बनने से पहले ही टूट गया रिश्ता Break up Story

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ब्रेक अप स्टोरी

बनने से पहले ही टूट गया रिश्ता

राजुल अशोक

विकास और रचना एक दिन शादी करेंगे, ये बात सब जानते थे। वास्तु कला अकेडमी में जब भी कोई नया आता या रचना और विकास के ग्रुप में किसी की नयी एंट्री होती, देर-सवेर उसे ये बात बता दी जाती।

दीपक को भी ये बात इसी तरह पता लगी थी। सुनकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ था। कहाँ रचना और कहाँ विकास। विकास कितना मिलनसार और बातूनी है, दोस्तों पर जान छिड़कता है और रचना किसी से ज़्यादा दोस्ती नहीं बढ़ाती। कहते हैं उसके सिर्फ गिने-चुने दोस्त ही हैं। रचना ग़ज़ब की पढ़ाकू। एक क्लास नहीं छोडती और विकास मौके ढूंढता है कि कब बंक करने का बहाना मिले। उसका कहना था कि वो तो यूं ही पढ़ रहा था। वैसे भी पिता का व्यवसाय संभालना है उसे। और रचना तो सिर्फ़ उसका साथ देने के लिए पढ़ रही थी। दीपक को ये जानकार हैरानी हुई कि इस तरह के प्रोफेशनल कोर्स भी कोई मज़ाक में कैसे ले सकता है। दोनों ही काम पाने के लिए नहीं बल्कि वक़्त गुज़ारने अकेडमी आ रहे थे।

उनका ग्रुप बहुत बड़ा था, जिसमें लड़के भी और लड़कियां भी थीं। दीपक सबसे घुलमिल गया था, पर रचना से उसकी सिर्फ हाय-हेलो ही होती। दीपक को लगता रचना बहुत घमंडी लड़की है। उसके साथ की लड़कियां कैसे चहक-चहक कर बातें करती है, पर वो सिर्फ़ मुस्कराहट से ही काम चलाती है। दीपक को लगता अकड़ दिखा रही है। आख़िर विकास जैसा लड़का उसका हमसफ़र बनने वाला है, जो शहर के एक बड़े उद्योगपति का बेटा है। फिर उसे क्या कमी है। दीपक की दोस्ती विकास से हुई, तो वो भी उनके ग्रुप का हिस्सा बन गया और तभी उसे रचना और विकास के रिश्ते की बात पता चली थी।

आपस की दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने के किस्से वो अब तक सुनता आया था, पर आज के ज़माने में भी ऐसा हो सकता है इसका साक्षात उदाहरण उसने पहली बार देखा था और ईश्वर को धन्यवाद दिया था कि शुक्र है वो किसी ऐसे घर में नहीं जन्मा जहाँ उसकी किस्मत का फैसला उसके माता-पिता की दोस्ती कर देती।

रचना और विकास की शादी के पीछे यही दोस्ती थी। रचना के जन्म के साथ ही विकास के पिता ने अपने डेढ़ साल के बेटे की दुल्हन तय कर दी थी। विकास ने एक बार बातों-बातों में अपने पिता की दरियादिली की तारीफ़ करते हुए बताया था कि कैसे उसके पिता अपने ग़रीब दोस्त की हर परेशानी में उसकी मदद करते थे और दोस्त की मृत्यु के बाद भी वो रचना को अपनी बहू बनाने के वादे पर डटे हुए थे।

रचना और विकास ने हमेशा साथ ही पढ़ाई की है और अब अकेडमी में भी साथ ही आए थे। ये और बात थी कि रचना ने वहां पहले एडमीशन लिया। उसकी योग्यता के कारण उसे स्कॉलरशिप भी मिली। मजबूरन विकास के पिता ने डोनेशन देकर विकास को भी दाख़िला दिला दिया, ताकि बेटे – बहू के बीच कभी पढ़ाई का फ़र्क़ आगे ना आए।

एकेडमी में आने के कुछ दिन बाद ही दीपक ये तो जान गया कि रचना सिर्फ़ व़क्त गुज़ारने वहां नहीं आई थी। रचना पढ़ाई में विकास से कहीं आगे थी, पर सिर्फ़ क्लास के अन्दर। क्लास के बाहर निकलते ही विकास आगे हो जाता। सिर्फ़ उसके जोक्स पर ठहाके लगते और रचना को किताबी कीड़ा कहकर चिढ़ाया जाता, पर रचना सिर्फ़ मुस्कुरा देती।

एकेडमी में वो विकास के साथ ही आती – जाती। क्लास ख़त्म होने के बाद ऐसे मौके बहुत कम मिलते जब रचना अकेली हो, पर कोर्स के तीसरे साल में एक बार ऐसा इत्तिफाक़ हुआ कि क्लास के बाद विकास सभी दोस्तों के साथ फ़िल्म देखने चला गया। रचना को लाइब्रेरी में कुछ काम था, इसलिए वो वहीं रुक गई। दीपक को टीचर ने कुछ काम दिया था, इसलिए उसे भी रुकना पड़ा।

काम ख़त्म करके दीपक ने घड़ी देखी तो काफ़ी समय था। उसे लगा हॉस्टल के कमरे में तपने से अच्छा है कि वो एयर कंडीशंड लाइब्रेरी में बैठे। वो लाइब्रेरी चला आया। उसे हैरानी हुई। रचना अभी तक वहीं थी। वो कुछ लिख रही थी। दीपक ने पास जाकर देखा, वो प्रोज़ेक्ट फ़ाइल बना रही थी। दीपक को देख वो मुस्कुराई। दीपक पास बैठ गया। उसने पूछा कि रचना का प्रोज़ेक्ट तो सबसे पहले जमा हो गया था, फिर वो दोबारा क्यों लिख रही है। रचना ने बताया कि ये विकास के लिए है।

दीपक को बहुत हैरानी हुई। उसने मुस्कुराकर कहा, ’तुमने तो अभी से विकास की ज़िम्मेदारी संभाल ली।’ रचना ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, ’तो ये बात तुम तक भी पहुँच गई।’ दीपक ने मुस्कुराकर सर हिला दिया, पर उसे लगा रचना को दीपक की ये बात अच्छी नहीं लगी। उसने सोचा बेकार ही मज़ाक किया। ये तो महाबोर लड़की है। उसने भी एक किताब उठाकर पढ़नी शुरू कर दी।

रचना काफी देर तक काम करती रही, फिर बोली, ’बहुत थक गई हूँ, अब एक प्याला चाय मिल जाए, तो फ्रेश हो जाऊं। तुम चल रहे हो?’ रचना ने कुछ इस तरह पूछा कि वो मना नहीं कर पाया।

लाइब्रेरी से निकलकर वो दोनों काफ़ी देर कैंटीन में बैठे रहे। वो विकास का इंतज़ार कर रही थी। ’विकास फ़िल्म के बाद रचना को लेने कालेज आएगा’ ये बताते हुए रचना ने जब कहा कि वो अकेले इतनी देर क्या करेगी, तो दीपक उसके साथ ही रुक गया।

दीपक को उस दिन पहली बार रचना को नज़दीक से जानने का मौका मिला। वो बोर तो बिलकुल नहीं थी, बल्कि उसका ‘सेन्स ऑफ़ ह्यूमर’ विकास से कही अच्छा था। उसे हैरानी हुई कि इतनी ख़ुशमिज़ाज लड़की सबके सामने चुप क्यों रहती है। उसे कितनी ही बातें मालुम थीं। दीपक को लगा वाकई रचना सिर्फ़ किताबी कीड़ा नहीं है।

तभी विकास का फोन आया। उसने बताया कि बाइक पंचर होने की वजह से उसे देर हो जाएगी, इसलिए रचना ख़ुद ही घर चली जाए। रचना ने चेहरे पर शिकन डाले बिना उसकी बात सुनी। वो जाने लगी तो दीपक भी उसके साथ बाहर तक आया।

रिक्शे पर बैठकर रचना चली गई, पर उस दिन के बाद दीपक रचना के दोस्तों में शामिल हो गया। धीरे-धीरे रचना और दीपक के बीच अनजाने पन की दीवार हटने लगी। दीपक को गंभीर स्वाभाव की रचना बहुत अच्छी लगती थी, पर उसे मलाल था तो सिर्फ़ इतना कि रचना को पहचानने में उसने इतनी देर कैसे कर दी।

कालेज ख़त्म होते ही उनका ग्रुप टूट गया। सब अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त हो गये। दीपक कई बार कालेज के दिन याद करता, तो उसे रचना याद आ जाती। वो सोचता ’अब तक तो रचना विकास का घर संभाल चुकी होगी।’ मन ही मन वो दुआ करता कि रचना हमेशा ख़ुश रहे।

तभी एक दिन ऑफिस के काम से उसे मैसूर जाना पड़ा। वहां रोड ट्रांसपोर्ट अधिकारी से एक प्रोजेक्ट पास करवाना था। दीपक नियत समय पर जब वहां पंहुचा, तो बाहर लगी नेम प्लेट पर रचना आहूजा लिखा था। उसे लगा, कहीं ये वही रचना तो नहीं, लेकिन फिर सोचा, वो यहाँ कैसे आ सकती है। वो तो विकास के साथ अपनी घर गृहस्थी में ख़ुश होगी। दीपक इंतज़ार करने लगा कि कब उसे अन्दर बुलाया जाएगा।

जब दीपक अधिकारी के कमरे के अन्दर पहुंचा तो सामने वही रचना बैठी थी। दोनों ही एक दूसरे को देखकर हैरान थे। रचना ने उसके पेपर्स क्लियर करते हुए शाम को घर आने की दावत दी।

शाम को रचना की कार जब उसे लेने आई तो दीपक के मन में कई सवाल थे। रचना के घर पंहुचा, तो उसने अकेले ही स्वागत किया। दीपक को विकास नज़र नहीं आया। चाय पीते हुए जब दीपक से रहा नहीं गया, तो उसने विकास के बारे में पूछ ही लिया। ये जानकार उसे हैरानी हुई कि रचना की शादी विकास से नहीं हुई। रचना ने एक कम्पीटीशन दिया। विकास ने विरोध किया। वो पास हुई तो विकास ने बात करनी बंद कर दी। जब उसे नौकरी का बुलावा आया, तो विकास आपे से बाहर हो गया। सिर्फ़ विकास ही नहीं उसके पिता भी रचना के इस कदम से नाख़ुश थे। पर रचना को एक संतोष था।

ज़िन्दगी पहली बार उसे मौका दे रही थी। बचपन से वो विकास के पिता के ऊंचे क़द के सामने अपने पिता को दबा हुआ देखती आई थी। पिता की मृत्यु के बाद भी उसने हमेशा अपने परिवार पर उनके एहसानों का बोझ महसूस किया था। घर के सभी फैसले लेने में उनकी राय ज़रूर ली जाती, पर रचना ने उस रीति को तोड़ दिया था। उसने शर्त रख दी थी कि वो शादी करेगी, पर नौकरी नहीं छोड़ेगी।

रचना के फैसले से उसकी माँ को ऐतराज नहीं था, पर विकास और उसके पिता नाराज़ थे। उन्हें लग रहा था, रचना के पर निकल आए हैं। काफी झगड़ा हुआ। रचना को एहसान फ़रामोश तक कहा गया, पर उसने नौकरी नहीं छोड़ी।

आख़िरकार एक दिन उसे विकास की शादी का कार्ड मिला। वो उनके साथ पढ़ने वाली अंजू से शादी कर रहा था, क्योंकि उसे नौकरी करने वाली पत्नी मंज़ूर नहीं थी और रचना अपने आत्मसम्मान की कीमत पर कोई वचन निभाने के लिए तैयार नहीं थी। लिहाजा उनके पिताओं द्वारा बनाया गया एक रिश्ता बनने से पहले ही टूट गया। पर रचना ख़ुश थी। उसे सर उठाकर जीने का एक मौका मिल चुका था।

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