धारावाहिक उपन्यास भाग 06 : सुलगते ज्वालामुखी
धारावाहिक उपन्यास
सुलगते ज्वालामुखी
लेखिका – डॉ अर्चना प्रकाश
लगभग एक वर्ष देशराज के साथ रहने के बाद बिंदिया आमूल बदल चुकी थी। उसका परिष्कृत रूप देख कर देशराज फूले न समाते और गद्गद कंठ से उसकी प्रशंसा भी करते।
‘‘आज किस पर बिजली गिराने का इरादा है?’’ देशराज बिंदिया का साज सिंगार देखकर बोले।
‘‘अब तो सौन्दर्य सैलून जाना भी रोज की दिन चर्या हो गया हैं। बाल सेटिंग फैशियल व मसाज हैन्ड पैड़ी क्योर सभी कुछ तो जरूरी हैं।’’ बिंदिया ने सफाई दी।
‘‘इसके अलावा काम ही क्या है तुम्हें? घर के सब काम तो नौकर ही करते हैं।’’ देशराज बोले।
‘‘अच्छा! घर ग्रहस्थी की देखभाल भी तुमरे नौकर करते हैं क्या?’’ बिंदिया तैश में थी।
‘‘उनके लिए तुम्हारा औचक निरीक्षण ही बहुत है! जब तुम उन्हें कामचोर बेईमान मुफ्त खोरे जैसे विशेषण देने में दो मिनट भी नहीं लगाती हो!’’ देशराज ने कहा।
‘‘जो जैसा है उसे वैसा कहने में डर कैसा?’’ बिंदिया तनिक आक्रोश में बोली!
‘‘वो तो ठीक है लेकिन तुम्हें सजा संवरा देखकर ये लोग ह°सते क्यों हैं?’’ देशराज ने ठिठोली की।
‘‘बन्दर क्या जाने अदरख का स्वाद’’ बस इन सबकी यही समस्या है। सबके अपने निजी धन्धे है बस ये उसे ही समझते हैं।’’ बिंदिया ने कहा।
सुयोग्य पत्नी की बातों से निरुत्तर हो देशराज अपने आफिस के कमरे में चले गये।
सरकारी अधिकारी मंत्री विधायक, सभी को नौकरों गाड़ियों व सिद्धहस्त चमचों की विरासत अवश्य मिलती है। यहा° पर ऊपरी आमदनी व अन्य अवांछित स्त्रोतो से मिलने वाले धन की चर्चा बेमानी है।
बिंदिया के पास भी अब हीरे जवाहरातों के बहुमूल्य आभूषणों के अम्बार लग चुके थे। जिसमें से काफी कुछ वे अपने भाई बहनों व भाभियों को दे कर बेहद खुश थीं। विवाह के पा°च वर्ष पूर्ण हो चुके थे और बिंदिया तीन सन्तानों को जन्म दे चुकी थी। प्रथम पुत्री सपना व दो पुत्र तुषार व समीर थे। इसके साथ ही होम साइंस, सिलाई व समाज शास्त्र विषयों से बी.ए. की परीक्षा भी तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण कर चुकीं थीं।
‘‘अब तक तुम मेरी पत्नी थी लेकिन अब दो पुत्रों की सौगात देने के बाद अब तुम मेरे सिर का ताज हो गई हो।’’ देशराज सपना से बोले।
‘‘और जो हम बी.ए. पास हो गये उसका क्या?’’ जरा तरेरते हुए सपना बोली।
‘‘उसके लिए हम तुम्हारे मुरीद हो चुके हैं! तुम्हें देखते ही छाती गज भर चैड़ी हो जाती है!’’
‘‘अच्छा! तो ये बात है! लेकिन जो ये तुम आफिस की औरतों से ह°स कर बतियाते हो वो क्या है?’’ ये सपना थी।
‘‘ये सरकारी काम है! जैसे तुम घर के नौकरों से यदा कदा काम के लिए बतियाती हो वैसे ही हमें भी आफिस की महिलाओं से बात करनी पड़ती है! लेकिन वे हमारे सिर का मुकुट तो नहीं है न।’’
बिंदिया अब निरुत्तर थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी। सामने से मद्दुकर आ रहे थे। उन्हें देखते ही देशराज बोले- ‘‘आओ यार! बहुत दिनों से तुम्हें ही याद कर रहा था।
‘‘मैं नाश्ते चाय की व्यवस्था करती हू°!’’ कहते हुए बिंदिया किचन की तरफ चली गई।
कमरे में देशराज मधुकर से बातें करने लगे। कुछ देश के हालातों पर चर्चा के बाद विषय सुनीता पर घूम गया।
‘‘कभी सुनीता की याद नहीं आती?’’ ये मधुकर थे।
‘‘उसकी यादें अनकही तृप्ति का अहसास देती है। उसकी देह का उपभोग कर के मैंने अपने पूर्वजों को स्वर्ग में सन्तुष्टि दी है।’’
‘‘इसके माने तुमने सुनीता से कभी प्यार नहीं किया?’’ ये मधुकर
थे।
‘‘सुनीता जैसी सवर्ण स्त्री मुझे जीवन में जितने बार मिलेगी मैं उसके साथ वही करू°गा।’’ देशराज ने कहा।
‘‘ये गलत है। कम से कम अब तुम्हे ऐसे विचारों को जड़ से खत्म कर देना चाहिए।’’ मधुकर ने आग्रह किया।
‘‘इतने वर्षों के अनुभव के बाद अब मैं इस खेल का मंजा हुआ खिलाड़ी हू°!’’ देशराज बोले।
‘‘वो कैसे?’’
‘‘ये ऐसे कि मेरे पास यदि कोई ड्राइवर या चपरासी पा°डे अथवा मिश्रा मिल गया तो मैं येन केन प्रकारेण उसकी पत्नी का उपभोग अवश्य करता हू°!’’ देशराज की गर्वोक्ति थी।
‘‘ये सब कहीं भाभी को पता चल गया तब क्या करोगे? इसका कुछ सोचा है?’’ मधुकर बोले।
‘‘जनता, नेता, सभी को समझाना अपनी बात मनवाना यही तो हमारी नौकरी है, मैं इसमें माहिर हू°!’’ देशराज का तर्क था।
‘‘कैसे? जरा हम भी तो सुने!’’ मधुकर हैरानी से बोले। ‘‘बहुत आसान सी बात है कि मेरी पत्नी जब भी मार्केटिंग या किटी वगैरह जाती है, तभी मैं सब मैनेज कर लेता हू°।’’ देशराज व्यंगात्मक मुस्कराहट से बोले।
‘‘इसका ये अर्थ हुआ कि दलित अधिकारी के साथ सवर्ण चपरासी की स्थिति खाईं और कुएं की तरह की होती है। यदि वह दुश्कर्म का विरोद्द करे तो निलम्बित हो या परिवार को विघटन में डाले!’’ ये मधुकर थे।
‘‘इसमें मेरा कोई सरोकार नहीं! वरन् उनके निजी मसले हैं।’’ देशराज ने निश्चिन्तता जताई।
‘‘मेरी दोपहर की टेªन से वापसी है, इसलिए अब मैं चलता हू°।’’ कहते हुए मधुकर चले गये।
लगभग दो तीन दिन बाद देशराज बिंदिया व बच्चों के साथ गुड़गा°व के सनसाइन माल में घूम रहे थे। तभी उन्हें लिफ्ट में यशोदा व रजत सिंह मिल गये। दोनों परिवारों में परिचय हुआ फिर फोन न. वं घर के पते का आदान प्रदान हुआ। देशराज यशोदा से औपचारिक बातें करने लगे।
‘‘आप काफी स्मार्ट और सुन्दर हो गई है?’’ देशराज बोले।
‘‘मैं कान्वेन्ट में शिक्षिका हू° खुद को मेनटेन रखती हू°!’’ यशोदा बोली।
‘‘मुझे तो लगा था कि नौकरी व गृहस्थी की डबल जिम्मेदारी में चेहरा मुर्झा जाता हैै। लेकिन आपका निखार बढ़ रहा है।’’ देशराज बोले।
यशोदा लाज से नजरें झुका लेती है और देशराज भी जातीय व प्रशासनिक दर्प से प्रदीप्त थे।
देशराज के तीनों बच्चे अब नोएडा में ही अनेकों रईसी सुविधाओं में बड़े हो रहे थे। बिंदिया भी अब देशराज की जुगाड़ से बी.ए. कर चुकी थी। ये जुगाड़ नीति ये थी कि देशराज के पद के प्रभाव से किसी अपर्णा मिश्रा ने बिंदिया के नाम से परीक्षा दी थी और डिग्री बिंदिया को मिल गई। जिसकी फोटो भी उनके ड्राइंग रूम में लग गई और वे बाबा साहब व दलितों के उत्थान में धारा प्रवाह बोलने भी लग गई।
कुछ ही दिनों बाद यशोदा सिंह पति रजत सिंह व बेटे सुशान्त के साथ अपने सहपाठी देशराज से मिलने नोएडा आई। रजत सिंह मल्टीनेशनल कम्पनी में अच्छे पद पर थे, अतएव वे अपनी इनोवा कार स्वयम् चला कर आये थे।
यशोदा का बेटा सुशान्त तुषार व समीर के साथ खेल रहा था। तुषार ने उसे जमीन पर गिरा दिया और वह रोते हुए यशोदा के पास गया तो तुषार बोला-
‘‘आन्टी ये तो गिर कर रोने लगता है! हम तो गिरते हैं मगर रोते नहीं।’’
यशोदा देशराज व रजत बातें कर रहे थे।
‘‘बाकी सब दोस्तों के समाचार भी बताइये न यशोदा जी!’’ देशराज ने कहा।
‘‘जीनत व अहमद के भी एक प्यारी सी बच्ची है उसका नाम परी है और वह लखनऊ में ही पढ़ रही है। और जीनत जी कैसी हैं?’’
‘‘जीनत भी लखनऊ में ही कान्वेन्ट में प्राध्यापिका है और अहमद भाई का बिजनेस हैं राजाजी पुरम कालोनी में उन्होंने छोटा सा घर भी खरीद लिया है।’’ ये यशोदा थी।
‘‘वेदान्त व मुशीरा कहा° हैं?’’ देशराज ने पूछा।
‘‘वेदान्त व मुशीरा भी लखनऊ यूनीवर्सिटी में ही सर्विस कर रहे हैं!’’ यशोदा बोली।
‘‘इसके माने वेदान्त का शासन व प्रशासन का मोह अब खत्म हो गया है।’’ देशराज चहकते हुए बोले।
‘‘शायद!’’ ये यशोदा थी।
‘‘कितनी अजीब बात है जो स्वप्न वेदान्त ने मुझे दिखाया था उसे स्वयं हासिल न कर पाया’’ देशराज बोले।
‘‘हम सभी सहपाठियों में इस समय सुनीता पांडे सबसे सुदृढ़ व प्रतिष्ठित स्थिति में है।’’ यशोदा ने कहा तो देशराज का चेहरा उतर गया।
‘‘अब हमें चलना चाहिए! बहुत देर हो चुकी है!’’ यशोदा बोली।
यशोदा रजत व सुशान्त के साथ गुड़गा°व वापस आ गई।
क्रमशः