कोविड-19: मानवीय संवेदनाएँ और महिलाओं पर हिंसा – कुसुम त्रिपाठी
कोविड-19, मानवीय संवेदनाएँ और महिलाओं पर हिंसा – कुसुम त्रिपाठी
हम आज कोरोना कोविड – 19 के कारण अंतरराष्ट्रीय शोक से घिरे हुए है और राष्ट्रीय स्तर पर आज हम बेहद खौफनाक, अमानवीय, असंवेदनशील माहौल में सांस ले रहे हैं। देश में अचानक लॉकडाउन की घोषणा से सब कुछ थम-सा गया। मशीनें रुक गई, कारखाने, मिलें, ट्रेन, बस, रिक्शा, हवाई जहाज, यातायात के सभी साधन, ऑफिस, स्कूल, विश्वविद्यालय सब कुछ बंद हो गए। यह वक्त है करुणा और मानवीय संवेदना को समझने का। सम्पूर्ण मानवता ने कोरोना वायरस संक्रमण से गम्भीर पीड़ा को, दर्द को महसूस किया है। कोरोना संक्रमण के कारण आज विश्व भर में लोगों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा को खतरे में डाल दिया। इस बीमारी से हुई मृत्यु से विश्व ने गम्भीर पीड़ा को महसूस किया है। संक्रमण के दुष्प्रभाव को समझकर विश्व के 90 देशों में लॉकडाउन की घोषणा कर दी। परिणाम भयानक निकलें।
गरीब, निराश्रित, बुजुर्ग, महिलाएँ, जरुरतमंदों के लिए प्रशासन से लेकर स्वयं सेवी संस्थाओं (NGO) मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा तक ने भोजन, पानी, रहने की व्यवस्था की। पर ये व्यवस्थाएँ कितने दिनों तक चलती?
हमारे देश में कुछेक महानगरों में शहर बसाये गये इसलिए करोड़ों मजदूर काम की तलाश में मुम्बई, कोलकत्ता, दिल्ली, चैन्नई, हैदराबाद तथा अन्य शहरों में काम की तलाश में जाते है। ये मजदूर ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर है। असंगठित क्षेत्रों में काम करने वालों की संख्या अधिक है। खासकर औरतों की। गांवों से दो जून की रोटी के लिए ये गांव की तरफ लौटने लगें। जिन मजदूरों के मेहनत, खून-पसीनों से हमारे देश के औद्योगिक शहरों का विकास हुआ है, उन्हीं नागरिकों को सही ढंग से जीने का हक नहीं मिल सका। बेरोजगार हुए ये अप्रवासी मजदूर शहरों से भूखे, प्यासे, महामारी के बीच अपने परिवारों के साथ 40-45 डिग्री तापमान में दो ढाई हजार किलोमीटर पैदल यात्रा पर अपने गांव पहुँचने के लिए निकल पड़ें। भूखे, बेबस लोगों पर सरकारी सख्ती, पुलिस का बर्ताव, देश की आत्मा को छलनी करने वाला है। स्वतंत्रता और गरिमा का आकांक्षी कोई राष्ट्र अपने नागरिकों को यूँ मरने नहीं दे सकता। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिंदगी की जद्दोजहद में रोजाना उनकी गरिमा को तार-तार किया जा रहा है। रास्ते में स्त्रियाँ बच्चा पैदा करने पर मजबूर है। मासिक धर्म के आने के बावजूद स्त्रियाँ चलने पर मजबूर है। लॉकडाउन के बीच हम सोशल मीडिया द्वारा इन भयंकर दृश्यों को अपनी आँखों से देख रहे थे। कहाँ गई थी मानवीय संवेदनाएँ? करोड़ों लोगों के प्रति क्या हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं थी?
यह समय है आत्मसंयम, आत्मचेतना के साथ रहने का। महिलाएँ और बच्चे गंभीर कुपोषण और एनीमिया के शिकार हो रहे है। मनरेगा के अंतर्गत नौकरियाँ लोगों को दी जा रही है पर शहरों से आए लोगों से गांवों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई। कोरोना के चलते मानवीय पीड़ा को विभाजित नहीं किया जा सकता, पर अमीर/गरीब जेंडर विभेद विश्वभर में भयंकर दिखाई दिया। लॉकडाउन के दौरान महिलाओं पर हिंसा की वारदातें वैश्विक स्तर पर दिखाई दी। 1995 में चीन के बीजिंग में विश्व महिला अधिवेशन हुआ था। जिसमें स्वीकार किया गया था कि महिलाओं पर होने वाली हिंसा विश्व स्तर पर प्रमुख मुद्दा है।
आज 25 वर्षों के बाद भी जब लॉकडाउन हुआ, तो संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेश को यह कहना पड़ा कि लॉकडाउन के दौरान दुनियाभर में घरेलू हिंसा के मामलों में भयानक वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा है कि दुनिया में कोरोना वायरस (कोविड-19) के लगातार बढ़ते संक्रमण का महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। जिनके कारण उनके प्रति मौजूदा सामाजिक असमानता काफी बढ़ी है। वे बोले – “महामारी के कारण महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर उनकी आर्थिक स्थिति और सामाजिक सुरक्षा पर काफी बुरा असर पड़ा है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा में भी काफी वृद्धि हुई। सभी देशों को महिलाओं के भविष्य को केंद्र में रखकर सामाजिक आर्थिक नीतियाँ बनाई जानी चाहिए। जिसका परिणाम बेहतर होगा और सतत् विकास के लक्ष्य को हासिल करने में मदद होगी।”
यू-एन-महासचिव एंटोनिया गुटेरेस ने सभी सरकारों से आग्रह किया है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा की रोकथाम और उसके निवारण के उपायों तथा कोविड-19 से निपटने के लिए राष्ट्रीय योजनाओं का अहम् हिस्सा बनना होगा। कई देशों में राष्ट्रीय महिला आयोग ने घरेलू हिंसा पीड़ितों की मदद के लिए टास्क फोर्स बनाने का फैसला किया।
लेबनान, मलेशिया में महिलाओं पर दुगुने हिंसा के केस आए तो चीन में तीन गुना। अमेरिका में कॉलेज जाने वाली लगभग एक चौथाई महिला छात्राओं ने यौन हमलों और दुराचार का सामना किया। अफ्रीका का सब-सहारा में 65% महिलाओं के साथ परिचितों ने दुराचार किया। आस्ट्रेलिया में घरेलू हिंसा के गूगल सर्च पिछले पाँच सालों में सबसे ज्यादा कोरोना काल में किये गये। फ्रांस में पीड़ितों को घरेलू हिंसा की रिपोर्ट दवाई की दुकानों में करने की सलाह दी गई और यदि दुर्व्यवहार करने वाला व्यक्ति साथ में हो तो किसी कोड का उपयोग करने को कहा गया है। बाद में दवाई की दुकान वाले पुलिस को सुचित करते है। कनाड़ा में लिंग आधारित हिंसा के कारण घर से भागने वाली औरतों के लिए आश्रयों की व्यवस्था की गई है। इन आश्रयों को सामाजिक दूरी का अनुपालन करते हुए बनाया गया है। स्पेन से खबरें आई कि कुछ महिलाएँ यातना से बचने के लिए खुद को कमरे में या बाथरुम में बंद करना शुरु किया। स्पेनिश सरकार के कड़े रूख के बावजूद महिलाओं के संदर्भ में ढिलाई दिखाई है। इटली में 24 घंटे हेल्प-लाइन की व्यवस्था की गई है।
भारत में पुलिसकर्मी लठ्ठ लेकर लोगों के पीछे दौड़ रहे है। लेकिन ऐसे समय में बच्चों और महिलाओं के साथ घरों में क्या हो रहा है, यह जानने की जरुरत किसी को नहीं।
