामने रमण को जलील कर दिया। उसकी औकात याद दिलाई और कहा कि वो उसके ख़्वाब देखना छोड़ दे, वरना ज़िन्दगी भर जेल में सड़ जाएगा।
रमण को यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी अनीता ये बातें कह रही है। पर सच सामने था। रमण के खिलाफ ज़हर उगलकर अनीता चली गई। पुलिस इन्स्पेक्टर ने उसे देर तक समझाया। रमण लड़खड़ाते कदमों से घर लौट आया। अनीता को लेकर उसने ज़िन्दगी में जो सपने संजाये थे, वो सभी टूट चुके थे।