आत्मकथा : मेरे घर आना ज़िन्दगी (13)

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चर्चगेट स्थित इंडियन मर्चेंट चेंबर का सभागार बुक कर लिया ।शैलेंद्र सागर, विभूति नारायण राय, काशीनाथ सिंह, भारत भारद्वाज सब पुलिस गेस्ट हाउस में रुकेंगे। निमंत्रण पत्र छप गए बल्कि सबको बुक पोस्ट से भेज भी दिए। डिनर का एडवांस भी दे दिया। पुरस्कार की तिथि के एक दिन पहले घर में अतिथियों और मुंबई के मेरे खास साहित्यकार मित्रों का घर पर गेट टुगेदर रखा था। चूंकि  रमेश ड्रिंक लेते थे अतः उन्होंने सबके लिए ड्रिंक का इंतजाम भी किया था ।डिनर हमने ऑर्डर कर दिया था। सो सबके साथ इत्मीनान से पार्टी चल रही थी। काशीनाथ सिंह जी फिल्म अभिनेत्री रेखा से मिलने के किस्से सुना रहे थे। मनोज शर्मा एसिडिटी के शिकार, डिनर में पूरियां थी जो वे बिल्कुल नहीं खा सकते थे तो मैं उनके लिए रोटियाँ सेक रही थी। तभी फोन पर सूचना मिली शीला जीजी नहीं रहीं। एकाएक मिली सूचना ने हमें हिला कर रख दिया। मैं और प्रमिला आँसुओं को घोंटकर इस खबर को किसी को न बताने के लिए एक दूसरे को मना रहे थे ।खबर बता दी गई तो पुरस्कार रोकना पड़ेगा ।सारे अतिथि कमरे में मौजूद हैं ।कैसे होगा? नामुमकिन। जीजी बीमार थीं। उनके पैरों में ऑक्सीजन नहीं पहुँच रही थी ।एक पैर काला पड़ गया था। जिसे काटने की डॉक्टरों की सलाह थी ।एंजाइना, डायबिटीज से पीड़ित थीं वे।सीवियर हार्ट अटैक ।हमने तत्काल की आगरा की टिकटें बुक करा लीं। कल समारोह के बाद परसों निकलना था। 

समारोह तो शानदार होना ही था । दो महीने की मेहनत जो थी हमारी। समारोह के बाद  गाड़ी में मैं प्रमिला और आलोक भट्टाचार्य मीरा रोड लौट रहे थे। अंधेरी से आलोक जी डोंबिवली के लिए ट्रेन लेंगे ।आखिर हमारे सब्र का बांध टूट गया। हमें आँसू बहाते देख आलोक जी ने सारी स्थिति मालूम कर ढांढस बंधाया।

” मुझे तो तुम दोनों के सब्र पर गर्व हो रहा है। खासकर संतोष के ।सुनो संतोष, मैंने जब जब तुमको देखा/ लोहा देखा/ लोहे जैसा तपते देखा/ गलते देखा/ ढलते देखा/ मैंने तुमको गोली जैसा चलते देखा/( केदारनाथ अग्रवाल) माय डियर संतोष, यू आर आयरन लेडी।”

जीजी के घर में  मृत्यु से पसरे सन्नाटे में खुद को खपाना जानलेवा था ।अम्मा के जाने से आगरा का सूनापन जीजी की वजह से दूर हुआ था। अब तो मायका ही खत्म। एक साल बाद ही जीजाजी आगरे की अपनी कोठी बेच ग्वालियर शिफ्ट हो गए थे ।कोठी के रूपयों में उन्होंने अहमदाबाद में भी एक फ्लैट खरीद लिया था कि सबसे छोटी बेटी की शादी के बाद वहाँ जाकर रहेंगे ।लेकिन न उनके जीते जी शादी हुई न वे अहमदाबाद वाले फ्लैट में रहे। ग्वालियर में ही उन्होंने शीला जीजी की मृत्यु के 6 साल बाद अंतिम सांस ली । 

मेरी काफी बर्बादी का कारण जीजाजी रहे। उसका उल्लेख मैं आगे के अध्याय में करूंगी।

क्रमशः

लेखिका – संतोष श्रीवास्तव

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