मधुमालती छंदाधारित गीत…मेरा गाँव

सच स्वर्ग सा, आयाम है। सबसे कहूँ, वह ग्राम है।
पथ पर जहाँ, घन छाँव है। बस देख लो, वह गाँव है।।

पंछी उड़े, कल शोर से। धरती सजे, नव भोर से।।
ग्वाला चले, बंशी बजे। मधु तान दे, सपने सजे।।
जब साँझ हो, सूरज ढ़ले। गृह आँगना, दीया जले।।
श्री आरती, बिटिया करे। मुस्कान से, पीड़ा हरे।।
घर लौटते, चिड़ियाँ कहे, सबसे सही, निज ठाँव है।
पथ पर जहाँ, घन छाँव है। बस देख लो, वह गाँव है।।-1

निर्मल नदी, गहरा कुआँ। रवि लालिमा, उठता धुआँ।।
गोबर लिपा, चूल्हा जले। परिवार भी, साझा चले।।
सब सीखते, जीवन कला। सब जानते, सबका भला।।
श्रम वीरबल, तन साँवला। रखते सभी, मन सुनहला।।
माता पिता, रहते यहाँ। उनका सदा, शुभ पाँव है।
पथ पर जहाँ, घन छाँव है। बस देख लो, यह गाँव है।।-2

दिन दुपहरी, सब खेत में। संध्या गुड़ी, निशि केत में।
सब जानते, कृषि कर्म को। पहचानते, इस धर्म को।।
ऋतु शीत हो, या ग्रीष्म सा। बस एक ही, प्रण भीष्म सा।
श्रम साधते, जयकार में। जन झूमते, त्यौहार में।
बस गीत है, मनमीत है। जीवन लगा, है दाँव में।
पथ पर जहाँ, घन छाँव है। बस देख लो, वह गाँव है।।-3

सच स्वर्ग सा, आयाम है। सबसे कहूँ, वह ग्राम है।
पथ पर जहाँ, घन छाँव है। बस देख लो, वह गाँव है।।

तब और अब ~ चौपई छंद

स्वागत आगत की थी रीत, झलके मुख मंडल से प्रीत।
पूज्य अतिथि थे देव समान। सेवा का सब रखते ध्यान।-1

देख अतिथि अब अति घबराय, दरवाजे ताला लटकाय।
स्नेह संपदा सहसा सूख, देख चलन यह होता दु:ख।-2

घर घर पहले गाय बँधाय, दूध दही छककर खाय।
गोबर से घर पावन होय, गौधन अति मनभावन होय।-3

मिले नहीं अब कोई गाय, घर घर अब तो श्वान बिठाय।
गाय भटकती रहती राह, कुत्ता पालन सबकी चाह।-4

मृदामयी मटका जलपान, ठंडा ठंडा अमिय समान।
लोटा भर पानी का दान, देकर बनते सभी महान।-5

पानी बिकता बोतल बंद, नहीं रहा कोई आनंद।
पानी पहुँचा है बाजार, बिकने को हैं सब तैयार।-6

रहे पड़ोसी सबमें साथ, देता वह हाथों में हाथ।
पहले पड़ोस फिर परिवार, कभी नहीं होता प्रतिकार।-7

जब से आया इंटरनेट, जग को इसने दिया समेट।
दोस्त हजारों मन को भाय, पास पड़ोसी को बिसराय।-8

मातु पिता का सेवा मान, करते थे सब संतान।
पूत श्रवण सा श्रद्धा सार, जीव जगत माने उपकार।-9

पाहन पूजन हुआ रिवाज, नैतिकता से कटी समाज।
पत्थर में खोजे हैं प्राण, कैसे होगा जग कल्याण।-10

कोरोना वैश्विक कहर (दोहे)

दनुज प्रवृति हावी हुई, लिया प्रकृति से बैर।
सूक्ष्म जीव समझा गया, नहीं किसी की खैर।।

पहले करते हम फिरें, कुदरत से खिलवाड़।
रौद्र प्रकृति जब-जब हुई, बचने करें जुगाड़।।

कोरोना वायरस से, सारा जग भयभीत।
रोग ग्रस्त अति आदमी, अपनों से अपनीत।।

सर्दी खाँसी साथ यदि, आये तीव्र बुखार।
श्वास कष्टमय जब लगे, शीघ्र जाँच उपचार।।

रोग संक्रमण संचरण, गति है अतिशय तेज।
उचित दवा अब तक नहीं, रखिए बस परहेज।।

रोगी से दूरी रखें, अनिकट से हो बात।
साफ सफाई से अमित, कोविद को दें मात।।

नाक और मुँह को ढँकें, त्यागे माँसाहार।
जनसमूह से दूरियाँ, रहें मध्य परिवार।।

कोरोना वैश्विक कहर, समझें इसके मर्म।
सिर्फ स्वच्छता सार है, भोज्य पेय लें गर्म।।

सरकारी निर्णय अमित, करें समर्थन आप।
जन-जन के सहयोग से, मिटें व्याप्त संताप।।

कज्जल छंद~जल संरक्षण

सभी देखते आँख मूँद, तरसेंगे फिर बूँद-बूँद।
पानी बहता धार-धार, रुके नहीं वह खेत-खार।

सावन भादों खूब चले, पानी से सब जीव पले।
घर अँगना फिर गाँव गली, व्यर्थ थोक जल दौड़ चली।

सरवर पोखर झील कूप, दिखता जल का रौद्र रूप।
नाला नदियाँ बाँध बाढ़, चहुँदिशि थल में जल प्रगाढ़।

जीवन होता अस्त व्यस्त, मेघ दामिनी मस्त-मस्त।
कहीं-कहीं जल से सुकाल, कहीं-कहीं जल से अकाल।

हरषे जन नभ देख-देख, इसे समझते भाग्य लेख।
तरसे जन नभ कोस-कोस, कहते यह तो भाग्य दोष।

पौधारोपण खेत मेड़, सभी लगाते एक पेड़।
काटे कभी न वृक्ष लोग, असंतुलन का फिर न रोग।

वर्षा जल का रोकथाम, खत्म जीव का कोहराम।
स्त्रोत सूखता नित्य नीर, जल संरक्षण सुख सुधीर।

वृक्ष लगा दें हम हजार, धरती करे न फिर पुकार।
होगा हरिहर धाम सृष्टि, प्रकृति संतुलन, जल सुवृष्टि।

त्रिभंगी छंद ~ शिवशंकर स्तुति

शंकर सुखकारी, जय त्रिपुरारी, शीश चंद्रमा, सदा सजे।
भोला भंडारी, मंगलकारी, घंटा डमरू, शंख बजे।
जय औघड़दानी, अति बर्फानी, अंतर्यामी, क्लेश कटे।
अविचल अविनाशी, शिव कैलाशी, हे शिवशंकर, नाम रटे।-1

छल लोभ वासना, काल ग्रासना, क्षुधा तृषा नित, हृदय जगी।
संकट संहारक, विघ्न विनाशक, चरणन चाकर, लगन लगी।
शिव असुर निकंदन, भव भय भंजन, सबल सहायक, ध्यान रहे।
जय विश्व विधाता, सब सुख दाता, महादेव जय, भक्त कहे।-2

जय गिरिजाधीशा, जय जगदीशा, महादेव जय, नाम बड़े।
जटाजाल ज्वाला, नेत्र विशाला, वामदेव शिव, कौन लड़े।।
मदन दहनकारी, हिम गिरिचारी, सुर नर पशुपति, करे क्षमा।
अखिल भुवन भोगी, अद्भुत योगी, चढ़ वृषवाहन, संग उमा।।3

शिव सुषमासागर, रूप उजागर, फणिपति भूषण, माल गले।
गिरिजा गोस्वामी, प्रभु निष्कामी, भूत-प्रेतगण, संग पले।।
भक्तन दुखगंजन, अलख निरंजन, देव दनुज मुनि, ध्यान धरे।
गावत नरनारी, गंगाधारी, जय तमहारी,
शिवम् हरे।।4

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