आत्मकथा : मेरे घर आना ज़िन्दगी (41)

0

विकेश निझावन जी का आग्रह रहता है कि मैं अधिक से अधिक रचनाएं पुष्पगंधा के लिए भेजूं। अंबाला में मेरे फैन बहुत हैं और जब मेरी रचना छपती है तो पुष्पगंधा का सरकुलेशन बढ़ जाता है। उन्होंने मेरी कहानी “अमलतास तुम फूले क्यों “नया ज्ञानोदय से लिफ्ट कर प्रकाशित की और तुरंत सूचना दी ।” लौट आओ दीपशिखा “उपन्यास की समीक्षा निरंतर अखबारों पत्रिकाओं में छप रही थी ।सृजन blogspot.com पर “लिव इन की विसंगतियों से जूझता महत्वपूर्ण उपन्यास” शीर्षक से प्रकाशित हुई थी। ई कल्पना को भी समीक्षा भेजी थी पर उन्होंने पहले गूंगी कहानी प्रकाशित की ।फिर भी लौट आओ दीपशिखा को पाठकों का अच्छा प्रतिसाद मिला।

मेरी पिछली भोपाल विजिट में सभी का आग्रह था कि मैं भोपाल शिफ्ट हो जाऊं। इस बीच हुआ यूँ कि मेरी फैन नीलिमा शर्मा का ग्वालियर से  फोन आया कि उन्होंने भोपाल में घर खरीदा है अगर मैं चाहूँ तो उस घर में रह सकती हूँ । नीलिमा जी के पति की मृत्यु हो चुकी थी और उन्होंने अकेले दम पर अपनी 4 साल की बेटी और 6 साल के बेटे का पालन पोषण किया। बेटा शिकागो में गूगल में एम्प्लॉई है। बेटी टीवी धारावाहिकों में काम करती है। मुंबई में रहती है ।बेटी की शादी कर नीलिमा जी भी उसी घर में साथ में रहेंगी। मुझे यह प्रस्ताव अच्छा लगा। औरंगाबाद की परिस्थितियाँ भी मजबूर कर रही थीं कि मैं स्वतंत्र रहूं।

मैं जब घर देखने भोपाल पहुंची तो बेंजामिन आईवी भी बेंगलुरु से आ गए। सचखंड एक्सप्रेस ने रात 1:30 बजे हबीबगंज उतारा ।जया का बेटा यश लेने आया। मैं जया के घर ही रुकी। बेंजामिन आईवी होटल में रुके। दूसरे दिन मैं जया के पति शर्मा जी के साथ बावडियां कलां आई जहाँ मल्टी स्टोरी बिल्डिंग सुरेंद्र रेजिडेंसी में पांचवीं मंजिल पर नीलिमा जी का घर था ।दरवाजा खोलते ही उन्होंने मुझे गले लगा लिया ।बेहद हँ समुख महिला ।पहली नजर में अपनत्व का बोध हुआ ।विजयकांत वर्मा जीजाजी पहले से ही आकर बैठे थे ।वे मेरी सगी बुआ के दामाद हैं। गीता जीजी की मृत्यु 2 साल पहले हो गई थी। बच्चे हुए नहीं । वे बाग मुगलिया के अपने डुप्लेक्स बंगले में अकेले रहते हैं। बेंजामिन आईवी भी आ गए ।घर बहुत पसंद आया। तीन बड़े-बड़े बेडरूम, हॉल, किचन, पूर्व पश्चिम की बालकनी और खूब हरा-भरा परिसर। यह जगह प्रधान एनक्लेव कहलाती है। कई एकड़ में फैला प्रधान एनक्लेव मेरी मौसेरी बहन कुक्की का है। कुक्की के पति की मृत्यु के बाद ससुराल से उसे फूटी कौड़ी भी नहीं मिली और घर से निकाल दिया गया ।बाद में सुनने में आया उनकी प्रॉपर्टी के चक्कर में हत्या कर दी गई थी। कुक्की न्यूयार्क में डॉक्टर है।

बेंजामिन ने फ्लैट का 11 महीने का एग्रीमेंट 6000 हर महीने किराए के हिसाब से तय कर लिया । 11 महीने बाद 10 परसेंट किराया बढ़ाने की परंपरा यहाँ भी निभाई जाएगी ।मात्र छह हजार डिपॉजिट …….और मैं इस घर की किराएदार हो गई। एक बेडरूम नीलिमा जी ने अपने लिए रखा ।

मेरी वापसी की फ्लाइट 4 दिन बाद थी। और कई लोगों से मिलना था। आईवी को भोपाल घूमना भी था।इसलिए हम बावड़ियाँ कलाँ से सैर सपाटा और सांची घूमते हुए जया के घर पहुंचे ।बेंजामिन आईवी होटल लौट गए ।उन्हें फिल्मेपिया के काम में बिजी रहना है। मैंने संतोष चौबे जी से मिलने की इच्छा प्रकट की ।उन्होंने हरि भटनागर के संग आईसेक्ट यूनिवर्सिटी बुलाया। यूनिवर्सिटी भोजपुर में है ।शहर से बहुत दूर। हरि भटनागर वक्त पर लेने आ गए ।जया के साथ हमने पहले बापू की कुटिया में लंच लिया। हरि भटनागर के घर से फोन था कि कढ़ी चावल बनाए हैं। संतोष को लेकर घर आ जाओ लेकिन समय नहीं था क्योंकि हरि भटनागर को समय पर यूनिवर्सिटी पहुंचना था। तब वहां वे एम्पलाई थे।

संतोष चौबे शहर के रईसों में से एक हैं यूनिवर्सिटी भी बहुत बड़े परिसर में है। अब उसका नाम रविंद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय हो गया है ।विजय कांत वर्मा जीजाजी यहीं उपकुलपति और निदेशक हैं ।और यह बात संतोष चौबे जी को नहीं मालूम थी कि मैं उनकी साली हूं ।

मैंने उन्हें अपनी किताबों का सेट लाइब्रेरी के लिए भेंट किया। शुरू में वह इस भ्रम में थे  कि मैं भोपाल शिफ्ट हो रही हूं इसलिए यूनिवर्सिटी में उनसे काम मांगने आई हूं।बाद में स्थितियां स्पष्ट हुई।

जया को टीकमगढ़ जाना था ।इसलिए मैं विनीता राहुरीकर के घर चली गई। खूबसूरत डुप्लेक्स बंगले में उसके दो कुत्ते भी हैं जो जाली में से भौक रहे थे। विनीता के घर वह शाम और रात बेहद शानदार गुजरी जब हमने एक दूसरे के साथ, एक दूसरे के सामने मन की परते खोली ।उस रात मैंने विनीता को निकट से जाना ।उसकी बेटी की मृत्यु के बाद से वह अपने में सिमट गई है। दुख कितने हैं। सबके अपने अपने भाग्य के अलग-अलग।

सुबह जया लौट आई थी और मेरे सम्मान में अपने घर कवि गोष्ठी आयोजित की थी ।मैं विनीता के साथ 3 बजे उसके घर पहुंच गई ।गोष्ठी में विश्व मैत्री मंच की 15 लेखिकाओं के बीच अकेले लेखक हरि भटनागर। उन्होंने अपना उपन्यास “एक थी मैना एक था कुम्हार “मुझे भेंट किया और इसी उपन्यास के कुछ अंशों का पाठ भी किया। रिमझिम बारिश से मौसम खुशगवार हो गया था ।यश के मोबाइल रेस्तरां के इडली वड़ा सांभर और गर्मागर्म चाय ने मौसम की खुशगवारी में स्वाद का भी इजाफा कर दिया।

