कवि : गोप कुमार मिश्र
मजमून -186-“प्रतीक्षा /इंतज़ार ”
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प्रतीक्षारत पथराई आँखें -गीत
सिसक रही सम्वेदना ,रिश्ते हुए फकीर
रिश्तों की तहरीर अब पानी पड़ी लकीर
सोलह महिनें हो गये ,टूट गयी हर आश
रही प्रतीक्षित रात दिन , बूढ़ी माँ की लाश
बदली वह कंकाल में ,सुप्त पडोस ज़मीर
सिसक रही सम्वेदना, रिश्ते हुए फकीर
धन आकांक्षा पुत्र की , ममता का बन काल
दिल को बीते साल की , बात रही ये साल
भाव शून्य जन भावना, रत्न जड़ित तस्वीर
सिसक रही सम्वेदना ,रिश्ते हुए फकीर
एक नही माँ साहनी , आशा आस निराश
हर चौराहे घूमतीं , बृद्ध जनों की लाश
धुँधली आँखों मे लिए, सपनों की जागीर
सिसक रही सम्वेदना ,रिश्ते हुए फकीर
देवन दुर्लभ तन मनुज , हुई पुरानीं बात
पाथर की पाथर रही , मानुष तेरी जात
यक्ष प्रश्न है पूछती , मानवता की पीर
सिसक रही सम्वेदना ,रिश्ते हुए फकीर