धुली गाड़ियां बनी तलय्या – कांचन प्रकाश संगीत

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धुली गाड़ियां बनी तलय्या

धुली गाड़ियां बनी तलय्या
तीन कबूतर आ गए भैय्या
लगे नहाने था थक थैय्या
मार ख़ुशी से लेले बलैय्या  ।

रोज़ कहां मिलता है पानी
कहां जाए की प्यास बुझानी
इत्ती उत्ती चोंच धुलानी
झील नहीं ना कोई नदिया  ।

पानी  कहलाता है जीवन
नहीं नहीं वो तो संजीवन
कहां मिलेगा मीठा पानी
गदला खारा कीचड़ दरिया ।

उथला पानी जरा जुरा सा
लगा कि मानो ताल भरा सा
ख़ूब नहाए जोड़ भरोसा
नाचे फुदके छपछप छैय्या ।

तीन कबूतर आ गए भैय्या
मार ख़ुशी से ले ले बलैय्या
लगे नहाने था थक थैय्या
धुली गाड़ियां बनी तलय्या ।

(चित्र एवं चित्र कविता  :  कांचन प्रकाश संगीत)

बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न कांचन प्रकाश संगीत हिंदी और मराठी की जानी मानी साहित्यकार है।

 

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