आत्मकथा : मेरे घर आना ज़िन्दगी (40)

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23 मई हेमंत का जन्मदिन हर साल एक उत्सव की तरह मनाया जाता है। पूरे मुंबई में उत्सव का माहौल रहता है। यह बात हिंदी मीडिया के चंद्रकांत जोशी ने जब फोन पर मुझसे कही तो मुझे लगा मैंने भले मुम्बई छोड़ दिया है पर मुम्बई ने हेमंत को नहीं छोड़ा ।हर साहित्यकार की यादों में वह जिंदा है। तय हुआ कि जन्मदिन मुंबई में ही मनाया जाएगा ।जेजेटी विश्वविद्यालय का लगभग 100 की कैपेसिटी वाला हॉल संदीप ने बैनर आदि टांग कर सुंदर ढंग से सजा दिया था लेकिन लोग आए करीब सवा सौ ।हेमंत के संस्मरण सुनाते हुए ललिता अस्थाना, सूरज प्रकाश, अमर त्रिपाठी, सूर्यबाला, सुधा अरोड़ा, राजेंद्र गुप्ता (अभिनेता ),डॉ नंदलाल पाठक बहुत इमोशनल हो गए थे। ललिता अस्थाना के संस्मरण ने सभी को रुला दिया था। ग्वालियर से डॉ राकेश पाठक आए थे। मैं अभिभूत थी। कहाँ हूँ अकेली मैं। इतना बड़ा साहित्यिक खानदान मेरे साथ है। वह शाम बल्कि रात जैसे नितांत मेरी थी और मैं उस के सदके।

उस रात हेमंत ने मुझे सोने न दिया। होटल लौट कर भी मैं, राकेश और मधु देर तक हेमंत की बातों में खोए रहे। राकेश ने भी 2 साल पहले हुई पत्नी प्रतिमा की मृत्यु का जिक्र छेड़ दिया। यूँ रात आँखों में ही गुजरी।

क्रमशः

लेखिका संतोष श्रीवास्तव

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