एशिया में महिलाओं पर हिंसा के बारे में एशिया पेसिफिक की जनरल सेक्रेटरी भाग्यश्री डंगले ने कहा कि लॉकडाउन के पहले हफ्ते में ही 92,000 महिलाओं की शिकायतें आई। उन्होंने बताया नेपाल में 37% बच्चों पर हिंसा बढ़ी, तो बांग्लादेश में बच्चियों पर हिंसा, रेप और ट्रेफिकिंग की शिकायतें आ रही है। कोविड-19 में हिंसा के तरीकों में भी बढ़ोत्तरी हुई है।
उन्होंने कहा घरेलू हिंसा के तरीकों में भी सुधार की जरुरत है। यदि लॉकडाउन ऐसे ही रहा तो महिलाओं को हिंसा से बाहर रखना भी मुश्किल होगा। ‘Because We matter’ नाम से एशिया पेसिफिक ने कैम्पेन शुरु की।
मानवाधिकार के पैरोकारों ने भी कोविड-19 महामारी के दौरान युवा लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ बढ़ते यौन और शारीरिक हिंसा के मामलों पर चिंता जाहिर की है और विश्व के नेताओं, सरकारों से इस संबंध में तुरंत कारगर कदम उठाने का आह्वान किया है। भारत में भी राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने बीबीसी को बातचीत के दौरान बताया कि लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा की शिकायतों में इजाफा हुआ है। भारत में महिला आयोग के पास लॉकडाउन के एक सप्ताह में ही सौ से ज्यादा शिकायतें आई।
उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र इसमें आगे हैं। इन जगहों की महिलाओं ने ई-मेल या संदेश द्वारा महिला आयोग तक अपनी बातें पहुँचाई। उत्तर प्रदेश में राज्य पुलिस द्वारा मास्क पहनी हुई एक महिला के स्कैच के साथ यह संदेश विज्ञापन निकालना एक सराहनीय पहल है – “कोरोना को दबाए, अपनी आवाज को नहीं।”
पर दूसरी तरफ उसी उत्तर प्रदेश में बलात्कार, छेड़छाड़, हत्या की इतनी खबरें आई कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश महिला उत्पीड़न के मामले में देश में सबसे ऊँचे पायदान पर है। उ.प्र. महिलाओं की कत्लगाह में तब्दील हो गया है। ऐसी स्थिति में उ.प्र. में महिला सुरक्षा के लिए चल रही 181 वीमेन हेल्पलाइन व महिला समाख्या जैसी योजनाओं को सरकार ने बंदकर दिया है। परिणामत: महिला हिंसा की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है।
यहाँ तक हुआ कि लॉकडाउन के कारण हिंसा की शिकार औरतें न अपने मायके जा सकीं, न किसी को फोन कर सकी। जो पति हिंसा कर रहा है, उसी के साथ लॉकडाउन के साथ कैद हो गई। रिश्तेदारों, दोस्तों को फोन तक नहीं कर सकती। भले ही कुछ औरतें इंटरनेट का प्रयोग करने में सक्षम हो। अचानक लॉकडाउन से आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हुई। पैसों की कमी, नौकरी की असुरक्षा ने मानसिक रोगी बनाया। मनोवैज्ञानिक मुद्दे भी आदमी को हिंसक बना देते हैं। महिलाएँ ज्यादा नौकरियों से वंचित होगी, जिससे घरों में उनकी कमजोर स्थिति हो जाएंगी और उस कमजोर स्थिति में उन्हें और दबाया जाएंगा।
घरेलू हिंसा आवश्यक सेवाओं के दायरें में नहीं आता। कोरोना संकट में देश-विदेश से महिलाओं के खिलाफ बढती हिंसा की खबरें आ रही हैं। लॉकडाउन के कारण घर में बंद रहने के अलावा कोई चारा नहीं। टी.वी. पर आ रहे कोरोना के निर्देशों में पारिवारिक हिंसा पर जागरुकता के संदेश नदारद है। महिलाओं पर पड़े कामकाल के बोझ को भी चुटकुलों में बदला जा रहा है। आखिर औरत क्या है एक वस्तु, उपभोग की वस्तु, दासी, मुफ्त में काम करने वाली नौकरानी?
एक बेहद गम्भीर मुद्दे पर प्रशंसनीय लेख .. साधुवाद कुसुम जी
बहुत ही जरूरी और महत्वपूर्ण लेख है, वर्तमान संदर्भों को देखते हुए।
बहुत जरुरी और बेहतरीन आर्टिकल। कुसुम मैम जी को बहुत बहुत शुभकामनाएं।
आधी दुनिया ( एक तरह से पूरी दुनिया क्योंकि शेष आधी दुनिया भी इन्हींकी कोख में है) के पीड़ादायक सत्य को प्रकाश में लाता लेख।
covid se upaji samasyao ka atyant marmik varnan.
डॉ कुसुम त्रिपाठी ने तथ्यों और सूचनाओं के साथ मुद्दे को बेहतर तरीक़े से विश्लेषित किया गया है। एक गम्भीर मुद्दे को उठाया गया है, जिससे दुनिया भर में लाखों महिलाएँ अभी पीड़ित हैं।
Very Nice कुसुमजी.बिलकुल वास्तविकता हैं यह महीलोके प्रती हिंसा प्रतिबंधक कायदा कुछ भी नहीं कर पा रहा है!दुनिया भर मे पितृसत्ताक समाज ने महीलोका जीवन दुख दायक ब नाया हैं!कुसूमजी आपने बेहद गौर से और अभ्यास से यह सत्य शब्दोमे साकार किया हैं! आपने सहजता से ईस मानवी मुल्योकी कमी को दुनिया के सामने रखा हैं!बहुत जरुरी था यह की एक तरफ कोरोना lockdown… घर में बंद होना और दुसरी तरफ स्त्री शोषण..!आपका अभिनंदन ईस लेख के द्वारा जागरूकता निर्माण के लिये!
आज के संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण लेख
हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई कुसुम जी
कोविड-१९ में अप्रवासी मजदूर से लेकर विश्व की महिलाओं पर घरेलू हिंसा का ह्दयस्पर्शी लेख।ढेरों शुभकामना।
कोविड-१९ में अप्रवासी मजदूर से लेकर विश्व की महिलाओं पर घरेलू हिंसा का ह्दयस्पर्शी लेख दिल को झकझोर देता है। इस लेख के लिए आपको साधुवाद।
अप्रवासी मजदूर से लेकर विश्व की महिलाओं पर घरेलू हिंसा का ह्दयस्पर्शी लेख दिल को झकझोर देता है। इस लेख के लिए आपको साधुवाद।
बहुत ही सुंदर व संवेदनशील लेख मैम वर्तमान समय की परिस्थितियों को मद्देनज़र रखते हुए अद्भुत एवं जीवंत चित्रण……💐💐💐👌👌👌
आपने बहुत अच्छा लिखा है
मैम आपने बहुत की गंभीर मुद्दों को अपने लेख के माध्यम से उठाया। भारत सरकार को जनता के कल्याणार्थ योजनाएं बनानी चाहिए जिससे आम जनता हो फायदा मिल सकें। घरेलू हिंसा के पीछे सामाजिक सोच व आर्थिक पहलू भी मायने रखता है मैम…💐💐💐💐💐
बहुत संवेदनशील और रचनात्मक आलेख है कुसुम जी । नोटबंदी और असंगठित मजदूरों की चर्चा आपके वैचारिक पक्ष को जाहिर करती है।
Yes we have been hearing about it in bits n pieces but you have raised a very serious issue covering various socio economic strata in detail.
This is a well documented study which should reach the government for immidiate welfare schemes for women.
Kusum ji ,must congratulate you for writing n sharing such a heart touching report .
बहुत संवेदनशील तरीके से लिखा गया आलेख है। जिसमें स्थानीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर की तथ्यात्मक जानकारीयां भी हैं । असंगठित मजदूरों के बदतर हालातों में महिलाओं की स्थिति पर कुसुम जी की वैचारिक पकड़ जाहिर हुई। नोटबंदी के नकारात्मक परिणामों को लेकर प्रशासनिक लापरवाही को भी प्रश्नांकित किया गया