आत्मकथा : मेरे घर आना ज़िन्दगी (11)

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विरार के फ्लैट का लोन पटाने में दिक्कतें आ रही थीं इसलिए हमने मीरा रोड सृष्टि कॉन्प्लेक्स में निर्मल टॉवर की छठवीं मंजिल पर वन बेडरूम हॉल किचन का फ्लैट विरार के फ्लैट को बेचकर  ले लिया और पूरा लोन पटा दिया। मीरा रोड का फ्लैट बहुत खूबसूरत था। संगमरमर की टाइल्स वाला और सारी सुविधाओं से युक्त। हेमंत ने घर अपनी पसंद से सजाया था। पर्दे ,केन का फर्नीचर, बालकनी में सजावटी प्लांट्स आदि। मैंने आगरे के अम्मा के बगीचे से लाकर सफेद गुलाब की बेल किचन की बालकनी में लगाई थी ।जिस पर गुच्छों में ढेरों फूल खिलते थे ।गौरैयाँ भी शोर मचाती रहती थीं। हम मार्च में गुड़ी पाड़वा के दिन मीरा रोड के फ्लैट में शिफ्ट हुए और 20 अप्रैल 1999 को अम्मा का निधन हो गया।
मुझे लगा था यह बरस मेरी जिंदगी का सबसे सुनहला बरस सिद्ध होगा।मगर वह बेहद काला और मनहूस सिद्ध हुआ, जिसने नए फ्लैट में गृह प्रवेश के ठीक एक महीने बाद ही अम्मा को मुझसे छीन लिया। लगा जैसे शरीर से बूंद बूंद लहू किसी ने निचोड़ लिया हो। मशीनवत काम तो होते रहे पर न उमंग थी न उत्साह। मैं महीनों महीनों अवसाद की स्थिति से गुजरने लगी ।मैं अम्मा को बहुत सुख देना चाहती थी। पर उन्होंने नौकरी लगने का इंतजार नहीं किया। हमें एक मौका तक नहीं दिया और ….
वे प्रकृति में जीती थीं। थीं भी प्रकृति जैसी बहुत प्यारी, खूबसूरत। मैं बालकनी में चाय का प्याला हाथ में लिए खड़ी थी। इतवार का दिन था ।पूर्व दिशा लालिमा से भरी आस-पास ठिठके बादलों को सिलेटी आभास दे रही थी। कतारबद्ध बगुले समंदर की दिशा में उड़े जा रहे थे। दूर पहाड़ों पर जलती बुझती आग की कतार थी। आदिवासी इसी तरह आग लगाकर खेती योग्य जमीन तैयार करते हैं ।मरण निश्चित है फिर भी जिजीविषा बनी रहती है। उस एक पल में अम्मा को मैंने अपने निकट पाया। वे प्रकृति में समाई प्रकृति बन मौजूद हैं मेरे निकट। हमेशा हमेशा के लिए। जब तक मैं जीवित हूँ।
मीरा रोड के फ्लैट में साहित्यकारों का जमावड़ा खूब होता था ।कहानी पाठ, कवि गोष्ठी ,महीने दो महीने में एक बार कर ही लेते थे ।उस दिन धीरेंद्र अस्थाना का कहानी पाठ था। दीर्घा के संपादक वरिष्ठ लेखक डॉ विनय को अध्यक्षता करनी थी ।सुबह से ही खूब पानी बरस रहा था। मुंबई की बारिश, सड़कें पानी से लबालब ।यातायात ठप। मैंने तैयारी तो पूरी रखी जलपान वगैरह की पर विश्वास कम था कि कोई आएगा इतने पानी में ।लेकिन मुंबई के लोग बरसात की परवाह नहीं करते। धीरे-धीरे सब आने लगे ।डॉ विनय सबसे पहले आए। निरुपमा सेवती के संग। घुटने घुटने तक पेंट चढ़ाए धीरेंद्र अस्थाना और देवमणि पांडे आए। करीब 20 लेखकों की उपस्थिति में धीरेंद्र जी ने कहानी पाठ किया। देवमणि पांडे ने संचालन ।मैंने नाश्ते के लिए समोसे मंगवाए थे लेकिन वेद प्रकाश जी की फरमाइश -“बारिश में तो भजिये मजा देते हैं ।बहरहाल भजिये  तले गए और बरसात की वह खुशनुमा  रात यादों में अंकित हो गई।

क्रमशः

लेखिका – संतोष श्रीवास्तव

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