लुप्त-सुप्त विधाओं की महिमा – 4
आज एक और नयी विधा से आपका परिचय करवाने जा रहे हैं, वह है दुमदार दोहे
दुमदार दोहे का इतिहास
यह सनातन विधा नही है।
कहा जाता है कि पहला दुमदार दोहा रचने का श्रेय खुसरो को है।
खीर पकाई जतन से, चरखा दिया चलाय।
आया कुत्ता खा गया, बैठी ढोल बजाय।
ला, अब पानी तो पिला
अमीर खुसरो ने उक्त दोहा पढ़कर पानी माँगा और वह पँक्ति दोहे का विस्तार लगी।यानि दोहे का निचोड़ या निष्कर्ष कि अब पीने को पानी ही तो बचा है।
जहाँ तक जानकारी पायी गयी है आधुनिक युग में दुमदार दोहे बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मुज़फ्फरनगर के हास्य कवि श्री धर्मवीर ‘सबरस’ जी ने लिखे थे। उनकी एक पुस्तक ‘खटोला यहीं बिछेगा’ प्रकाशित हुई जिसमें 131 दुमदार दोहे हैं। प्रसिद्ध हास्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी के साथ कई अन्य हास्य व्यंग्य के कवियों ने भी इस तरह के दोहे लिखे।
अब प्रश्न यह उठता है कि दोहे में दुम की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
इस बारे में श्री धर्मवीर ‘सबरस’ जी का कहना है कि प्रसिद्ध दोहाकारों के भी कुछ दोहे पढ़कर लगता है जैसे इनमें कोई बात अधूरी- अनकही रह गयी। उस अधूरी-अनकही बात को पूरा करने के लिये दोहों के साथ दुम लटकाने की आवश्यकता हुई। उदाहरण के लिये सबरस जी का दोहा देखिये:
सास-बहू में ठन गयी, लड़ते बीती रात
बढ़ते-बढ़ते बढ़ गयी, सिर्फ ज़रा सी बात
खटोला यहीं बिछेगा
अगर इस दोहे को बिना दुम के पढ़ेंगे तो अधूरापन लगेगा कि किस बात पर ठनी? यह ज़वाब दुम देती है कि खटोला बिछाने के स्थान पर यह रार ठनी थी।
दुमदार दोहों के प्रकार
दोहे की दुम एक तरह से भावों का विस्तार है। इस प्रकार के दोहों का प्रयोग अक्सर हास्य या व्यंग्य लेखन के लिये किया जाता है। भावों को विस्तार देने के लिये कई लेखक दोहे में एक के स्थान पर 13-13 मात्राओं की दो तुकान्त पँक्तियाँ जोड़ देते हैं। उनके अनुसार यह दोहे के भावों को विस्तार के साथ सौंदर्य भी प्रदान करता है।
पर कई लेखक क्योंकि दुम एक ही होती है तो केवल एक ही पँक्ति जोड़ना पसंद करते हैं।
उदाहरण
एक दुम वाला दोहा
मेघ पोटली खुल गयी,बरसी मोती धार
आँचल भर लेती धरा, उनको बाँह पसार
भीगा है अन्तस सारा
दो दुम वाला दोहा
किरण- काफिला ले चला, सूरज संध्या काल
रात हुई सोने चला, थक कर वो बेहाल
सुबह फिर चलना होगा
रात को ढलना होगा
सारांश
दुमदार दोहे में दोहों के सामान्य विधान के अनुसार ही चार चरण होते हैं। बस 13 मात्राओं की एक या 13-13 मात्राओं की 2 तुकान्त पँक्तियाँ जोड़ी जाती हैं।
महिमा श्रीवास्तव वर्मा