Month: September 2020

कहानी : जी उठा तुलसी का पौधा

कथाकार: सुनीता महेश्वरी बन्नो तेरी अँखियाँ सुरमे दानी, बन्नो तेरा टीका लाख का रे......” | शुभदाबड़ी तन्मयता से गाते हुए, गहने पहन कर शीशे में देख रही थी | तभी उसकेपति शरद सिंह आए और उसकी कमर में हाथ डालते हुए बड़े प्यार से बोले -“अरे वाह ! आज तो बड़ी तरन्नुम में हो |” “बेटी की शादी जो है |” शुभदा बोली | बेटी की शादी की बात सुन कर शरद सिंह भावुक हो उठे | वे शुभदा का हाथपकड़ कर कहने लगे, “हमारी  प्रिया बिटिया कितनी प्यारी, मासूम औरसमझदार है | चहक –चहक कर पूरा घर खुशियों से भर देती है | उसका सेन्सऑफ़ ह्यूमर तो लाजवाब है | उसके बिना घर कितना सूना हो जाएगा, शुभदा|” कहते हुए शरद सिंह की आँखें भर आईं | वैसे भी बेटियां पिता को ज्यादाप्यारी होती हैं | शरद की नम आँखें देख शुभदा भी भावुक हो गई,  “शरद, कैसे रहेंगे हम अपने दिल की धड़कन के बिना ? न जाने ससुराल में सब उसकेसाथ कैसा व्यवहार करेंगे ?” शुभदा रोते-रोते बोले जा रही थी | शरद सिंहबड़े प्यार से उसे समझाते हुए बोले, “शुभदा,  हमारी बिटिया की ससुराल बहुत अच्छी है | तेज बहादुर जीलोकप्रिय राजनेता हैं | उन्होंने अपने पुत्र राज बहादुर में भी अच्छे संस्कार हीडाले होंगे | जहाँ तक प्रिया का सवाल है,  तो मुझे पूरा विश्वास है कि हमारीमल्टी नेशनल कंपनी में जॉब करने वाली होशियार, मिलनसार बिटिया सबका मन जीत लेगी | सब की लाड़ली बन जाएगी, देख लेना तुम |” “हूँ, यह बात तो सच है | प्रिया है ही इतनी प्यारी .... मुझे तो अब शादी कीचिंता है | हे गणपति महाराज ! सब इंतजाम अच्छी तरह हो जाएं |” शुभदा नेगहने सँभालते हुए कहा |    शरद सिंह मुस्कराए और बोले, “ चिंता छोड़ो शुभदा | मैंने सारे इंतजामअच्छी तरह कराये हैं | शुभदा,  शादी का जश्न तो ऐसा होगा कि सब देखतेही रह जाएँगे |”     तभी चहकती हुई प्रिया भी आ गई और पापा-मम्मी से लिपट कर बोली,  “पापा आज लंच के लिए रेस्टोरेंट चलें और फिर वहीं से शॉपिंग ?” शरदसिंह अपनी लाड़ली की सब ख़्वाहिशें पूरी करना चाहते थे | वे इस एक महीनेको यादगार बना लेना चाहते थे | अतः तुरंत ही तैयार हो गए | उनके मन मेंशादी की खुशी थी और बेटी से बिछड़ने का दुःख | चुलबुली सी प्रिया कभी मम्मी –पापा का मन बहलाती, तो कभी शादी केहसीन सपनों में खो जाती | राज और प्रिया स्काइप पर देर रात तक अपनेभविष्य के ख्वाव सजाते | उनकी प्यारी जोड़ी को देख कर दोनों के माता-पिता की जीवन-बगिया में खुशी के फूल खिल उठे थे |...

संस्मरण : जापान यात्रा

जापान ​का लैंडमार्क है माउंट फ़्यूज़ी -संतोष श्रीवास्तव   ​मैं पहुँची हूँ जापानी कवि बोन्चो और रीटो के देश में| रीटो के काव्य...

समाजगत हिंसा का जेंडर पक्ष (कोविड-१९ काल के विशेष संदर्भ में) -कुसुम त्रिपाठी

प्रो. कुसुम त्रिपाठी जेंडर स्टडीज विभाग डॉ. बी.आर.अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान पितृसत्ता एक सामाजिक व्यवस्था भी है और एक विचारधारा भी, जिसके...

कोविड-19: मानवीय संवेदनाएँ और महिलाओं पर हिंसा – कुसुम त्रिपाठी

कोविड-19, मानवीय संवेदनाएँ और महिलाओं पर हिंसा - कुसुम त्रिपाठी हम आज कोरोना कोविड – 19 के कारण अंतरराष्ट्रीय शोक से घिरे हुए है और राष्ट्रीय...

हिंदी

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र \निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल। अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन। उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय। निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय। इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग। और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात। तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय। विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार। भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।...