सुबह यश ने मुझे एयरपोर्ट पहुंचाया तो एकदम अपना सा लगने लगा यह शहर।

देख रही हूँ दूर पूरब में उगते सूरज को। वह दूर है पर कितना नजदीक  निकलता है । एक मिनट का भी आराम नहीं उसे ।पूरब से पश्चिम तक की दूरी उसे दिनभर में तय कर लेनी है और वह अपनी निर्धारित डगर से जरा भी नहीं चूकता। यही प्रवृत्ति मैंने पाई है ।नित चलते रहना ……चलते रहना….. और मैं अपनी इस प्रवृत्ति को बहुत मूल्यवान मानती हूँ। मेरा अपना घुमक्कड़ी शास्त्र है ।इस जीवनशैली में उम्र कहीं बाधा नहीं ।परिवार मैंने जिया नहीं तो अपनी टुकड़ा होती जिंदगी को समेटकर कुछ इस तरह का रूप दे दिया है ।आखिर कोई तो बहाना चाहिए जीने को। इस बार विश्व मैत्री मंच का अंतरराष्ट्रीय सेमिनार रूस के मास्को शहर में कर रही हूँ। अगस्त 2017 में ।मॉस्को के साथ सेंट पीटर्सबर्ग ,क्रेमलिन भी। मैंने अनिल जन विजय से संपर्क किया। लेकिन बाद में हमारे संबंधों में खटास आ गई और मैंने उन्हें सम्मेलन में बुलाने की योजना मुल्तवी कर दी। मॉस्को में हमारे विशिष्ट अतिथि थे दिशा फाउंडेशन मॉस्को के अध्यक्ष डॉ रामेश्वर सिंह,डॉ सुशील आज़ाद  एवं डॉ विनायक जिनके कर कमलों द्वारा सम्मेलन का उद्घाटन हुआ। इस सत्र की मुख्य अतिथि डॉ माधुरी छेड़ा , अध्यक्ष आचार्य भगवत दुबे एवं विशिष्ट अतिथियों द्वारा डॉ विद्या चिटको, डॉ रोचना  भारती, डॉ प्रमिला वर्मा,  संतोष श्रीवास्तव एवं कमलेश बख्शी की पुस्तकों का विमोचन हुआ ।
अनुपमा यादव के कुशल अभिनय की एकल नाट्य  प्रस्तुति तथा विनायक जी के द्वारा गाई अहमद फराज की गजल ने समा बांध दिया ।
यह सम्मेलन भारत मॉस्को वैश्विक साहित्य  की दिशा में एक नई पहल के रूप में दर्ज किया गया।

 मॉस्को ,सेंट पीटर्सबर्ग ,क्रेमलिन…….यहाँ गुजरा पूरा सप्ताह स्मृतियों में कैद है ।तमाम फोकस की गई वस्तुएं ,स्थल ,रशियन लोग ,प्यारी लरीसा हमारी गाइड ।हम भारत के लिए उड़ान लेने पुलकोवो एयरपोर्ट पर हैं। पीछे छूट रहे हैं गोर्की, चेखव, टॉलस्टॉय, पुशकिन, फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की  ,रसूल हमजातोव और कितने ही कलम के सिपाही। 1902 में गोर्की के घर के सामने ज़ार ने पहरा लगाया था। गोर्की श्रमिकों का चहेता कलमकार था ।उस पर बरसाई गई गोलियों को मजदूरों ने झेला था ।वह मजदूरों की पीड़ा का लेखक था। जब ज़ार की गोलियां मजदूरों की शांतिमयी हड़ताल पर बरसी थीं गोर्की के विद्रोह और दर्द से भरे तेवरों वाले लेख की वजह से ज़ार ने उसे जेल में डाल दिया था। गोर्की की यादों को सहेजा है रूस ने।   लेखकों की कद्र रूसी जानते हैं तभी तो यहाँ की फिजाओं में शब्द लिखे हैं। जिन्हें समेटे हवा मेरे हवाई जहाज के संग संग उड़ रही है।

वादा, अपने देश पहुँचकर तुम्हें लिखूंगी रूस!!

क्रमशः

लेखिका संतोष श्रीवास्तव

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *