‘बम-बम चिक-चिक गिली-गिली पाशा’ : बच्चों के मन का दर्पण – अलका प्रमोद

1
nisha1

पुस्तक समीक्षा :

समीक्षक – अलका प्रमोद

    

‘‘बम-बम चिक-चिक गिली-गिली पाशा’’ बच्चों के मन का दर्पण

‘‘बम-बम चिक-चिक गिली-गिली पाशा’’ बच्चों के मन का दर्पण


कृति का नाम-‘‘बम-बम चिक चिक गिली-गिली पाशा’’ (बाल गीत संग्रह)
कवयित्री – सुश्री निशा कोठारी
प्रकाशक-शारदेय प्रकाशन
चित्रांकन-सुश्री कशिश कोठारी
मूल्य- 300/- रुपये
पृष्ठ-86

बच्चों के लिये रचित 61 बाल गीतों का बालगीत संग्रह ‘‘ बम-बम चिक चिक गिली-गिली पाशा ’’ निशा जी का सृजन संसार में प्रथम पदार्पण है और मुझे विश्वास है कि इस पदार्पण की धमक को कोई भी उपेक्षित नहीं कर पाएगा। यद्यपि निशा जी भले ही सृजन जगत में नयी हों पर उनके गीत उनको परिपक्व गीतकार के रूप में स्थापित करते हैं तथा उनके बाल गीतों ने उनको बालसाहित्य की समर्थ कवयित्री के रूप में भी स्थापित कर दिया है।
सर्वप्रथम संग्रह का शीर्षक ‘‘ बम-बम चिक चिक गिली-गिली पाशा ’’ ही बच्चों को यह पुस्तक पढ़ने के लिये आकर्षित करेगा। शीर्षक रोचक है, लयात्मक है तथा उत्सुकता जगाता है। संग्रह में सभी गीत विभिन्न बच्चों के मन की ही बात को संप्रेषित करते लगते हैं ।
फंतासी बच्चों को सर्वाधिक मन भाती है। ‘‘जादुई जिंदगी’’ गीत अपने शीर्षक के अनुरूप बच्चों को कल्पना जगत की सैर कराएगा। इसी गीत की पंक्तियों को गीतकार ने अपनी पुस्तक का शीर्षक बनाया है।-
‘‘ काश जिन्दगी होती ऐसी
जैसा हो जादुई तमाशा
बम-बम चिक-चिक
गिलीगिली पाशा…..
…..कोई ऐसा जंतर मंतर
जो भर दे हर दिल में आशा
बम-बम चिक-चिक
गिलीगिली पाशा ।’’
‘‘ लाडो का बस्ता’’ शीर्षक का गीत आज के बच्चों के मन का दर्पण है –
‘‘ बीस किलो की लाडो का है
तीस किलो का बस्ता…..’’
एक गीत है ‘‘ संता दादा’’ जो बच्चों के सर्वाधिक प्रिय सांता क्लाज पर केन्द्रित है। यह गीत शब्दों के गठन और गेयता के गुणों से बच्चों के मन पर अधिकार कर लेगा। उदाहरणार्थ-
‘‘ भागे सब दन-दन दन-दन
सुनकर घंटी की टन-टन….
……भूल गये झगड़े की अनबन
सुनकर घंटी की टन-टन….’’
एक गीत है ‘‘ रहते हैं हम मस्ती में ’’ इसकी पंक्तियां हैं-
‘‘ सड़क किनारे मिट्टी की
झोपड़ियों वाली बस्ती में
रहते हैं हम मस्ती में……..’’बच्चों के अलमस्त भाव का सफल चित्रण है।
‘‘पापा का मूड ’’ एक बच्चे की पापा को कम अंको वाला रिपोर्ट कार्ड दिखाने को ले कर अपेक्षित डर की कुशल अभिव्यक्ति है । गीत में पंक्तियां है –
‘‘लाल रंग इस दुनिया से ही
कुछ पल को उड़ जाये
बस इतना हो जाये।’’
बच्चे जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं, उनके मन में कुछ भी जानने की जिज्ञासा होती है, उनका मन हर समय अनेक प्रश्न करता है और संग्रह के अंतिम गीत ‘‘ आखिर क्यों’’ में कवयित्री ने बच्चों के मन की इस प्रवृत्ति को अपने शब्दों का लबादा पहनाया है-
‘‘ …….बादल सूखा सूखा होता
पानी तब गीला गीला क्यों’’
सारांश यह है कि निशा जी ने बच्चें के मन में प्रवेश करके उनके मन को समझा है और विभिन्न विषयों ,बिल्ली बंदर कबूतर से ले कर फेसबुक ,कार्टून नेटवर्क तक सभी विषयों को अपने गीतों का विषय बनाया है। गीतों में लयात्मकता और सरल शब्दों का चयन बालगीतों की मांग होती है और इस संग्रह के सभी गीत इस मापदंड पर खरे उतरते हैं। मुझे विश्वास है कि निश्चय ही यह गीत बच्चों के मन को भाएँगे और वह सहज ही इन्हें गाएंगे गुनगुनाएंगे।
बाल साहित्य में चित्रों की विशेष भूमिका होती है चित्र उनको आकर्षित करते हैं और कहना न होगा कि इस संग्रह में चित्रों ने गीतों के आकर्षण में उत्प्रेरक का काम किया है तथा सुश्री कशिश कोठारी ने आकर्षक और भावानुकूल चित्र बनाए हैं। पुस्तक का मुद्रण और कागज भी उत्कृष्ट कोटि का, रंगबिरंगा एवं आकर्षण है जो एक और कारण है बच्चों के लिये इसे अपनी प्रिय पुस्तक बनाने और पढ़ने के लिये प्रेरित करने का।प्रकाशक को साधुवाद । लेखिका को इस कृति के लिये हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।

समीक्षक अलका प्रमोद

1 thought on “‘बम-बम चिक-चिक गिली-गिली पाशा’ : बच्चों के मन का दर्पण – अलका प्रमोद

  1. ह्रदय अभिभूत है ऐसी प्रबुद्ध समीक्षा पाकर शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीया अलका प्रमोद जी की और प्रकाशक पत्रिका की

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *